गोस्वामी तुलसीदास के ये 5 दोहे मानव जीवन की महत्ता और एकता {159 -163}

गोस्वामी तुलसीदास के ये 5 दोहे मानव जीवन की महत्ता और एकता  These 5 couplets of Goswami Tulsidas show the importance and unity of human life.

प्रोढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की। कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की॥
एकु दारुगत देखिअ एकू। पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू॥159

इस दोहे में, गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानव जीवन की महत्ता और एकता को बताया है।
प्रोढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की।
यहाँ 'प्रोढ़ि' वह है जो समझदार होता है और 'सुजन' वह है जो साधारण लोगों को समझता है। जो व्यक्ति समझदार होकर दूसरों को समझता है, वह जानता है कि मानव की सीमाएं क्या हैं।
कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की॥
यहाँ तुलसीदास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति प्रतीति (समझ), प्रीति (प्यार) और रुचि (रुचि) से युक्त होता है, वह अच्छे मन वाला होता है।
एकु दारुगत देखिअ एकू।
यहाँ बताया गया है कि एक ही परमात्मा सब में हैं, सब कुछ उसी में विद्यमान है।
पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू॥
इस चौपाई में यह कहा गया है कि जैसे पावक (अग्नि) सब को समाहित कर लेती है, वैसे ही ब्रह्म (परमात्मा) सबको जानता है और समझता है।
इस दोहे में तुलसीदास जी ने मानवता के एकता, परमात्मा की अद्वितीयता और समझदारी की महत्ता को बताया है। वहाँ परमात्मा ही सबका आदि और अंत है, और हमें सभी में उसकी पहचान करनी चाहिए।

उभय अगम जुग सुगम नाम तें। कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें॥
ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी। सत चेतन धन आनँद रासी॥160

इस दोहे में, गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान राम के नाम की महिमा को व्यक्त किया है।
"उभय अगम जुग सुगम नाम तें।"
यहाँ कहा गया है कि भगवान राम का नाम दोनों लोकों में (उभय अगम) जो सुगम है, जिसे अच्छे से समझा और प्राप्त किया जा सकता है।
"कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें॥"
तुलसीदास जी यहाँ कह रहे हैं कि भगवान राम का नाम सबसे बड़ा है, जो कि ब्रह्म (परमात्मा) से भी ऊँचा है।
"ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी।"
यहाँ बताया गया है कि भगवान राम सभी जगहों में व्याप्त हैं, वह एक हैं और वह अविनाशी हैं।
"सत चेतन धन आनँद रासी॥"
तुलसीदास जी कह रहे हैं कि भगवान राम सच्चाई, चेतना, सम्पत्ति और आनंद की स्रोत हैं। उनमें ही सब कुछ है।
इस दोहे में, तुलसीदास जी ने भगवान राम के नाम की महिमा को बताया है और उनके गुणों की महत्ता को प्रकट किया है। उनका नाम अत्यंत पवित्र और महत्त्वपूर्ण है, जो कि सबका उद्धार करने में समर्थ है।
दो0-निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार।
कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार॥161

इस दोहे में, गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान के नाम की अद्वितीयता और महिमा को व्यक्त किया है।
"दो0-निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार।"
यहाँ कहा गया है कि भगवान का नाम निर्गुण होने के बावजूद भी इस प्रकार से अपार (अत्यंत महान) है, जिसे समझना असंभव है।
"कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार॥"
तुलसीदास जी यहाँ कह रहे हैं कि मैं भगवान के नाम को वास्तविकता में बड़ा मानता हूँ, जैसा कि मेरे विचार और अनुभव के अनुसार है।
इस दोहे में, तुलसीदास जी ने भगवान के नाम की अद्वितीयता, उनके अपार महत्त्व, और उनके नाम के महानता को बताया है। उनका नाम सबसे ऊँचा है, जिसे समझना वास्तव में असंभव है।

राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥
नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा॥162

यह दोहे भक्ति और सेवा के महत्त्व को दर्शाते हैं।
"राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी॥"
यहाँ कहा गया है कि जो व्यक्ति भगवान राम के भक्त है, वह समस्त मानवता के हित में अपने शरीर को समर्पित करता है। वह साधुओं के संकट को दूर करके उनका सुखदायक होता है।
"नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा॥"
यहाँ कहा गया है कि जो व्यक्ति प्रेम सहित भगवान का नाम जपता है, वह बिना किसी परेशानी के भगवान के भक्त बन जाता है और उनकी कृपा से उन्हें आनंद और मंगल की वासना होती है।
ये दोहे भक्ति और सेवा के महत्त्व को बताते हैं, और भगवान के नाम के जप की महिमा को व्यक्त करते हैं। भगवान के भक्ति में समर्पित रहने से संकटों का समाधान होता है और व्यक्ति को उसकी कृपा मिलती है।

राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥
रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्ह बिबाकी॥163

यह दोहे गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा लिखे गए हैं, और ये भगवान राम के गुणों और उनके भक्तों के चरित्र को प्रशंसा करते हैं।
"राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥"
यहाँ कहा गया है कि भगवान राम एक महान तापस्वी हैं, जो तीनों लोकों की रक्षा करते हैं। उनके नाम का जाप करने से कोटि-कोटि दुष्ट लोगों की दुर्भावनाएं और दुराचार सुधार जाती हैं।
"रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्ह बिबाकी॥"
यहाँ कहा गया है कि भगवान राम ने सुकेतु के पुत्र लक्ष्मण के साथ रिषियों के हित में काम किया, और साथ ही सेना के साथ अनेक कार्य किये।
इन दोहों में, गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान राम के महानता, उनके नाम के जाप की महिमा, और उनके धर्म के प्रति निष्ठा को व्यक्त किया है। भगवान राम की भक्ति और उनके नाम के जाप से दुर्भावनाएं दूर होती हैं और लोगों का चरित्र सुधरता है।

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