राम नाम की शक्ति ,मन्त्र, अर्थ, महत्व, '"राम' शब्द उच्चारण" राम’ नाम का क्या रहस्य हैं?

राम नाम की शक्ति , राम मन्त्र का अर्थ, 'राम'शब्द उच्चारण का महत्व, राम’ नाम का क्या रहस्य हैं?

What is the secret of the name Ram, the power, mantra, meaning, significance, the word 'Ram' pronounced "Ram"? 

राम नाम की शक्ति ;-

  • राम‘ सिर्फ एक नाम नहीं। राम मात्र दो अक्षर नहीं। राम हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक विरासत है। राम हमारी की एकता और अखंडता हैं। राम हमारी आस्था और अस्मिता के सर्वोत्तम प्रतीक हैं। राम सनातन धर्म की पहचान है। राम तो प्रत्येक प्राणी में रमा हुआ है, राम चेतना और सजीवता का प्रमाण है। अगर राम नहीं तो जीवन मरा है। इस नाम में वो ताकत है कि मरा-मरा करने वाला राम-राम करने लगता है। इस नाम में वो शक्ति है जो हजारों-लाखों मंत्रों के जाप में भी नहीं है। 
  • राम का अर्थ है ‘प्रकाश’। किरण एवं आभा (कांति) जैसे शब्दों के मूल में राम है। ‘रा’ का अर्थ है आभा (कांति) और ‘म’ का अर्थ है मैं, मेरा और मैं स्वयं। अर्थात मेरे भीतर प्रकाश, मेरे ह्रदय में प्रकाश।''बलशालियों में बलशाली हैं राम, लेकिन राम से भी बढ़कर राम का नाम''…   
  • ‘राम’ यह शब्द दिखने में जितना सुंदर है उससे कहीं महत्वपूर्ण इसका उच्चारण है। राम मात्र कहने से शरीर और मन में अलग ही तरह की प्रतिक्रिया होती है जो हमें आत्मिक शांति देती है। हजारों संतों-महात्माओं ने राम नाम जपते-जपते मोक्ष को पा लिया। 'रमंति इति रामः'' जो रोम-रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है। वही राम है। 
राम जीवन का मूल मंत्र है।राम मृत्यु का मंत्र नहीं, राम गति का नाम है। राम थमने-ठहरने का नाम नहीं, राम सृष्टि की निरंतरता का नाम है।
  • राम महादेव के आराध्य हैं। महादेव काशी में मृत्यु शय्या पर पड़े व्यक्ति (मृत व्यक्ति नहीं) को राम नाम सुनाकर भवसागर से तार देते हैं। भगवान शिव के हृदय में सदा विराजित राम भारतीय लोक जीवन के कण-कण में रमे हैं।राम ‘महामंत्र’ है… राम नाम ही परमब्रह्म है…
  • अनेकानेक संतों ने निर्गुण राम को अपने आराध्य रूप में प्रतिष्ठित किया है। कबीरदासजी ने कहा है- आत्मा और राम एक है- आतम राम अवर नहिं दूजा।
राम नाम कबीर का बीज मंत्र है। रामनाम को उन्होंने “अजपा जप” (जिसका उच्चारण नही किया जाता,अपितु जो स्वास और प्रतिस्वास के गमन और आगमन से सम्पादित किया जाता है।) कहा है। यह एक चिकित्सा विज्ञान आधारित सत्य है कि हम 24 घंटों में लगभग 21,600 श्वास भीतर लेते हैं और 21,600 उच्छावास बाहर फेंकते हैं।

  • इसका संकेत कबीरदाजी ने इस उक्ति में किया है- 
 सहस्र इक्कीस छह सै धागा, निहचल नाकै पोवै।

