कोलकाता के पश्चिम बंगाल राज्य में मनाई जाने वाली दुर्गापूजा के बारे में /About Durga Puja celebrated in the state of West Bengal, Kolkata

कोलकाता के पश्चिम बंगाल राज्य में मनाई जाने वाली दुर्गापूजा के बारे में

दुर्गापूजा पश्चिम बंगाल की सबसे बड़ी और सबसे प्रमुख धार्मिक उत्सव है जो प्रतिवर्ष अक्टूबर या नवंबर के महीने में होता है। यह उत्सव मां दुर्गा के जयंती को मनाने के लिए होता है और इसमें पश्चिम बंगाल की संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।दुर्गापूजा के दौरान, शक्ति पूजा के रूप में देवी दुर्गा के भव्य मूर्तियों की स्थापना होती है और इन मूर्तियों को दशमी तिथि को विसर्जन किया जाता है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है जिसमें धार्मिक कार्यक्रम, कला, संस्कृति, भोजन, रंगबिरंगी पंडालों का निर्माण और पूजा-अर्चना का आयोजन होता है।दुर्गापूजा कोलकाता में एक विशेष रूप से मनाया जाता है, और यहां के पंडाल देश-विदेश से आने वाले दर्शकों को आकर्षित करते हैं। इस उत्सव की सुंदरता, धार्मिक भावना, एवं समृद्ध संस्कृति के कारण यह विश्व प्रसिद्ध है। वैश्विक स्तर पर, यह धार्मिक उत्सव भारतीय उपमहाद्वीप की भारतीय संस्कृति को दुनिया के सामने प्रदर्शित करता है और भारतीय विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

दुर्गापूजा के बारे में 

कोलकाता शहर पश्चिम बंगाल राज्य के मुख्य शहर है और दुर्गापूजा वहां के सबसे प्रमुख और विशेष धार्मिक उत्सवों में से एक है। यह उत्सव मां दुर्गा की पूजा एवं महापर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पूजा बंगाली समुदाय के लिए आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है।दुर्गापूजा के अवसर पर, पश्चिम बंगाल में धार्मिक उत्सव के रूप में चार दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। यह उत्सव आशिन मास (आश्विन मास) के शुक्ल पक्ष की शस्ती तिथि से शुरू होता है और दशमी तिथि को समाप्त होता है।इस उत्सव के दौरान, मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की विशालकाय मूर्तियों की स्थापना की जाती है, जिन्हें पंडालों में सजाया जाता है। ये पंडाल विभिन्न थीम्स और आर्टिस्टिक आविष्कारों से भरे होते हैं, जिन्हें देखने के लिए लाखों लोग आते हैं।
इसके अलावा, दुर्गापूजा के दौरान विभिन्न प्रकार के धार्मिक कार्यक्रम, संगीत, नृत्य, भजन-कीर्तन और भोजन का आयोजन होता है। प्रतिदिन सुबह-शाम, भजन-कीर्तन और धार्मिक अर्चना का आयोजन किया जाता है और लोग मां दुर्गा के चरणों में विशेष भक्ति भाव से प्रार्थना करते हैं।यह उत्सव बंगाली समुदाय की एकता और समरसता का प्रतीक है, जो सभी लोगों को एक साथ लाता है। दुर्गापूजा उत्सव के दौरान, लोग धार्मिक अनुष्ठान, सांस्कृतिक गतिविधियों, भोजन, और मिलन-जुलन का आनंद लेते हैं।इस प्रकार, कोलकाता में दुर्गापूजा एक अत्यंत महत्वपूर्ण और रोमांचक उत्सव है, जो भारतीय संस्कृति को दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है और भारतीय त्योहारों की धरोहर को जीवंत रखता है।

