भगवान शिव की पूजा में ये चीज़ें अर्पित किये जाते हैं

भगवान शिव की पूजा में ये चीज़ें अर्पित किये जाते हैं "
These things are offered in the worship of Lord Shiva"

शिव पूजा की चीज़ें

भगवान शिव की पूजा में कई चीज़ें अर्पित की जाती हैं। यह पूजा विभिन्न तरीकों से की जा सकती है, लेकिन कुछ सामान्य चीज़ें हैं जो इस पूजा में उपयोग की जाती हैं।
  1. शिवलिंग: शिवलिंग को पूजन के लिए प्रमुख रूप से प्रयोग किया जाता है। इसे पानी, दूध, धारा, धूप, दीप, बेल पत्र, धातु, फूल, चावल, जल, अदरक, दही, घी, शहद, चंदन, धनिया पत्ता आदि से समर्पित किया जाता है।
  2. बिल्व पत्र: बिल्व पत्र को भी शिवलिंग की पूजा में उपयोग किया जाता है। इसे त्रिफला (तीन पत्र) कहा जाता है और इसको पूजन में समर्पित किया जाता है।
  3. रुद्राक्ष: रुद्राक्ष माला शिवजी की पूजा में उपयोग की जाती है और मंत्रों का जाप करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।
  4. जल (पानी): शिव पूजा में जल भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। शिवलिंग को जल से स्नान कराया जाता है और उसी जल को चढ़ाया जाता है।
  5. धूप-दीप: धूप और दीप भी भगवान शिव की पूजा में उपयोग होता है।
  6. मंत्रों का जाप: शिव मंत्रों का जाप भी पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। 'ॐ नमः शिवाय' जैसे मंत्रों का जाप किया जाता है।
ये केवल कुछ उदाहरण हैं, इसके अलावा भी बहुत सी चीज़ें हो सकती हैं जो शिव पूजा में उपयोग की जाती हैं। यह सब चीज़ें श्रद्धा और भक्ति से की जाती हैं।

पूजा के दौरान कई कथाएं  सुनाई जाती हैं

भगवान शिव की पूजा के दौरान कई कथाएं और कहानियां सुनाई जाती हैं, जो उनके महात्म्य और महत्त्व को बताती हैं। यहां कुछ प्रमुख शिव कथाएं हैं:
  1. कामदहन शिव कथा: इस कथा में, भगवान शिव ने कामदहन को विनाश करने के लिए अपनी तपस्या से प्रसन्न होकर उसका विनाश किया था।
  2. सागर मंथन: इस कथा में, शिवजी ने देवताओं और असुरों के संगठन से सागर मंथन की प्रेरणा दी थी।
  3. शिवरात्रि कथा: शिवरात्रि के दिन के अनुसार, भगवान शिव ने जब अमृत पीने का विचार किया तो उनकी गले में गिरी विष से नदी का नामांकन हुआ था।
  4. शिव पार्वती विवाह कथा: इस कथा में, शिव और पार्वती माता के विवाह की कहानी होती है, जो हिमालय पर्वत में हुआ था।
ये कथाएं शिव पूजा के समय सुनाई जा सकती हैं, जो भक्तों को भगवान शिव के महात्म्य और उनके लीलाओं को जानने का अवसर देती हैं।

कामदहन शिव कथा

कामदहन शिव कथा महाभारत महाकाव्य में उल्लेखित है। यह कथा भगवान शिव के तपस्या और उनकी उपासना के महत्त्व को दर्शाती है।
कथा के अनुसार, महाभारत के एक अध्याय में श्री कृष्ण के प्रस्तावना से युधिष्ठिर ने भगवान के बारे में पूछा था। इसके बाद भीष्म पितामह और विदुर ने उसे भगवान शिव के महत्त्व के बारे में सुनाया।
कथा के अनुसार, दक्ष नामक राजा की पुत्री सती ने भगवान शिव को पति माना था। उनके पिता ने एक विशेष यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सती को नहीं बुलाया गया था। इस पर सती ने अपने माता-पिता को न छोड़ते हुए यज्ञ में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की। वे यज्ञस्थल पहुंचीं, जहां उनके पिता ने उन्हें अपमानित किया। इस अपमान के बाद सती ने अपनी अहिंसा का व्रत तोड़कर अपने शरीर को जला दिया।
इसके बाद भगवान शिव के द्वारा सती के प्यार और त्याग को समझते हुए, वे क्रोधित होकर कामदहन रूप में व्यक्त हुए। उन्होंने अपने भीतर की आग को द्वारा संभाला और उसे शांत किया। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अपनी शक्ति का प्रकटीकरण किया और उनकी शांति की अनुमति दी।
यह कथा भगवान शिव के त्याग, समर्पण, और प्रेम को दर्शाती है, जो उनके भक्तों के लिए महत्त्वपूर्ण सिखाने वाली है।