अर्थात- मनुष्य 21,600 धागे नाक के सूक्ष्म द्वार में पिरोता रहता है। अर्थात प्रत्येक श्वास-प्रश्वास में वह राम का स्मरण करता रहता है।
  •  स्कंद पुराण में वेद व्यास महाराज जी कहते हैं कि जो लोग राम-राम मंत्र का उच्चारण करते हैं। खाते-पीते, सोते, चलते और बैठते समय, सुख में या दुख में राम मंत्र का जाप करते हैं, उन्हें दुख, दुर्भाग्य व व्याधि का भी भय नहीं रहता। प्रभु श्रीराम सभी प्रकार के सुखों देने वाले स्वामी हैं। दीन-दुखी पर दया करने वाले कृपालु हैं।
  •  रमते योगितो यास्मिन स रामः
अर्थात्- योगीजन जिसमें रमण करते हैं वही राम हैं। इसी तरह ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है –  राम शब्दो विश्ववचनों, मश्वापीश्वर वाचकः अर्थात् ‘रा’ शब्द परिपूर्णता का बोधक है और ‘म’ परमेश्वर वाचक है। चाहे निर्गुण ब्रह्म हो या दाशरथि राम हो, विशिष्ट तथ्य यह है कि राम शब्द एक महामंत्र है।
  •  राम नाम का ‘महामंत्र’ आपको जीवन की सभी परेशानियों से बचता है…“श्री राम जय राम जय जय राम” मंत्र आपने कई बार सुना होगा और भजन आदि के समय इसका जाप भी किया होगा लेकिन आपको इसकी शक्ति का शायद पता ना हो। इस मंत्र में इतनी शक्ति है कि आपको कितनी भी बड़ी दुविधा से निकाल सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसके उच्चारण या कहें जाप करने के लिए किसी नियम का पालन करने की आवश्यकता नहीं है। इस मंत्र को आप दिन के किसी भी समय, कहीं भी हों, जाप कर सकते हैं।
  • मंत्र की महिमा- इसमें ‘श्री’, ‘राम’ और ‘जय’ तीन शब्दों का एक खास क्रम में दुहराव हो रहा है। ‘श्री’ का यहां अर्थ लक्ष्मी स्वरूपा ‘सीता’ या शक्ति से है, वहीं राम शब्द में ‘रा’ का तात्पर्य ‘अग्नि’ से है… ‘अग्नि’ जो ‘दाह’ करने वाला है तथा संपूर्ण दुष्कर्मों का नाश करती है। ‘म’ यहां ‘जल तत्व’ का प्रतीक है। जल को जीवन माना जाता है, इसलिए इस मंत्र में ‘म’ से तात्पर्य जीवत्मा से है।
  • इसलिए इस मंत्र का संपूर्ण अर्थ यह जाता है कि वह शक्ति जो संपूर्ण दूषित कर्मों का नाश करते हुए जीवन का वरण करती हो या आत्मा पर विजय प्राप्त करती हो। इसलिए जो कोई भी इस मंत्र का नियमित रूप से जाप करता है वह जहां अचानक आने वाली परेशानियों से बचा रहता है, जीवन की कोई भी मुश्किल उसकी उन्नति में बाधा नहीं बनती.
  • राम नाम सत्य है…राम नाम निर्विवाद रूप से सत्य है और यह भी निर्विवाद रूप से सत्य है कि राम नाम के निरंतर जाप से सद्गति प्राप्त होती है। राम नाम की इस अद्भुत महिमा को श्रीरामचरितमानस के माध्यम से तुलसीदासजी ने अनेक कथा प्रसंगों में प्रकट किया है...हमारी अंतिम यात्रा के समय भी इसी ‘राम नाम सत्य है’ के घोष ने हमारी जीवनयात्रा पूर्ण की है। 

राम मन्त्र का अर्थ;-

  • र', 'अ' और 'म', इन तीनों अक्षरों के योग से 'राम' मंत्र बनता है। यही राम रसायन है। 'र' अग्निवाचक है। 'अ' बीज मंत्र है। 'म' का अर्थ है ज्ञान। यह मंत्र पापों को जलाता है, किंतु पुण्य को सुरक्षित रखता है और ज्ञान प्रदान करता है। हम चाहते हैं कि पुण्य सुरक्षित रहें, सिर्फ पापों का नाश हो। 'अ' मंत्र जोड़ देने से अग्नि केवल पाप कर्मो का दहन कर पाती है और हमारे शुभ और सात्विक कर्मो को सुरक्षित करती है।
  • 'म' का उच्चारण करने से ज्ञान की उत्पत्ति होती है। हमें अपने स्वरूप का भान हो जाता है। इसलिए हम र, अ और म को जोड़कर एक मंत्र बना लेते हैं-राम। 'म' अभीष्ट होने पर भी यदि हम 'र' और 'अ' का उच्चारण नहीं करेंगे तो अभीष्ट की प्राप्ति नहीं होगी।
‘रा’ अक्षर के कहत ही निकसत पाप पहार ।
पुनि भीतर आवत नहिं देत ‘म’कार किंवार ।।

अर्थात्— ‘रा’ अक्षर के कहते ही सारे पाप शरीर से बाहर निकल जाते हैं और वे दुबारा शरीर में प्रविष्ट नहीं हो पाते क्योंकि ‘म’ अक्षर तुरन्त शरीर के सारे दरवाजे (किवाड़) बन्द कर देता है ।

  • नव शरीर पापों को भोगने के लिए मिला है, जब सारे पाप ही शरीर से निकल जाएंगे तो शरीर अपने-आप स्वस्थ, पवित्र और ओजयुक्त हो जाएगा ।राम सिर्फ एक नाम नहीं अपितु एक मंत्र है, जिसका नित्य स्मरण करने से सभी दु:खों से मुक्ति मिल जाती है। राम शब्द का अर्थ है- मनोहर, विलक्षण, चमत्कारी, पापियों का नाश करने वाला व भवसागर से मुक्त करने वाला। 'रामनाम' से आशय विष्णु के अवतार राम की भक्ति से है या फिर निर्गुण निरंकार परम ब्रह्म से।
  • विद्वानों ने शास्त्रों के आधार पर राम के तीन अर्थ निकाले हैं। राम नाम का पहला अर्थ है 'रमन्ते योगिन: यस्मिन् राम:।' यानी 'राम' ही मात्र एक ऐसे विषय हैं, जो योगियों की आध्यात्मिक-मानसिक भूख हैं, भोजन हैं, आनन्द और प्रसन्नता के स्त्रोत हैं।
  • राम का दूसरा अर्थ है, 'रति महीधर: राम:।', 'रति' का प्रथम अक्षर 'र' है और 'महीधर' का प्रथम अथर 'म', राम। 'रति महीधर:' सम्पूर्ण विश्व की सर्वश्रेष्ठ ज्योतित सत्ता है, जिनसे सभी ज्योतित सत्ताएं ज्योति प्राप्त करती हैं।
  • ' राम' नाम का का तीसरा अर्थ है, 'रावणस्य मरणं राम:'। 'रावण' शब्द का प्रथम अक्षर है 'रा' और 'मरणं' का प्रथम अक्षर है 'म'। रा+ म= राम यानी वह सत्ता, जिसकी शक्ति से रावण मर जाता है।