कोलकाता  दुर्गापूजा के पीछे कई कथाएं और पौराणिक

कोलकाता के पश्चिम बंगाल राज्य में मनाई जाने वाली दुर्गापूजा के पीछे कई कथाएं और पौराणिक कथाएं हैं। दुर्गापूजा की एक प्रमुख कथा है मां दुर्गा के लड़के गणेश और कार्तिकेय के साथ उनके पुत्र महिषासुर के संग लड़ने की कथा। यह कथा मां दुर्गा की विजय का प्रतीक है जिसमें उन्होंने दुर्गापूजा में महिषासुर का वध किया था।
दुर्गापूजा की कथा इस प्रकार है:कई साल पहले, स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक के बीच एक दैत्य राजा था, जिसका नाम महिषासुर था। वह बड़ी शक्तिशाली और दुर्बल देवताओं को भी नहीं हरा सकता था। महिषासुर की अधिकतर शक्तियों में से एक ब्रह्मा, विष्णु और शिव की अनुग्रह से मिली थी। उसने अपनी शक्ति के कारण स्वर्गलोक के देवताओं को निरंतर परेशान किया।
देवताओं ने महिषासुर के खिलाफ लड़ने का निर्णय किया और उन्होंने एक महाशक्तिशाली देवी को प्रकट करने का निर्णय लिया। तब देवी पार्वती ने अपनी अलग-अलग शक्तियों से सुसज्जित होकर महिषासुर के सामने प्रकट हुई।महिषासुर ने देवी पार्वती को देखते ही उसकी शक्ति को अंदाजा लगाया और उसे चुनौती दी कि वह उसके साथ लड़ाई करें। देवी पार्वती ने अपनी वाहन सिंह पर बैठकर तथाकथित महिषासुर के सामने खड़ी हो गई और उससे लड़ने की घोषणा की।दुर्गा के अलग-अलग रूपों में महिषासुर के साथ लड़ाई हुई और चार दिनों तक युद्ध चला। उसकी अलग-अलग शक्तियों का उपयोग करके देवी ने महिषासुर को धूल चटाई और उसे वध कर दिया।
इस प्रकार, मां दुर्गा ने महिषासुर को मारकर स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक को महासंकट से बचाया और अधर्म का नाश किया। इस विजय के अवसर पर लोग मां दुर्गा की पूजा करते हैं और उन्हें भक्ति भाव से अर्चना करते हैं।

कोलकाता के पश्चिम बंगाल राज्य में मनाई जाने वाली दुर्गापूजा के बारे में कुछ रोचक तथ्य 

1. आयोजन की भव्यता: कोलकाता में दुर्गापूजा अपनी भव्यता और गरिमा के लिए विख्यात है। यह उत्सव समृद्धि और रंगीनता का प्रतीक है, जिसमें स्थानीय लोगों के अलावा बड़े जनसंख्या के पर्वार्थी और पर्यटक भी भाग लेते हैं।
2. पंडाल: दुर्गापूजा में भव्य पंडाल बनाए जाते हैं, जिनमें देवी दुर्गा के भव्य मूर्तियां स्थापित होती हैं। इन पंडालों के आकर्षक और नाटकीय निर्माण के लिए प्रतिसप्ताहों तक काम किया जाता है।
3. धाक धुन: दुर्गापूजा के दौरान धाक धुन का उत्साह अधिक होता है। धाक धुन एक प्रकार की परंपरागत बंगाली ढोलक वादन कला है, जिसका प्रयोग देवी पूजा और विसर्जन के समय धार्मिक अवसरों पर किया जाता है।
4. विसर्जन प्रक्रिया: दुर्गापूजा के अंत में, देवी दुर्गा की मूर्तियां विसर्जित की जाती हैं। विसर्जन के समय, भक्त धूमधाम से नाचते हैं और मूर्तियों को पश्चिमी बंगाल के नदियों में विसर्जित करते हैं।
5. बिशोर्जनिका: विसर्जन की मूर्तियों को "बिशोर्जनिका" कहा जाता है। ये मूर्तियां खासकर क्ले और पेपर मैच से बनी होती हैं, जिन्हें पूजा के बाद विसर्जित किया जाता है।
6. पंडाल दर्शन: दुर्गापूजा में पंडाल दर्शन का आनंद लेने के लिए कोलकाता में दर्शक लाखों की संख्या में आते हैं। पंडालों की सुंदरता, आधुनिकता और विभिन्न थीम्स के कारण ये पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
7. शि-फाइ: दुर्गापूजा के दौरान रात को पंडालों को शोभायात्रा से सजाया जाता है, जिसमें दियों और लाइट्स से पंडालों की रौनक बढ़ाई जाती है। इसे "शि-फाइ" कहा जाता है।
8. प्रसाद: दुर्गापूजा के अवसर पर विभिन्न प्रकार के प्रसाद बनाए जाते हैं और लोगों को भक्ति भाव से खिलाया जाता है। हलवा, पूरी, कटहल की सब्जी, खिचड़ी, लड्डू, नारियल की बर्फी आदि कुछ प्रमुख प्रसाद हैं।
9. कलाकारों का प्रदर्शन: दुर्गापूजा के दौरान, कलाकार नृत्य, संगीत, ड्रामा और भजन-कीर्तन का प्रदर्शन करते हैं। इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लोग भाग लेते हैं और उन्हें आनंद आता है।
10. सामाजिक एकता: दुर्गापूजा एकता और समरसता को बढ़ावा देता है। इस उत्सव में लोग समूह में आकर मिलकर पूजा करते हैं और विशेषतः विसर्जन के समय लोग आपसी भाईचारे का महसूस करते हैं।
ये थे कुछ रोचक तथ्य दुर्गापूजा के बारे में, जो कोलकाता में प्रसिद्ध हैं। यह उत्सव विश्वास, समृद्धि और धार्मिकता का प्रतीक है जो भारतीय संस्कृति को दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है।

टिप्पणियाँ