मां चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा होती है।
चन्द्रघंटा देवी का स्वरूप तपे हुए स्वर्ण के समान कांतिमय है।चेहरा शांत एवं सौम्य है और मुख पर सूर्यमंडल की आभा छिटक रही होती है। माता के सिर पर अर्ध चंद्रमा मंदिर के घंटे के आकार में सुशोभित हो रहा जिसके कारण देवी का नाम चन्द्रघंटा हो गया है।अपने इस रूप से माता देवगण, संतों एवं भक्त जन के मन को संतोष एवं प्रसन्न प्रदान करती हैं। मां चन्द्रघंटा अपने प्रिय वाहन सिंह पर आरूढ़ होकर अपने दस हाथों में खड्ग, तलवार, ढाल, गदा, पाश, त्रिशूल, चक्र,धनुष, भरे हुए तरकश लिए मंद मंद मुस्कुरा रही होती हैं। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाईं देने लगती हैं। इन क्षणों में साधक को बहुत सावधान रहना चाहिए। इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है। इसलिए हमें चाहिए कि मन, वचन और कर्म के साथ ही काया को विहित विधि-विधान के अनुसार परिशुद्ध-पवित्र करके चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना करना चाहिए। इससे सारे कष्टों से मुक्त होकर सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं। यह देवी कल्याणकारी है।मां चंद्रघंटा की पूजा करने से जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और जन्म-जन्म का डर समाप्त हो जाता है और जातक निर्भय बन जाता हैं।
माँ की उपासना का मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढ़ा
चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
माता चंद्रघंटा की कथा
देवताओं और असुरों के बीच
लंबे समय तक युद्ध चला। असुरों का स्वामी महिषासुर था और देवाताओं के इंद्र।
महिषासुर ने देवाताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और स्वर्गलोक
पर राज करने लगा।इसे देखकर सभी देवतागण परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का
उपाय जानने के लिए त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के
पास गए। देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्य
देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्हें बंधक बनाकर स्वयं स्वर्गलोक का
राजा बन गया है। देवाताओं ने बताया कि महिषासुर के अत्याचार के कारण अब देवता
पृथ्वी पर विचरण कर रहे हैं और स्वर्ग में उनके लिए स्थान नहीं है। यह सुनकर
ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर को अत्यधिक क्रोध
आया।क्रोध के कारण तीनों के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई। देवगणों के शरीर से निकली
ऊर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई। यह दसों दिशाओं में व्याप्त होने लगी। तभी
वहां एक देवी का अवतरण हुआ। भगवान शंकर ने देवी को त्रिशूल और भगवान विष्णु ने
चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्त्र
शस्त्र सजा दिए। इंद्र ने भी अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतरकर एक घंटा
दिया।सूर्य ने अपना तेज और तलवार दिया और सवारी के लिए शेर दिया। देवी अब महिषासुर
से युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थीं।उनका विशालकाय रूप देखकर महिषासुर यह समझ
गया कि अब उसका काल आ गया है। महिषासुर ने अपनी सेना को देवी पर हमला करने को कहा।
अन्य देत्य और दानवों के दल भी युद्ध में कूद पड़े। देवी ने एक ही झटके में ही
दानवों का संहार कर दिया। इस युद्ध में महिषासुर तो मारा ही गया, साथ में अन्य बड़े दानवों और राक्षसों का संहार मां ने कर
दिया। इस तरह मां ने सभी देवताओं को असुरों से अभयदान दिलाया।
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. यह शुक्र गृह की देवी मानी जाती हैं. नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना करते वाले जातकों की जन्मपत्री में शुक्र दोष समाप्त होता है।
या देवी सर्वभूतेषु मां
चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
इस श्लोक का अर्थ है- हे मां! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है, या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं। हे मां, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
!! जय माता दी !!
माता को हम पूजलें, बाँधे वंदनवार।
रोली अक्षत फूल संग,
गंगा जल की धार।।
!! जय माता दी!!
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माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम माता चंद्रघंटा है।
नवरात्र का तीसरा दिन तृतीय नवरात्र
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नवरात्रि के तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा
तृतीय नवरात्र { माँ दुर्गा का तृतीय स्वरूप माता चंद्रघंटा }
नवरात्रि के तीसरे दिन पढ़िए मां चंद्रघंटा की ये अद्भुत कथा
"शक्ति का रूप हैं मां चंद्रघंटा", दुर्गा शक्ति नौरूप की भक् - वन विद्यार्थी
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