'राम'शब्द उच्चारण का महत्व;-

  • 'राम' यह शब्द दिखने में जितना सुंदर है उससे कहीं महत्वपूर्ण है इसका उच्चारण। 'राम' कहने मात्र से शरीर और मन में अलग ही तरह की प्रतिक्रिया होती है, जो हमें आत्मिक शांति देती है। इस शब्द की ध्वनि पर कई शोध हो चुके हैं और इसका चमत्कारिक असर सिद्ध किया जा चुका है इसीलिए कहते भी हैं कि 'राम से भी बढ़कर श्रीरामजी का नाम है'।
  • हमारे दु:ख कायिक, वाचिक और मानसिक—ये तीन प्रकार के होते हैं । निरन्तर राम-नाम का जप करते रहने से मनुष्य के शरीर व प्राणों का व्यायाम हो जाता है जिससे शरीर स्वस्थ रहता है । राम-नाम का जप करते रहने से मनुष्य अन्य अपशब्दों का उच्चारण नहीं करता है जिससे वाणी शुद्ध हो जाती है ।
  • पवित्र राम-नाम लेते रहने से आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है, मनुष्य के बुरे विचार और आदतें दूर हो जाती हैं और वह पवित्रता, महानता और उच्च आदर्शों के मार्ग पर चलने लगता है । यही आध्यात्मिक उन्नति धीरे-धीरे हमें स्वास्थ्य, सुख, शान्ति और संतुलन की ओर ले जाती है । प्रभु श्रीराम नाम के उच्चारण से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। जो लोग ध्वनि विज्ञान से परिचित हैं वे जानते हैं कि 'राम' शब्द की महिमा अपरंपार है।
  • जब हम 'राम' कहते हैं तो हवा या रेत पर एक विशेष आकृति का निर्माण होता है। उसी तरह चित्त में भी विशेष लय आने लगती है। जब व्यक्ति लगातार 'राम' नाम जप करता रहता है तो रोम-रोम में प्रभु श्रीराम बस जाते हैं। उसके आसपास सुरक्षा का एक मंडल बनना तय समझो। प्रभु श्रीराम के नाम का असर जबरदस्त होता है। आपके सारे दुःख हरने वाला सिर्फ एकमात्र नाम है- 'हे राम।'

