माँ दुर्गा के नौ रूपों में तीसरा रूप है "चंद्रघंटा" /Chandraghanta is the third form among the nine forms of Maa Durga.

माँ दुर्गा के नौ रूपों में तीसरा रूप है "चंद्रघंटा"


चंद्रघंटा, स्वयं में सुंदर एवं चारमुखी देवी होती हैं और उनका वाहन सिंह होता है। इस रूप में माँ दुर्गा का वाम हाथ पंजे के साथ अर्धचंद्रकारी भवनद्धारी होता है और दाहिने हाथ में कटारी या त्रिशूल होता है।
चंद्रघंटा का रूप माँ दुर्गा के नौ दिनी नवरात्रि के तीसरे दिन पर पूजा जाता है। इस अवतार के साथ माँ दुर्गा मानवता को शक्ति, सौभाग्य, समृद्धि, और अनुग्रह की प्राप्ति की दृष्टि से देखी जाती हैं। वे शांति और दया की अभिव्यक्ति के लिए प्रेरित करती हैं और भक्तों की रक्षा करने का काम करती हैं।
चंद्रघंटा की पूजा से भक्तों को दुष्ट शक्तियों से मुक्ति मिलती है और उन्हें सभी दिक्कतों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। यह रूप भक्तों को सफलता और सुख के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
माँ चंद्रघंटा की भक्ति और पूजा करने से हम उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित होते हैं। इस रूप का ध्यान करके हम अपनी आत्म-साधना और सामर्थ्य को विकसित कर सकते हैं और अंततः समस्त संसार के लिए उपकारी बन सकते हैं।

चंद्रघंटा माता की कथा (Chandraghanta Mata Katha):



पूर्वकथा:
प्राचीन काल में दानवराज राजा धूम्रवर्ण नामक राजा बहुत ही बलशाली और साहसी था। वह अपनी शक्तिशाली सेना के साथ सृष्टि में अत्यधिक विशाल साम्राज्य बनाना चाहता था। उसने अपनी अद्भुत शक्तियों का लाभ उठाने के लिए देवता और ऋषि मुनियों पर हमला करने का फैसला किया।
देवताओं और ऋषियों ने इस बड़े दानव राजा के सामने खड़े होकर अपनी स्तुति और प्रार्थना की, लेकिन राजा धूम्रवर्ण उन्हें न तो ध्यान देता था और न ही उन्हें सम्मानित करता था।
माँ दुर्गा का उद्भव:
देवताओं और ऋषियों को धूम्रवर्ण के हमले से पीड़ित देखकर देवी दुर्गा ने अपने आप को चंद्रघंटा माँ के रूप में प्रकट किया। वे मून के चंद्रमा के समान सुंदर और शांत स्वरूप में प्रकट हुई।
देवी चंद्रघंटा की साधना:
माँ दुर्गा ने अपने चंद्रघंटा रूप के बल से राजा धूम्रवर्ण की सेना को दूर कर दिया और उन्हें पराजित कर दिया। इसके बाद वे राजा के साम्राज्य में शांति और समृद्धि की स्थापना करने में लगीं।
चंद्रघंटा माता के ध्यान मंत्र:
चंद्रघण्टायै विद्महे, विशोधरायै धीमहि। तन्नो तन्नो चंद्रघंटा प्रचोदयात्।
चंद्रघंटा माता का महत्व:
चंद्रघंटा माँ का रूप विशेष रूप से नवरात्रि के तीसरे दिन (तृतीया तिथि) पूजा जाता है। उन्हें भक्त उनकी कृपा को प्राप्त करने और दुष्टता से मुक्त होने के लिए पूजते हैं। चंद्रघंटा माँ की पूजा से भक्तों को सौभाग्य, समृद्धि, और सफलता की प्राप्ति होती है। भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उन्हें उच्च स्तरीय आनंद का अनुभव होता है।यह थी चंद्रघंटा माँ की कथा, उनकी पूजा और महत्व का संक्षेप में वर्णन। माँ चंद्रघंटा की कृपा से सभी भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त हो। उनके चरणों में अपनी भक्ति और शरण लेने से हम अपने जीवन को समृद्ध एवं समृद्धिशालीबना सकते हैं।
नोट: ऊपर दी गई कथा भारतीय पुराणों और लोककथाओं पर आधारित है और इसका लक्ष्य धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं का परिचय करना है।

माँ दुर्गा के तीसरे अवतार, चंद्रघंटा, के बारे में कुछ रोचक तथ्य हैं:

1. नाम का अर्थ: "चंद्रघंटा" शब्द का अर्थ है "चंद्रमा की बेल"। उनके मूर्तियों में चंद्रघंटा माँ को दस उग्र भयानक रूपों में दिखाया जाता है, जो भक्तों को समस्त दुष्टता से मुक्ति देते हैं।
2. तृतीया दिवस: माँ चंद्रघंटा का विशेष महत्व नवरात्रि के तीसरे दिन को होता है, जब उनकी पूजा की जाती है।
3. चार मुख: चंद्रघंटा माँ चार मुखों के साथ प्रतीत होती हैं, जो धरती, आकाश, तपोभूमि और पाताल को प्रतिनिधित्व करते हैं।
4. शांति का प्रतीक: चंद्रघंटा माँ को शांति और शुभकामनाओं का प्रतीक माना जाता है। उनके वरदान से भक्तों को समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।
5. सिंहवाहन: चंद्रघंटा माँ का वाहन एक सिंह होता है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।
6. दुष्टता का नाश: चंद्रघंटा माँ का अवतार दुष्टता और अधर्म को नष्ट करने के लिए प्रचंड शक्ति के साथ प्रकट होता है।
7. नावरात्रि के दूसरे अवधि: माँ दुर्गा के नौ रूपों में चंद्रघंटा नावरात्रि के दूसरे अवधि में प्रकट होती हैं, जिसमें भक्त उनकी पूजा करते हैं और उन्हें आशीर्वाद प्राप्त होता है।
8. रक्षा का दायित्व: चंद्रघंटा माँ अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए प्रसिद्ध हैं और उन्हें सभी कठिनाइयों का सामना करने में मदद करती हैं।
9. धार्मिक उपास्य: माँ चंद्रघंटा भारतीय संस्कृति में एक प्रमुख धार्मिक उपास्य मां मानी जाती हैं। उन्हें भक्ति और समर्पण के साथ पूजने से भक्तों को शक्ति, सौभाग्य, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
यह थे कुछ रोचक तथ्य माँ चंद्रघंटा के बारे में। उनकी पूजा नवरात्रि में विशेष भक्ति और समर्पण के साथ की जाती है और उनके आशीर्वाद से भक्त उनके शक्ति और कृपा को प्राप्त होते हैं।

चंद्रघंटा माँ की पूजा करने के लिए निम्नलिखित विधि 

चंद्रघंटा माँ की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन आदि शक्ति माता दुर्गा के नौ अवतारों में से एक के रूप में की जाती है। यह पूजा भक्तों को साहस, शक्ति, सौभाग्य, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए की जाती है। चंद्रघंटा माँ की पूजा करने के लिए निम्नलिखित विधि अनुसरण की जा सकती है:
1. पूजा की तैयारी:
- स्नान और नित्य पूजा के बाद पवित्र शरीर के साथ पूजा के लिए बैठें।
- पूजा के लिए एक धार्मिक स्थान को चुनें, जहां आप पूजा कर सकते हैं।
2. आधार विधि:
- पूजा का आधार विधि मां दुर्गा और नवग्रहों का स्तुति करने से शुरू होता है। उनके चरणों में नमस्कार करें और मंत्रों के साथ उनकी पूजा करें।
3. कलश स्थापना:
- पूजा स्थल पर एक कलश स्थापित करें और उसमें शुद्ध जल, सुपारी, कुमकुम, अक्षता, नारियल और मिठाई रखें। कलश को माँ चंद्रघंटा के रूप में स्थानांतरित करें।
4. आरती और मन्त्रों का पाठ:
- माँ चंद्रघंटा के नाम से प्रारंभ करके उनके अष्टोत्तर शतनामावली और मंत्रों का पाठ करें। उन्हें फूल, धूप, दीप, चावल और नैवेद्य से अर्चना करें।
5. चंद्रघंटा माँ की आराधना:
- पूजा के बाद, माँ चंद्रघंटा के स्वरूप की ध्यान धारण करें और उन्हें आराधना करें। भक्ति भाव से उनकी पूजा करें और उन्हें अपनी इच्छाओं और मनोकामनाओं का समर्पण करें।
6. विसर्जन:
- पूजा के बाद, प्रसाद को बांटें और उन्हें खुद भी खाएं।
- पूजा सामग्री को सुरक्षित रखें और अगले वर्ष उपयोग के लिए संग्रहीत करें।
ध्यान दें कि चंद्रघंटा माँ की पूजा करने से पहले, आपको इसे सही विधि के साथ करने के लिए एक पंडित या प्राथमिक ज्ञान रखने वाले धार्मिक व्यक्ति से संपर्क करने की सलाह दी जाती है। पूजा के दौरान विशेष आदर्श, शुद्धता, और श्रद्धा रखें।

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