इतिहास रघुनाथ मंदिर का

इतिहास रघुनाथ मंदिर का History of Raghunath Temple

जम्मू शिवालिक के शासकों के शासनकाल के दौरान , १७६५ के बाद, जम्मू क्षेत्र में मंदिर निर्माण गतिविधियों में तेजी आई, जो १९वीं शताब्दी के शुरुआती दौर में जारी रही। शासकों ने ईंट से सर्पिल आकार के मंदिरों का निर्माण किया और शिखर के आकार में चमकीले कलशों के साथ प्रत्येक मीनार का ताज पहनाया । ऐसा ही एक मंदिर परिसर १८२२ में शुरू किया गया था (१८३५ का भी उल्लेख 
जम्मू के शासक गुलाब सिंह द्वारा किया गया था और यह उनके गुरु बाबा प्रेम दास को समर्पित था । 
इसका निर्माण १८६० में उनके पुत्र महाराजा रणबीर सिंह ने पूरा किया था । 
हालांकि, एक शिलालेख के अनुसारमंदिर के प्रवेश द्वार पर ब्राह्मी लिपि ( तकरी ), गुलाब सिंह और उनके भाई ध्यान सिंह को महंत जगन्नाथ के सम्मान में 1827 में मंदिर बनाने का श्रेय दिया जाता है। 

रघुनाथ मंदिर, जम्मू के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य 

  1. समर्पण**: यह मंदिर भगवान राम के पुत्र लव और कुश को समर्पित है।
  2. इतिहास**: इस मंदिर का निर्माण 1835 में महाराजा गुलाब सिंह द्वारा कराया गया था।
  3. विशाल मंदिर**: यहाँ का मंदिर भव्यता और शैली में प्रसिद्ध है। इसकी आर्किटेक्चर और स्थल की प्राकृतिक सुंदरता दर्शनीय हैं।
  4. धार्मिक उत्सव**: यहाँ पर वर्षा ऋतु में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव मनाए जाते हैं जो स्थानीय लोगों के द्वारा बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।
  5. कला और संस्कृति**: मंदिर में दिव्य दिगंबर, रामलीला के विभिन्न प्रसंगों को चित्रित करने वाली चित्रकारी मुर्तियाँ हैं।
  6. प्रसिद्धि**: यह स्थानीय लोगों के बीच प्रसिद्ध है और यात्रियों के लिए भी एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
ये तथ्य मंदिर के महत्व और महात्म्य को समझाने में मदद करते हैं।

रघुनाथ मंदिर संस्कृति का विशाल भंडार

रघुनाथ मंदिर एक संस्कृति का विशाल भंडार है जो भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को संजोए रखता है। यहाँ पर भगवान राम के पुत्रों, लव और कुश को समर्पित चित्रण, मूर्तियाँ और प्रतिमाएं हैं जो उनकी कथाओं और महत्त्व को प्रस्तुत करती हैं। 
मंदिर में विभिन्न प्रकार के पूजा-अर्चना के अवसर और धार्मिक उत्सव आयोजित किए जाते हैं जो स्थानीय संस्कृति को दर्शाते हैं। यहाँ पर विभिन्न कलात्मक आवाजाही, भजन-कीर्तन, और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं जो लोगों को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से संजोते हैं।
इस मंदिर में संस्कृति का एक अद्वितीय अंग है, जहाँ भक्तों को उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को संजोने का अवसर मिलता है। यहाँ पर संस्कृति के विभिन्न रंग और आवाज एक साथ मिलकर एक महत्त्वपूर्ण और सामूहिक अनुभव प्रदान करते हैं।
रघुनाथ मंदिर, जम्मू के भीतर कला और संस्कृति का विशाल भंडार है। यहाँ पर कई प्रकार की मूर्तियाँ, चित्रण, और संस्कृति से जुड़े प्रतीक देखने को मिलते हैं।
  • मूर्तिकला**: मंदिर में भगवान राम के पुत्रों, लव और कुश की मूर्तियाँ हैं, जो उनकी कहानी और महत्त्व को दर्शाती हैं। यहाँ पर अनेक धार्मिक मूर्तियाँ हैं जो भक्तों को आकर्षित करती हैं।
  • चित्रकला**: मंदिर की दीवारों पर चित्रकला के जरिए रामलीला के विभिन्न प्रसंगों को दिखाया जाता है। यहाँ पर विभिन्न चित्र और पेंटिंग्स हैं जो धार्मिक कथाओं को व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत करते हैं।
  • संस्कृति**: यहाँ के धार्मिक उत्सव, पूजा-अर्चना, और समारोह स्थानीय संस्कृति को प्रकट करते हैं। यहाँ पर लोग अपनी परंपराओं को समर्पित करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।
रघुनाथ मंदिर कला और संस्कृति के संगम का एक शानदार उदाहरण है, जो भक्तों को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समृद्ध करता है।

पूजा-अर्चना धार्मिक रघुनाथ मंदिर में 

रघुनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना धार्मिक अनुष्ठानों का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और यहाँ पर नियमित रूप से पूजा कार्यक्रम होते हैं। यहाँ पर कुछ प्रमुख पूजा-अर्चना अवसर हैं:
  1. आरती**: प्रतिदिन सुबह और शाम को आरती का आयोजन होता है, जिसमें भक्तगण भगवान राम, माता सीता, और लव-कुश की प्रतिमाओं को जल, दीप, और पुष्प द्वारा पूजते हैं।
  2. भजन-कीर्तन**: धार्मिक उत्सवों और पूजा-अर्चना के दौरान भजन-कीर्तन का आयोजन होता है, जिसमें भक्तगण भगवान की महिमा गाते हैं और उन्हें प्रशंसा करते हैं।
  3. प्रार्थना**: भक्तगण यहाँ पर अपनी प्रार्थनाएं करते हैं और अपने मनोभावनाओं को भगवान के सामने प्रस्तुत करते हैं।
  4. व्रत और उत्सव**: धार्मिक उत्सवों के दौरान, विशेष व्रतों का पालन किया जाता है और भक्तगण विभिन्न प्रकार की पूजा-अर्चना करते हैं।
  5. चालीसा**: मंदिर में भक्तगण विभिन्न देवी-देवताओं की चालीसा गाते हैं और उन्हें प्रशंसा करते हैं।
  6. रघुनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना के अवसर पर भक्तगण अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान को अर्पण करते हैं और अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।

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