''राम'' के नाम का रहस्य;-

  1. भगवान राम के जन्म के पूर्व इस नाम का उपयोग ईश्वर के लिए होता था अर्थात ब्रह्म, परमेश्वर, ईश्वर आदि की जगह पहले ‘राम’ शब्द का उपयोग होता था, इसीलिए इस शब्द की महिमा और बढ़ जाती है तभी तो कहते हैं कि राम से भी बढ़कर श्रीराम का नाम है। राम’ शब्द की ध्वनि हमारे जीवन के सभी दुखों को मिटाने की ताकत रखती है। यह हम नहीं ध्वनि विज्ञान पर शोध करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि राम नाम के उच्चारण से मन शांत हो जाता।
  2. राम या मार : राम का उल्टा होता है म, अ, र अर्थात मार। मार बौद्ध धर्म का शब्द है। मार का अर्थ है- इंद्रियों के सुख में ही रत रहने वाला और दूसरा आंधी या तूफान। राम को छोड़कर जो व्यक्ति अन्य विषयों में मन को रमाता है, मार उसे वैसे ही गिरा देती है, जैसे सूखे वृक्षों को आंधियां।
  3. अध्यात्म रामायण- मान्यता के अनुसार सर्वप्रथम श्रीराम की कथा भगवान शंकर ने देवी पार्वती को सुनाई थी। उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म कागभुशुण्डि के रूप में हुआ। काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। इस प्रकार रामकथा का प्रचार-प्रसार हुआ। भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा ‘अध्यात्म रामायण’ के नाम से विख्यात है। ”अध्यात्म रामायण’ को ही विश्व का प्रथम रामायण माना जाता है।
  4. हनुमन्नाटक- हालांकि रामायण के बारे में एक मत और प्रचलित है और वो यह है कि सबसे पहले रामायण हनुमानजी ने लिखी थी, फिर महर्षि वाल्मीकि संस्कृत महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना की। ‘हनुमन्नाटक’ को हनुमानजी ने इसे एक शिला पर लिखा था। यह रामकथा वाल्मीकि की रामायण से भी पहले लिखी गई थी और ‘हनुमन्नाटक’ के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि जब वाल्मीकिजी ने अपनी रामायण तैयार कर ली तो उन्हें लगा कि हनुमानजी के हनुमन्नाटक के सामने यह टिक नहीं पाएगी और इसे कोई नहीं पढ़ेगा।
  5. हनुमानजी को जब महर्षि की इस व्यथा का पता चला तो उन्होंने उन्हें बहुत सांत्वना दी और अपनी रामकथा वाली शिला उठाकर समुद्र में फेंक दी, जिससे लोग केवल वाल्मीकिजी की रामायण ही पढ़ें और उसी की प्रशंसा करें। समुद्र में फेंकी गई हनुमानजी की रामकथा वाली शिला राजा भोज के समय में निकाली गयी।
  6. गोस्वामी तुलसीदास, जिनका जन्म सन् 1554 ई. हुआ था, ने रामचरित मानस की रचना की। सत्य है कि रामायण से अधिक रामचरित मानस को लोकप्रियता मिली है लेकिन यह ग्रंथ भी रामायण के तथ्यों पर ही आधारित है।श्रीराम नाम के दो अक्षरों में ‘रा’ तथा ‘म’ ताली की आवाज की तरह हैं, जो संदेह के पंछियों को हमसे दूर ले जाती हैं। ये हमें देवत्व शक्ति के प्रति विश्वास से ओत-प्रोत करते हैं। इस प्रकार वेदांत वैद्य जिस अनंत सच्चिदानंद तत्व में योगिवृंद रमण करते हैं उसी को परम ब्रह्म श्रीराम कहते हैं-
  7. गोस्वामी जी  कहते हैं :- महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥ (मानस, बाल, दोहा-19/3) यह ‘राम’ नाम महामंत्र है जिसे महेश्वर, भगवान शंकर जपते हैं और उनके द्वारा यह राम नाम उपदेश का काशी में मुक्ति का कारण है। ‘र’, ‘आ’ और ‘म’ इन तीन अक्षरों के मिलने से यह राम नाम तो हुआ ‘महामंत्र’ और बाकी दूसरे सभी नाम हुए साधारण मंत्र।
  8. ''सप्तकोट्य महामंत्राश्चित्तविभ्रमकारका:। एक एव परो मन्त्रो ‘राम’ इत्यक्षरद्वयम्''॥सात करोड़ मंत्र हैं। वे चित्त को भ्रमित करने वाले हैं। यह दो अक्षरों वाला राम नाम परम मंत्र है। यह सब मंत्रों में श्रेष्ठ मंत्र है। सब मंत्र इसके अंतर्गत आ जाते हैं। कोई भी मंत्र बाहर नहीं रहता।  सब शक्तियां इसके अंतर्गत हैं।
  9. यह ‘राम’ नाम काशी में मरने वालों की मुक्ति का हेतु है। भगवान शंकर मरने वालों के कान में यह राम नाम सुनाते हैं और इसको सुनने से काशी में उन जीवों की मुक्ति हो जाती है। एक सज्जन कह रहे थे कि काशी में मरने वालों का दायां कान ऊंचा हो जाता है-ऐसा मैंने देखा है। मानव मरते समय दाएं कान में भगवान शंकर राम नाम मंत्र देते हैं। इस विषय में  कहा गया है कि ‘‘जब प्राणों का प्रयाण होता है तो उस समय भगवान शंकर उस प्राणी के कान में राम नाम सुनाते हैं।परन्तु क्यों सुनाते हैं?
  10. वे यह विचार करते हैं कि भगवान से विमुख जीवों की खबर यमराज लेते हैं, वे सबको दंड देते हैं परंतु मैं संसार भर का मालिक हूं। लोग मुझे विश्वनाथ कहते हैं और मेरे रहते हुए मेरी इस काशीपुरी में आकर यमराज दंड दे तो यह ठीक नहीं है। अरे भाई, किसी को दंड या पुरस्कार देना तो मालिक का काम है। राजा की राजधानी में बाहर से दूसरा आकर ऐसा काम करे तो राजा की पोल निकलती है न। सारे संसार में नहीं तो कम से कम वाराणसी में जहां मैं बैठा हूं, यहां आकर यमराज दखल दे, यह कैसे हो सकता है।
  11. काशी में ‘वरुणा’ और ‘असी’ दोनों नदियां गंगा जी में आकर मिलती हैं। उनके बीच का क्षेत्र ‘वाराणसी’ है। इस क्षेत्र में मछली हो या मेंढक हो या अन्य कोई जीव जंतु हों, आकाश में रहने वाले हों या जल में रहने वाले हों या थल में रहने वाले जीव हों उनको भगवान शंकर मुक्ति देते हैं। यह है काशी वास की महिमा। काशी की महिमा बहुत विशेष मानी गई है। यहां रहने वाले यमराज की फांसी से दूर हो जाएं इसके लिए शंकर भगवान हरदम सजग रहते हैं। मेरी प्रजा को काल का दंड न मिले ऐसा विचार हृदय में रखते हैं।
  12. अध्यात्म रामायण में भगवान श्री राम की स्तुति करते हुए भगवान शंकर कहते हैं-जीवों की मुक्ति के लिए आपका ‘राम’ नाम रूपी जो स्तवन है अंत समय में मैं इसे उन्हें सुना देता हूं जिससे उन जीवों की मुक्ति हो जाती है- ‘अहं हि काश्यां...दिशामि मंत्रं तव राम नाम।’जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं अंत राम कहि आवत नाहीं॥
  13. अंत समय में राम कहने से वह फिर जन्मता-मरता नहीं। ऐसा राम नाम है। भगवान ने ऐसा मुक्ति का क्षेत्र खोल दिया। कोई भी अन्न का क्षेत्र खोले तो पास में पूंजी चाहिए। बिना पूंजी के अन्न कैसे देगा? शंकर जी कहते हैं-हमारे पास ‘राम’ नाम की पूंजी है। इससे जो चाहे मुक्ति ले लो।
