संतोषी माता" के बारे में | About Santoshi Mata

संतोषी माता" के बारे में


संतोषी माता सनातन धर्म में एक देवी हैं जो भगवान शंकर तथा देवी पार्वती की पौत्री , उनके सबसे छोटे पुत्र भगवान गणेश और गणेश जी की पत्नी ऋद्धि , सिद्धि की पुत्री , कार्तिकेय , अशोकसुन्दरी , अय्यापा , ज्योति और मनसा की भतीजी और शुभ , लाभ की बहन तथा संतोष की देवी हैं। इनका दिवस शुक्रवार माना गया है।

संतोषी माता की कथा ( Santoshi Mata ki kahani )

संतोषी माता की कहानी ( Santoshi Mata ki kahani ) कुछ इस प्रकार है कि एक नगर में वृद्ध महिला रहती थी जिसके सात बेटे थे। वृद्ध महिला के सात बेटों में से छः कमाया करते थे जबकि सातवां बेटा कोई काम नहीं करता था। वह वृद्ध महिला अपने छयो बेटों को खुद अच्छे अच्छे पकवान बनाकर खिलाती थी पर सातवां बेटा जो कोई कमाई नहीं करता था उसे उन सभी बेटों की थाली का बचा हुआ भोजन परोसती थी। वृद्ध महिला का सबसे छोटा वह सातवां बेटा भोली प्रवृति का था यह सब बातें नहीं समझता था। एक दिन वह अपनी पत्नी से बोला कि मेरी माता मुझे बहुत प्रेम करती हैं रोज भोजन खिलाती हैं। इसपर वह पत्नी बोली कि तुम्हारी माता तुम्हें बाकियो का बचा भोजन परोसती हैं। अगर यकीन नहीं होता तो खुद देख लो।
त्योहार वाले दिन वृद्ध महिला ने कई प्रकार के भोजन बनाए। सातवां बेटा वहीं पर चादर ओढ़कर सो गया ताकि वह जांच परख पाए। वृद्ध महिला ने अपने छयो बेटों को बढ़िया आसनों पर बिठाकर पकवान खिलाए और उसके बाद उन्हीं बचे हुए खाने का एक लड्डू बनाकर सातवें लड़के को खाने के लिए बोला। इसपर वह क्रोधित हो गया और बोला कि अब मैं भोजन नहीं करूंगा। मैं परदेश जा रहा हूं। यह कहकर वह परदेश की ओर चल दिया। जाते जाते वह अपनी पत्नी को भी परदेश जाने का संदेश देता गया। अब वह सातवां बेटा बहुत दूर के देश पहुँचा जहां उसने एक व्यापारी की दुकान पर जाकर बोला ‘ भाई जी मुझे नौकरी पर रख लो’। व्यापारी को भी एक नौकर की सख्त जरूरत थी। व्यापारी में रख लिया और कहा कि तुम्हारी तन्ख्वाह काम देखकर देंगे।
देखते ही देखते वह सातवां बेटा व्यापारी की दुकान के सभी कार्यों में निपुण हो गया। हिसाब किताब भी करने लगा। व्यापारी भी बहुत खुश हुआ और उसने उस लड़के को आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना दिया। इसके बाद वह व्यापारी अपना सारा कामकाज उस लड़के के भरोसे छोड़कर कहीं बाहर चला गया। अब वह लड़का भी धनी सेठ बन चुका था। वहीं दूसरी तरफ उस लड़के की पत्नी को उसकी जेठानियां तंग करने लगी। वे उसे लकड़ी लेने जंगल में भेज देती। खाने को भूसे की रोटी और फूटे नारियल में पानी दिया करती। एक दिन जब सातवें बेटे की पत्नी लकड़ी लेने जा रही थी तो रास्ते में उसने कई औरतों को व्रत करते देखा। उसने औरतों से पूछा – ‘बहनों यह किसका व्रत है, कैसे करते है और इससे क्या फल मिलता है ? तो एक स्त्री बोली ‘ यह संतोषी माता का व्रत है इसके करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है’ इसके बाद स्त्री ने उसे व्रत करने की विधि बता दी।
फिर रास्ते में सारी लकड़ियां बेचकर उसने गुड़ और चना ले लिया। इसके बाद घर आकर उसने व्रत करने की तैयारी की। एक शुक्रवार उसके पति का पत्र आया और अगले शुक्रवार को पति का भेजा हुआ धन भी प्राप्त हुआ। इसपर जेठ जेठानी और सास नाक सिकोड़ने लगे। सातवें लड़के की पत्नी धन और पत्र से खुश नहीं थी उसने माता से प्रार्थना की और बोली मुझे धन और पत्र नहीं मेरा पति चाहिए। उसकी श्रद्धा भक्ति से मां तो प्रसन्न ही थी अतः संतोषी माता ने उसके पति के घर आने का भी वरदान दिया। उधर संतोषी माता (Santoshi Mata) ने उसके पति को स्वप्न में आकर पत्नी का स्मरण करवाया।
उसने कहा माँ मैं कैसे जाऊँ, यहां लेन – देन का कोई हिसाब नहीं है।’ इसपर माँ ने कहा प्रातःकाल स्नान कर मेरा नाम लेकर घी का दीपक जलाकर अपनी दुकान बैठना। ऐसा करने से तेरा सारा लेन देन साफ हो जाएगा और तेरे पास पैसों का ढेर लग जाएगा। अगले दिन माता के कहे अनुसार उसने वैसा ही किया। देखते ही देखते थोड़ी देर में सारा लेन देन साफ़ हो गया और धन का ढेर लग गया। इस तरह वह घर के लिए रवाना हो गया। जब वह घर पहुंचा तो पत्नी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। एक ही दिन में पत्नी की किस्मत बदल गई और वे दोनों ठाट बाट में रहने लगे। अब शुक्रवार का दिन आया तो बहू ने पति से कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। इसपर वह बोला ख़ुशी खुशी कर। बहु ने जेठ के लड़कों को जीमने के लिए पुकारा।
पीछे से जिठानियों ने अपने बच्चों को सिखाकर भेजा कि तुम खटाई मांगना ताकि उद्यापन पूरा न हो सके।’ लड़कों ने वहां जाकर खटाई मांगी पर बहू ने मना कर दिया। यह सुनकर लड़के खड़े हो गये और बोले कि पैसा लाओ। वे उन पैसों से इमली की खटाई मंगाकर खाने लगे। इस पर संतोषी माता को क्रोध आया और उसके पति को राजा के दूत पकड़ कर ले गये। उसने संतोषी माता (Santoshi Mata) से कहा कि मेरी इसमें क्या गलती मैंने तो लड़कों को सिर्फ पैसे दिए थे, मैंने व्रत का पालन पूरी श्रद्धा से लिया था। मुझे क्षमा करो मैं अगले शुक्रवार फिर उद्यापन करूंगी। माता से प्रार्थना करने में कुछ समय बाद ही उसे अपनी पति रास्ते में आता दिखाई दिया। अब फिर शुक्रवार आया और उसने दोबारा से उद्यापन करना शुरू किया। उसने एक बार फिर जेठ के लड़को को बुलावा भेजा। जेठानियों के कहने पर लड़के ने फिर खटाई मांगी। उसने कहा ‘ खटाई कुछ भी नहीं मिलेगी आना हो तो आओ।’ इतना कहकर वह ब्राह्मणों के लड़को को लाकर भोजन कराने लगी। इस प्रकार संतोषी माता की कृपा से उसके चंद्रमा के समान सुन्दर पुत्र हुआ।