सागर मंथन एक प्रसिद्ध कथा

सागर मंथन एक प्रसिद्ध हिंदू पौराणिक कथा है, जो हिन्दू धर्म के शास्त्रों में मिलती है। यह कथा भगवान विष्णु और भगवान शिव के महत्त्वपूर्ण युद्धार्थ मंथन की घटना को बताती है।
कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन की योजना बनाई गई थी। उन्होंने सागर को मथन करके अमृत (अनन्त जीवन) प्राप्त करने की इच्छा रखी थी। इस उद्देश्य के लिए, असुरों और देवताओं ने समुद्र को मथन करने के लिए वासुकि नामक साँप को रस्सी से बाँधकर काम किया।
सागर मंथन के दौरान, समुद्र से कई वस्तुएं निकलीं, जैसे कि हलाहल (विष), वरुण देव (जल), अमृत, वाहनों के अस्त्र-शस्त्र आदि। हलाहल विष ने समुद्र मंथन करते समय सभी को नष्ट करने की कोशिश की थी, जिससे समस्याएँ बढ़ीं। इस समय भगवान शिव ने हलाहल विष को अपने गले में संभाला और उसे नीचे न जाने दिया। इससे उनका गला नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ (नीले गले वाला) कहा गया।
इस घटना में, भगवान शिव ने देवताओं की सेवा की और समस्याओं का समाधान किया। समुद्र मंथन के बाद, अमृत मिला और देवताएँ अमृत को प्राप्त कर अमरत्व प्राप्त करने में सफल हुईं।
यह कथा हिंदू धर्म में भगवान शिव की महत्ता और उनके भक्तों के प्रति उनकी कृपा को दर्शाती है।

एक प्राचीन कथा शिवरात्रि की

शिवरात्रि के दिन के अनुसार, एक प्राचीन कथा है जो महाभारत के अनुसार प्रस्तुत की जाती है।
कथा के अनुसार, एक समय पर भगवान ब्रह्मा ने सम्पूर्ण जगत् को सृष्टि की प्रक्रिया के बाद महादेव (भगवान शिव) से पूछा, "आपने जगत् की सृष्टि किया है, क्या आप स्वयं अपनी सृष्टि का अनुभव करना चाहेंगे?" भगवान शिव ने ब्रह्मा को उत्तर दिया कि वे अपनी सृष्टि का अनुभव करना चाहते हैं।
इसके बाद, भगवान शिव ने आत्मा के अनुभव के लिए महाशिवरात्रि का उत्सव मनाने का निर्देश दिया। वे स्वयं ध्यान में लीन हो गए और अपनी अनंत शक्ति के साथ ध्यान में रहने लगे। इस दौरान, भगवान शिव की ध्यान विचारों में प्रवेश करने के लिए शिव-पुत्री उमा ने भी व्रत रखा था। इस प्रकार, महादेव और उमा ने महाशिवरात्रि की पूजा की और समस्त विश्व को इस व्रत का पालन करने का संदेश दिया।
महाशिवरात्रि के दिन लोग जगह-जगह शिव मंदिरों में भक्ति और ध्यान का पालन करते हैं, शिवलिंग का अभिषेक करते हैं, शिव पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं, और महादेव की आराधना करते हैं। इस दिन को मनाने से मान्यता है कि भगवान शिव अपने भक्तों की प्रार्थनाएं सुनते हैं और उनके प्रति अपना आशीर्वाद देते हैं।

भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह कथा

भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हिंदू पौराणिक कथाओं में बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह घटना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है और भगवान शिव के और माता पार्वती के संयोग की प्रेरक कहानी है।
कथा के अनुसार, माता पार्वती ने अपने पिता हिमावत् को भगवान शिव का पति चुनने की इच्छा जताई थी। पार्वती की तपस्या, साधना और भक्ति ने उन्हें भगवान शिव की पत्नी बनाने का अधिकार दिलाया।
शिव पार्वती विवाह की कथा में कहा जाता है कि शिव ने पार्वती की वाराणसी में प्राप्ति की थी, जहां वे अपनी तपस्या कर रहे थे। वहां, पार्वती ने शिव को अपनी सेवा करते हुए उनका मनोबल बढ़ाया और उनकी तपस्या का सम्मान किया। शिव और पार्वती का विवाह उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग भजन, कीर्तन, पूजा, और समाजिक उत्सव के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की कथा का पाठ करते हैं।
यह कथा भगवान शिव और माता पार्वती के संयोग की महत्ता को दर्शाती है और उनके बीच विशेष प्रेम और संबंध को प्रस्तुत करती है।

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