  14. मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि कर। जहं बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न॥ यह काशी भगवान शंकर का मुक्ति क्षेत्र है। यह राम नाम की पूंजी ऐसी है कि कम होती ही नहीं। अनंत जीवों की मुक्ति कर देने पर भी इसमें कमी नहीं आती। आए भी तो कहां से। वह अपार है, असीम है।
  15. नाम की महिमा कहते-कहते गोस्वामी जी  कहते हैं :कहौं कहां लगि नाम बड़ाई, रामु न सकङ्क्षह नाम गुन गाई॥ (बाल.दो.26/8) भगवान श्री राम भी नाम का गुणगान नहीं गा सकते। इतने गुण राम नाम में हैं।‘महामंत्र जोइ जपत महेसू’ इसका दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि यह महामंत्र इतना विलक्षण है कि महामंत्र राम नाम जपने से ‘ईश’ भी महेश हो गए। महामंत्र का जप करने से आप भी महेश के समान हो सकते हैं।
  16. भगवान के चरित्र अनंत हैं . उन चरित्र को लेकर नाम जप भी अनंत ही होगा .वाल्मीकि ने सौ करोड़ श्लोकों की रामायण बनाई , तो सौ करोड़ श्लोकों की रामायण को भगवान शंकर के आगे रख दिया जो सदैव राम नाम जपते रहते हैं . उन्होनें उसका उपदेश पार्वती को दिया .भगवान शंकर ने रामायण के तीन विभाग कर त्रिलोक में बाँट दिया . तीन लोकों को तैंतीस - तैंतीस करोड़ दिए तो एक करोड़ बच गया . उसके भी तीन टुकड़े किए तो एक लाख बच गया उसके भी तीन टुकड़े किये तो एक हज़ार बच और उस एक हज़ार के भी तीन भाग किये तो सौ बच गया . उसके भी तीन भाग किए एक श्लोक बच गया . इस प्रकार एक करोड़ श्लोकों वाली रामायण के तीन भाग करते करते एक अनुष्टुप श्लोक बचा रह गया . एक अनुष्टुप छंद के श्लोक में बत्तीस अक्षर होते हैं उसमें दस - दस करके तीनों को दे दिए तो अंत में दो ही अक्षर बचे भगवान् शंकर ने यह दो अक्षर रा और म आपने पास रख लिए . राम अक्षर में ही पूरी रामायण है , पूरा शास्त्र है .
  17. राम नाम वेदों के प्राण के सामान है . शास्त्रों का और वर्णमाल का भी प्राण है . प्रणव को वेदों का प्राण माना जाता है . प्रणव तीन मात्र वाल ॐ कार पहले ही प्रगट हुआ, उससे त्रिपदा गायत्री बनी और उससे वेदत्रय . ऋक , साम और यजुः - ये तीन प्रमुख वेद बने . इस प्रकार ॐ कार [ प्रणव ] वेदों का प्राण है . राम नाम को वेदों का प्राण माना जाता है , क्योंकि राम नाम से प्रणव होता है . जैसे प्रणव से र निकाल दो तो केवल पणव हो जाएगा अर्थात ढोल हो जायेगा . ऐसे ही ॐ में से म निकाल दिया जाए तो वह शोक का वाचक हो जाएगा . प्रणव में र और ॐ में म कहना आवश्यक है . इसलिए राम नाम वेदों का प्राण भी है .
  18. अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा में जो शक्ति है वह राम नाम से आती ही नाम और रूप दोनों ईश्वर कि उपाधि हैं . भगवान् के नाम और रूप दोनों अनिर्वचनीय हैं, अनादि है . सुन्दर, शुद्ध भक्ति युक्त बुद्धि से ही इसका दिव्य अविनाशी स्वरुप जानने में आता है . राम नाम लोक और परलोक में निर्वाह करने वाला होता है . लोक में यह देने वाला चिंतामणि और परलोक में भगवत्दर्शन कराने वाला है. वृक्ष में जो शक्ति है वह बीज से ही आती है इसी प्रकार अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा में जो शक्ति है वह राम नाम से आती ही .
  19. राम नाम अविनाशी और व्यापक रूप से सर्वत्र परिपूर्ण है . सत् है , चेतन है और आनंद राशि है . उस आनंद रूप परमात्मा से कोई जगह खाली नही , कोई समय खाली नहीं , कोई व्यक्ति खाली नही कोई प्रकृति खाली नही ऐसे परिपूर्ण , ऐसे अविनाशी वह निर्गुण है . वस्तुएं नष्ट जाती है, व्यक्ति नष्ट हो जाते हैं , समय का परिवर्तन हो जाता है, देश बदल जाता है , लेकिन यह सत् - तत्व ज्यों -त्यों ही रहता है इसका विनाश नही होता है इसलिए यह सत् है .
  20. जीभ वागेन्द्रिय है उससे राम राम जपने से उसमें इतनी अलौकिकता आ जाती है की ज्ञानेन्द्रिय और उसके आगे अंतःकरण और अन्तः कारण से आगे प्रकृति और प्रकृति से अतीत परमात्मा तत्व है , उस परमात्मा तत्व को यह नाम  जगा दे ऐसी उसमें शक्ति है . राम नाम मणिदीप है . एक दीपक होता है एक मणिदीप होता है . तेल का दिया दीपक कहलाता है मणिदीप स्वतः प्रकाशित होती है . जो मणिदीप है वह कभी बुझती नहीं है . जैसे दीपक को चौखट पर रख देने से घर के अंदर और भर दोनों हिस्से प्रकाशित हो जाते हैं वैसे ही राम नाम को जीभ पर रखने से अंतःकरण और बाहरी आचरण दोनों प्रकाशित हो जाते हैं यानी भक्ति को यदि ह्रदय में बुलाना हो तो, राम नाम का जप करो इससे भक्ति दौड़ी चली आएगी .
  21. अनेक जन्मों से युग युगांतर से जिन्होंने पाप किये हों उनके ऊपर राम नाम की दीप्तिमान अग्नि रख देने से सारे पाप कटित हो जाते हैं .राम के दोनों अक्षर मधुर और सुन्दर हैं . मधुर का अर्थ रचना में रस मिलता हुआ और मनोहर कहने का अर्थ है की मन को अपनी ओर खींचता हुआ . राम राम कहने से मुंह में मिठास पैदा होती है दोनों अक्षर वर्णमाल की दो आँखें हैं .राम के बिना वर्णमाला भी अंधी है.
  22. जगत में सूर्य पोषण करता है और चन्द्रना अमृत वर्षा करता है है . राम नाम विमल है जैसे सूर्य और चंद्रमा को राहु - केतु ग्रहण लगा देते हैं , लेकिन राम नाम पर कभी ग्रहण नहीं लगता है . चन्द्रमा घटा बढता रहता है लेकिन राम तो सदैव बढता रहता है .यह सदा शुद्ध है अतः यह निर्मल चन्द्रमा और तेजश्वी सूर्य के समान है .
  23. अमृत के स्वाद और तृप्ति के सामान राम नाम है . राम कहते समय मुंह खुलता है और म कहने पर बंद होता है . जैसे भोजन करने पर मुख खुला होता है और तृप्ति होने पर मुंह बंद होता है . इसी प्रकार रा और म अमृत के स्वाद और तोष के सामान हैं .
  24. छह कमलों में एक नाभि कमल [ चक्र ] है उसकी पंखुड़ियों में भगवान के नाम है , वे भी दिखने लग जाते हैं . आँखों में जैसे सभी बाहरी ज्ञान होता है ऐसे नाम जाप से बड़े बड़े शास्त्रों का ज्ञान हो जाता है , जिसने पढ़ाई नहीं की , शास्त्र शास्त्र नहीं पढ़े उनकी वाणी में भी वेदों की ऋचाएं आती है. वेदों का ज्ञान उनको स्वतः हो जाता है ..