अपनी भक्त को रोज़-रोज़ मंदिर आते देख एक बार संतोषी माता के मन में विचार आया कि आज मैं इसके घर चलती हूँ। माता ने एक भयानक रूप लिया और गुड़-चने से सना मुख, जिन पर मक्खियां भिनभिना रही थी ऐसी सूरत में वह अपने भक्त के घर पहुंची। घर में पाँव रखते ही उसकी सास बोली ‘ देखो कोई इसे भगाओ नहीं तो किसी को खा जायेगी।’सातवे लड़के की बहु यह सब खिड़की से देख रही थी, अपने सास के व्यवहार पर बोली कि आज मेरी माता मेरे ही घर आई है।’ सासूजी मैं जिनका व्रत करती हूँ, यह वही संतोषी माता हैं। ऐसा कह कर उसने घर की सारी खिड़कियां खोल दी। यह सुनकर सभी ने संतोषी माता के चरण पकड़ लिए और विनती करने लगे कि – “हे माता ! हम मूर्ख हैं, अज्ञानी है, पापिनी है, तुम्हारा व्रत भंग कर हमने बहुत बड़ा अपराध किया है। हे माता ! हमारा अपराध माफ करो।” माता ने सभी को क्षमा किया और उस घर पर सदैव संतोषी माता की कृपा बनी रही तथा सबका उद्धार होता रहा। इस प्रकार जो भी जातक शुक्रवार  के दिन व्रत का विधिपूर्वक पालन कर Santoshi Mata ki Katha का पाठ करते हैं उनके सभी दुःख दर्द दूर हो जाते हैं।  

