मां सिद्धिदात्री, मां दुर्गा के नवरात्रि के नौवें दिन पूजी जाती हैं /Maa Siddhidatri, Maa Durga is worshiped on the ninth day of Navratri

मां सिद्धिदात्री, मां दुर्गा के नवरात्रि  के नौवें दिन पूजी जाती हैं 

माता सिद्धिदात्री की कथा:

कल्युग में एक ब्राह्मण ब्राह्मणी द्वारा पाला जाता था, जिन्हें अपने अजीब व्यवहार की वजह से लोग अज्ञातवासी समझते थे। वे धन धान्य से भरा हुआ था, परंतु उनके यहां दुर्भाग्यवश भीक्षापात्र बिना रहना पड़ता था। अपने आप को निराश और बेचारा मानने वाले उनके निकट भक्त नहीं थे। वे व्यापार में सफलता नहीं प्राप्त कर पाते थे और उनके घर के वास्तविक धन एवं सुख की कमी थी।
एक दिन, उन्हें एक संत महात्मा से मिलने का अवसर मिला। वे संत महात्मा भावभीनी आंखों से उन्हें देखते हुए बोले, "हे ब्राह्मण, मेरा देखा हुआ भविष्य दर्शन आपको भविष्य में एक साध्वी व्रती संतान प्राप्त होगी, जो आपकी समस्याओं का समाधान करेगी और सुख-शांति का आशीर्वाद प्रदान करेगी।"
उस महात्मा के वचनों से प्रेरित होकर ब्राह्मण अपने घर में एक साध्वी महिला के रूप में संतान की प्रतीक्षा करने लगा। धीरे-धीरे, समय बीत गया और उन्हें एक बेहद सुंदर बालिका को जन्म देते देखा। वे समझ गए कि वह संतान सिद्धिदात्री नामक देवी का अवतार है, जो उन्हें समस्त समस्याओं से मुक्त करेगी और सुख-शांति की प्राप्ति कराएगी।सिद्धिदात्री मां के प्रत्यक्ष दर्शन के बाद, उन्होंने व्रती और ध्यानी भाव से देवी की पूजा करनी शुरू की। मां सिद्धिदात्री अत्यंत प्रसन्न हुईं और उन्हें अपने समीप आने का आशीर्वाद दिया। वे ब्राह्मण के घर में विजयी रहने लगीं और उनकी समस्त दुःखों को दूर करके सुख-शांति का आनंद प्रदान करती रहीं।
इस प्रकार, मां सिद्धिदात्री ने अपने अनुयायियों को सिद्धि और समृद्धि की प्राप्ति का संदेश दिया और उन्हें सुखी जीवन जीने का मार्ग दिखाया। उनकी विजय की कथा हमारे जीवन में सिद्धि और शुभकामनाएं प्रदान करती है।

माँ सिद्धिदात्री का मंत्र:

ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
माँ सिद्धिदात्री का अर्थ:
इस मंत्र में, "ॐ" बीज मंत्र है, जो सभी मंत्रों की आधारभूत ध्वनि है। "देवी" शब्द से भगवती का संबोधन किया जाता है, जो सिद्धिदात्री के अन्तर्गत हैं, जो सिद्धि और विजय प्रदान करती हैं। "सिद्धिदात्र्यै" शब्द से सिद्धिदात्री की प्रसन्नता और समर्थन का भाव प्रकट होता है। इस मंत्र का जाप करने से भक्त को सिद्धि, समृद्धि और समस्त शुभकामनाएं प्राप्त होती हैं और उसे दुर्गाशक्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
ध्यान रखें कि मंत्र का जाप निश्चित शुभ मुहूर्त में और भक्ति भाव से किया जाना चाहिए। इसके लिए एक माला का प्रयोग किया जा सकता है, और जाप की संख्या को स्थानीय पंडित या विद्वान की सलाह लेने के बाद निर्धारित किया जा सकता है। मंत्र के जाप से पूर्व, अपने मन को शुद्ध और शांत करके भगवती माँ का ध्यान करें और उन्हें भक्ति भाव से स्मरण करें।

मां सिद्धिदात्री की स्तुति, स्तोत्र और आरती 

उनके भक्तों द्वारा पढ़ी जाती हैं ताकि उन्हें उनकी कृपा मिले और वे सभी भक्तिभाव से उन्हें आराधे। यहां एक आरती और स्तोत्र दिया गया है:
सिद्धिदात्री आरती:
(आरती को दिन में एक या दो बार गाया जा सकता है)
जय सिद्धिदात्री माँ, जय विजयमाता।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश की सुता, जगजननी माता॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी, सिंघारुधिराजतिलक चांवठक विक्रांति।
वामे भूषित कर माणिक्य मणिलसत चारु चारु मुखवृन्दविक्रांति॥
कट्यायनी पद्मासन सुधा शांति समृद्धिदात्री।
सिद्धिदात्री जय माँ तू, कल्याणकारिणी॥
माँ सिद्धिदात्री की स्तुति:
या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु दुर्गारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु स्वर्णार्चितेन रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
माँ सिद्धिदात्री की आपकी आराधना करते समय आप इन स्तोत्रों और आरती का पाठ कर सकते हैं। यह आपको मां के कृपालु आशीर्वाद के प्रति और उनके आगमन के प्रतीक्षा के समय करीब ला सकता है। ध्यान रखें कि इन स्तोत्रों और आरती को पढ़ते समय भक्ति और समर्पण के साथ करें।

माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन कर सकते हैं:

सामग्री:
1. माँ सिद्धिदात्री की मूर्ति या चित्र
2. गंध (सुगंधित चंदन)
3. कुमकुम (रंगों का पाउडर)
4. फूल (पुष्प)
5. दीपक (दिया) और घी
6. धूप बत्ती और धूप
7. नैवेद्य (भोग) - प्रसाद
8. पंचामृत (मिश्रित दूध, दही, घी, शहद, शर्करा)
9. साफ कपड़े और थाली
10. कलश और गंगाजल
पूजा की विधि:
1. पूजा का आरंभ करने से पहले अपने शुद्ध और शुद्ध वस्त्रों में बदलें।
2. पूजा स्थल को साफ सुथरा करें और ऊपर से कवच (एक रक्षा पद्धति) रखें जो मां को भक्ति और सुरक्षा प्रदान करता है।
3. पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और उस पर माँ सिद्धिदात्री की मूर्ति या चित्र रखें।
4. मूर्ति को सुगंधित चंदन और कुमकुम से सजाएं।
5. आरती के लिए दीपक जलाएं। दीपक को घी से भरें और उसमें बत्ती लगाकर उसे जलाएं।
6. मां को पुष्प, फल, और मिठाई से भोग चढ़ाएं। पंचामृत से भी भोग चढ़ा सकते हैं।
7. पूजा के अंत में, मां को विशेष मन्त्रों और भजनों से समर्पित करें और उन्हें प्रार्थना में याद करें।
8. पूजा के बाद आरती गाएं और धूप और दीपक को मां के सामने घुमाएं।
9. आरती के बाद प्रसाद (नैवेद्य) को भक्तों में बांटें और खुद भी प्रसाद का सेवन करें।
10. अखंड दिया जलाएं और पूजा स्थल को पुनः साफ करें।
इस रीति-रिवाज के साथ मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से आपको उनकी कृपा मिलेगी और आपके जीवन में सिद्धि, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होगी। ध्यान रखें कि पूजा के समय आपका मन शुद्ध हो, भक्ति भाव से पूजा करें, और अपने मन से मां को समर्पित करें।

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