राम रहस्य:-


प्रसिद्ध संत शिवानंद निरंतर राम का नाम जपते रहते थे। एक दिन वे जहाज पर यात्रा के दौरान रात में गहरी नींद में सो रहे थे। आधी रात को कुछ लोग उठने लगे और आपस में बात करने लगे कि ये राम नाम कौन जप रहा है। लोगों ने उस विराट, लेकिन शांतिमय आवाज की खोज की और खोजते-खोजते वे शिवानंद के पास पहुँच गए।सभी को यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ की शिवानंद तो गहरी नींद में सो रहे है, लेकिन उनके भीतर से यह आवाज कैसे निकल रही है। उन्होंने शिवानंद को झकझोर कर उठाया तभी अचानक आवाज बंद हो गई। लोगों ने शिवानंद को कहा आपके भीतर से राम नाम की आवाज निकल रही थी इसका राज क्या है। उन्होंने कहा ''मैं भी उस आवाज को सुनता रहता हूँ। पहले तो जपना पड़ता था राम का नाम अब नहीं। बोलो श्रीराम।''कहते हैं जो जपता है राम का नाम ...राम जपते हैं उसका नाम। 

कैसे लें राम - नाम;-

  1. परमात्मा ने अपनी पूरी पूरी शक्ति राम नाम में रख दी है . नाम जप के लिए कोई स्थान, पात्र विधि की जरुरत नही है . रात दिन राम नाम का जप करो निषिद्ध पापाचरण आचरणों से स्वतः ग्लानी हो जायेगी . अभी अंतकरण मैला है इसलिए मलिनता अच्छी लगती है मन के शुद्ध होने पर मैली वस्तुओं कि अकांक्षा नहीं रहेगी . .
  2. सोते समय सभी इन्द्रिय मन में , मन बुध्दि में , बुद्धि प्रकृति में अर्थात अविद्या में लीन हो जाती है , गाढ़ी नींद में जब सभी इन्द्रियां लीन होती है उस पर भी उस व्यक्ति को पुकारा जाए तो वह अविद्या से जग जाता है . राम नाम में अपार अपार शन्ति , आनंद और शक्ति भरी हुई है . यह सुनने और स्मरण करने में सुन्दर और मधुर है . राम नाम जप करने से यह अचेतन - मन में बस जाता है उसके बाद अपने आप से राम राम जप होने लगता है करना नहीं पड़ता है . रोम रोम उच्चारण करता है . चित्त इतना खिंच जाता है की छुडाये नहीं छुछूटता .
  3. भगवान शरण में आने वाले को मुक्ति देते हैं लेकिन भगवान का नाम उच्चारण मात्र से मुक्ति दे देता है . जैसे छत्र का आश्रय लेने वाल छत्रपति हो जाता है , वैसे ही राम रूपी धन जिसके पास है वही असली धनपति है . सुगति रूपी जो सुधा है वह सदा के लिए तृप्त करने वाली होती है . जिस लाभ के बाद में कोई लाभ नहीं बच जाता है जहां कोई दुःख नहीं पहुँच सकता है ऐसे महान आनंद को राम नाम प्राप्त करवाता है . राम नाम अन्य साधन निरपेक्ष स्वयं सर्वसमर्थ परमब्रह्म है .