संतोषी माता  के बारे में 14 तथ्य

  • संतोषी माता हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवी माता है, जिन्हें संतोष की देवी माना जाता है।
  • वे माता सती और पार्वती के एक स्वरूप के रूप में मानी जाती हैं।
  • संतोषी माता की पूजा और व्रत मुख्य रूप से खुशियों, संतोष और प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए किए जाते हैं।
  • उनके पूजन के व्रतों में आमतौर पर शुक्रवार को खाद्य पदार्थ नहीं खाने का आदर्श दिया जाता है।
  • संतोषी माता की पूजा में विशेष रूप से सतुआना और चने का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
  • उनके पूजन के दौरान खाद्य पदार्थों को छोड़कर केवल फल और निराहार पदार्थों का सेवन किया जाता है।
  • संतोषी माता के पूजन से मनोबल और आत्मा में शांति मिलती है, और लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए उनके आशीर्वाद की प्राप्ति करते हैं।
  • उनके पूजन में सरलता और श्रद्धा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
  • संतोषी माता की कथाएँ भक्तों के बीच प्रसिद्ध हैं और उनके आदर्श और आशीर्वाद को प्रकट करती हैं।
  • उनके पूजन से दुखों और संकटों का निवारण होता है, और भक्त उनके पास आए जाने वाले समस्याओं के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
  • संतोषी माता के व्रत में आमतौर पर संतोषी माता के व्रत कथा की पाठशाला भी होती है, जिसमें उनकी कथाएँ सुनाई जाती हैं।
  • उनके पूजन से भक्तों की मनोबल में वृद्धि होती है और उन्हें सफलता की दिशा में मदद मिलती है।
  • संतोषी माता के पूजन से उनके भक्तों की जीवन में धर्मिकता, उद्धारण और आध्यात्मिक उत्थान होता है।
  • उनके पूजन से भक्तों का मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता है, और उन्हें आत्मा के आदर्शों की प्राप्ति होती है।

संतोषी माता की पूजा की सामान्य विधि

  • पूजा के लिए स्थान तैयार करें:- पूजा के लिए एक साफ और शुद्ध स्थान तैयार करें। यह स्थान आपके घर में हो सकता है जिसे आप पूजा के लिए अलग कर सकते हैं।
  • पूजा सामग्री का वितरण:- पूजा के लिए सामग्री जैसे कि मिठाई, फूल, दीपक, अगरबत्ती, धूप, रोली, चावल, कलश, फल, नरमिश्रित चावल, जल, गंगाजल, आदि की तैयारी करें।
  • देवी का प्रतिमा या चित्र स्थापित करें:- संतोषी माता की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
  • पूजा की आरम्भ करें:- पूजा की शुरुआत करने से पहले, अपने मन को शुद्ध करने के लिए मेधाशक्ति के साथ ध्यान करें।
  • कलश स्थापना:- पूजा की शुरुआत में कलश को स्थापित करें और उसमें गंगाजल और सुगंधित पानी डालें।
  • पूजा की समापन करें:- पूजा के अंत में आरती और प्रसाद की विधि के साथ पूजा की समापन करें।
  • आरती:- संतोषी माता की आरती गाएं और दीपक की आरती करें।
  • प्रसाद बांटें:- पूजा के प्रसाद की विधि के साथ प्रसाद बांटें और उसे सभी को खिलाएं।
  • मंत्रों का जाप:- संतोषी माता के मंत्रों का जाप करें, जैसे कि "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं संतोष्यै नमः" और अन्य मंत्र।
  • ध्यान और प्रार्थना:- पूजा के दौरान संतोषी माता के दर्शन करके ध्यान करें और अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की प्रार्थना करें।कृपया ध्यान दें कि यह सामान्य विधि है और व्यक्तिगत प्राथाओं और परंपराओं के आधार पर विधि में बदलाव हो सकता है। पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए स्थानीय पंडित या धार्मिक विशेषज्ञ से सलाह लें।

टिप्पणियाँ