 निर्गुण ब्रह्म और सगुण राम;-

  1. करोड़ों ब्रह्माण्ड भगवान के एक - एक रोम में बसते हैं . दशरथ के घर जन्म लेने वाले भी राम है और जो निर्गुण निराकार रूप से सब जगह रम रहे हैं , उस परमात्मा का नाम भी राम है . नाम निर्गुण ब्रह्म और सगुण राम दोनों से बड़ा है .
  2. भगवान स्वयं नामी कहलाते हैं . भगवान परमात्मा अनामय है अर्थात विकार रहित है . उसका न नाम है , न रूप है उसकी जानने के लिए उनका नाम रख कर सम्बोधित किया जाता है , क्योंकि हम लोग नाम रूप में बैठे हैं इसलिए उसे ब्रह्म कहते हैं . जिस अनंत, नित्यानंद और चिन्मय परमब्रह्म में योगी लोग रमण करते हैं , उसी राम-नाम से परमब्रह्म प्रतिपादित होता है अर्थात राम नाम ही परमब्रह्म है .
  3. नामी या परमात्मा अपने को नाम के रूप में ही व्यक्त करता है । परमात्मा के निर्गुण (निराकार) व सगुण (साकार) - दो रूप ही माने जाते हैं । राम-नाम परमात्मा के इन दोनों रूपों का सार है । परमात्मा का निर्गुण रूप और उसका सगुण (,मनुष्य या देह धारी सतगुरु) रूप - दोनों वास्तव में नाम से अभिन्न हैं । राम-नाम में परमात्मा की दोनों ही रूपों की अच्छाइयाँ विद्धमान हैं और साथ ही राम-नाम इन दोनों रूपों की त्रुटियों से रहित है । ऐसा क्यों ?
  4. बड़े ही ध्यान से समझने का विषय है । परमात्मा (निर्गुण और निराकार) अपने ही बनाये विधान के अनुसार अपने मूल स्वरुप (आदि निरंजन) में इस जड़ संसार में प्रकट नहीं हो सकता । इस प्रकार कहा जा सकता है कि परमात्मा के निर्गुण रूप में यह त्रुटि है, या यों कहें कि निर्गुण और निराकार परमात्मा हम संसारी जीवों की सीमित शक्ति के कारण हमारी पहुँच से बाहर है ।
  5. परमात्मा अपने निगुण स्वरुप में अविनाशी है (अच्छाई), पर यह अगम और अगोचर, अर्थात हमारी पहुँच से बाहर है (त्रुटि), जबकि अपने सगुण (मनुष्य) रूप यह सुगम और इन्द्रिय-गोचर, अर्थात हमारी पहुँच के अन्दर है (अच्छाई), पर यह आम इन्सान की तरह नश्वर है (त्रुटि) । राम-नाम की विशेषता यह है कि वह परमात्मा के निर्गुण स्वरुप की तरह अविनाशी होते हुए उसके सगुण रूप के सामान हमारी पहुँच के अन्दर है, क्योंकि इसके बाहरी वर्णात्मक नाम को बोला या सुना जा सकता है और आन्तरिक धुनात्मक नाम को आन्तरिक प्रकाश और आन्तरिक शब्द के रूप में अन्दर देखा और सुना  जा सकता है ।
  6. अपनी इस विशेषता के कारण राम-नाम परमात्मा के निर्गुण और सगुण - दोनों रूप की विशेषता का बोध कराता है, इनके पारस्परिक सम्बन्ध या एकता को प्रकट करता है और साथ ही जीवों की मुक्ति का भी एकमात्र साधन सिद्ध होता है (जो बन्धन-ग्रस्त जीवों के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है) । राम-नाम की विशेषता बताते हुए तुलसीदास जी इसकी तुलना एक कुशल दुभाषिये से करते हैं जो एक बिचौलिये का काम कर परमात्मा के निर्गुण और सगुण रूपों के बीच सम्बन्ध दिखलाता है और उनके यथार्थ स्वरुप का बोध कराता है, जैसा कि तुलसीदास जी कहते हैं: ''अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी । उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी'' ।। (सुसाखी - उत्तम प्रमाण; प्रबोधक - बोध कराने वाला; दुभाषी - दुभाषिया )
  7. यहाँ पर यह बात ध्यान देने कि ज़रुरत है कि जो नाम या राम-नाम चारों युगों और तीनों कालों में जीवों का उद्धार करनेवाला कहा गया है, वह त्रेता युग में उत्पन्न होनेवाले दशरथ-पुत्र श्री राम का वर्णात्मक नाम नहीं हो सकता; क्योंकि त्रेता युग से पहले सतयुग में राम का यह वर्णात्मक नाम प्रचलित नहीं था ।इससे यह सिद्ध होता है कि राम-नाम से तुलसी जी का तात्पर्य उस सच्चे अविनाशी धुनात्मक नाम से है जो सभी वर्णात्मक नामों से परे है और अविनाशी परमात्मा का सार है । 
  8. तुलसीदास जी ने इन दोनों भेदों को स्वीकार करते हुए उन्होनें 'श्रवणात्मक' शब्द का एक और भेद भी स्पष्ट किया है । 'श्रवणात्मक' नामक शब्द से उनका तात्पर्य बाहर की उन ध्वनियों से है जो किसी प्रकार के टंकार, गर्जन या बाहरी बाजे-गाजे से उत्पन्न होती है । इन्हें भी बाहरी वर्णों या अक्षरों में लिखा, पढ़ा या बोला नहीं जा सकता है, केवल श्रवण या कान से सुना जा सकता है ।
  9. आन्तरिक धुनात्मक शब्द को बाहरी ध्वनियों से परे और भिन्न बतलाने के लिए तुलसीदास जी ने इस 'श्रवणात्मक" शब्द का अलग भेद बतलाया है । शब्द के इस तीन भेदों को बताकर तुलसीदास जी कहते हैं कि शब्द-भेद को अच्छी तरह न परखने के कारण लोग बाहरी शब्द या ध्वनि को ही सबकुछ मानकर केवल इसी में भूले रह जाते हैं । पर जब परमात्मा स्वरुप गुरु की कृपा से आन्तरिक शब्द-धुन या राम-नाम का भेद मिल जाता है तब जीव के अन्दर ज्ञान का सूरज प्रकाशित हो उठता है । इस तथ्य को समझाते हुए वे कहते हैं: श्रवणात्मक ध्वन्यात्मक वर्णात्मक विधि तीन । त्रिविध शब्द अनुभव अगम तुलसी कहहिं प्रवीन ।।
  10. राम करुणा में हैं। राम शान्ति में हैं। राम एकता में हैं। राम प्रगति में हैं। राम शत्रु के चिंतन में हैं। राम तेरे मन में हैं, राम मेरे मन में हैं। राम तो घर घर में हैं। राम हर आंगन में हैं। इसलिए कहा गया है कि मन से रावण जो निकाले, राम उसके मन में हैं। राम नाम निर्गुण और सगुण के बीच सुन्दर साक्षी है . यह दोनों के बीच का वास्तविक ज्ञान करवाने वाला चतुर दुभाषिया है . नाम सगुन और निर्गुण दोनों से श्रेष्ट चतुर दुभाषिया है .
  11. राम जाप से रोम रोम पवित्र हो जाता है . साधक ऐसा पवित्र हो जाता है उसके दर्शन , स्पर्श भाषण से ही दूसरे पर असर पड़ता है . अनिश्चिता दूर होती है शोक - चिंता दूर होते हैं , पापों का नाश होता है . वे जहां रहते हैं वह धाम बन जाता है वे जहां चलते हैं वहां का वायुमंडल पवित्र हो जाता है.

 भगवान राम नीले और कृष्ण काले क्यों?-

  1. अक्सर मन में यह सवाल गूंजता है कि श्रीकृष्ण का काला रंग तो फिर भी समझ में आता है लेकिन भगवान राम को नील वर्ण भी कहा जाता है। क्या वाकई भगवान राम नीले रंग के थे, किसी इंसान का नीला रंग कैसे हो सकता है? वहीं काले रंग के श्रीकृष्ण इतने आकर्षक कैसे थे? इन भगवानों के रंग-रूप के पीछे क्या रहस्य है।
  2. श्रीराम के नीले वर्ण और कृष्ण के काले रंग के पीछे एक दार्शनिक रहस्य है। भगवानों का यह रंग उनके व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। दरअसल इसके पीछे भाव है कि भगवान का व्यक्तित्व अनंत है। उसकी कोई सीमा नहीं है, वे अनंत है। ये अनंतता का भाव हमें आकाश से मिलता है। आकाश की कोई सीमा नहीं है। वह अंतहीन है। राम और कृष्ण के रंग इसी आकाश की अनंतता के प्रतीक हैं।
  3. राम का जन्म दिन में हुआ था। दिन के समय का आकाश का रंग नीला होता है। इसी तरह कृष्ण का जन्म आधी रात के समय हुआ था और रात के समय आकाश का रंग काला प्रतीत होता है। दोनों ही परिस्थितियों में भगवान को हमारे ऋषि-मुनियों और विद्वानों ने आकाश के रंग से प्रतीकात्मक तरीके से दर्शाने के लिए है काले और नीले रंग का बताया है।

THE KEY POINTS;-

  1. संपूर्ण भारतीय समाज के जरिए एक समान आदर्श के रूप में भगवान श्रीराम को उत्तर से लेकर दक्षिण तक संपूर्ण जनमानस ने स्वीकार किया है। उनका तेजस्वी एवं पराक्रमी स्वरूप भारत की एकता का प्रत्यक्ष चित्र उपस्थित करता है।उनके महान चरित्र की उच्च वृत्तियाँ जनमानस को शांति और आनंद उपलब्ध कराती हैं।
  2. आदिकवि ने उनके संबंध में लिखा है कि वे गाम्भीर्य में उदधि के समान और धैर्य में हिमालय के समान हैं। राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोकव्यवहार के दर्शन होते हैं। राम ने साक्षात परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी, उत्प्रेरक और निर्माता भी है।भारतीय जनमानस के रोम-रोम में बसे श्रीराम की महिमा अपरंपार है।  एक राम राजा दशरथ का बेटा, एक राम घर-घर में बैठा, एक राम का सकल पसारा, एक राम सारे जग से न्यारा।
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