राम की बहन की शादी

राम की बहन की शादी Ram's sister's wedding

राम की बहन का नाम शांता था और उनका विवाह ऋषि श्रृंगी से हुआ था। शांता की शादी पहले अंग देश के राजा रोमपद से हुई थी, जिन्होंने उन्हें गोद लिया था, और फिर बाद में ऋषि श्रृंगी से उनका विवाह सम्पन्न हुआ। इस प्रकार, ऋषि श्रृंगी राजा दशरथ के दमाद और प्रभु श्रीराम के जीजा बने।

भगवान राम का जन्म 

वैदिक और वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार त्रेता युग में हुआ था। वाल्मीकीय रामायण में उनके जन्म के समय का वर्णन निम्नलिखित है:
चैत्र मास की नवमी तिथि में
पुनर्वसु नक्षत्र में
पाँच ग्रहों के अपने उच्च स्थान में रहने पर
कर्क लग्न में चन्द्रमा के साथ बृहस्पति के स्थित होने पर (श्रीराम का जन्म हुआ) 1.
वेदों और पुराणों के ज्ञान के अनुसार, युग एक निर्धारित संख्या के वर्षों की कालावधि होती है। ब्रह्माण्ड का काल चक्र चार युगों के बाद दोहराता है, जिसमें चार युग होते हैं:
कलि युग: 432,000 मानव वर्ष का होता है।
द्वापर युग: 864,000 मानव वर्ष का होता है।
त्रेता युग: राम का जन्म इस युग में हुआ था।
कृत युग: युगों के अंत में होता है 
इस तरह, वेदों के अनुसार भगवान राम का जन्म लगभग 880,100 वर्ष पहले हुआ था।

शांता का जन्म

राम की बहन का नाम शांता था, जो कि भगवान राम की मौसी थीं। शांता का जन्म महर्षि विभांडक की पुत्री के रूप में हुआ था। रामायण में इसका वर्णन मिलता है कि विभांडक ऋषि की पत्नी वर्षिणी के गर्भ से शांता उत्पन्न हुई थीं। इस कथा के अनुसार, महर्षि विभांडक ऋषि की यज्ञ दक्षिणा के रूप में वर्षिणी गर्भवती थीं, लेकिन उन्होंने विभांडक ऋषि के यज्ञ के समय द्विजाति में अत्याचार देखा था। इससे प्रेरित होकर उन्होंने श्रृंगी ऋषि को प्राप्त करने का निर्णय लिया था। श्रृंगी ऋषि ने वर्षिणी को देखते ही उसे स्वयं स्वीकार कर लिया था। वर्षिणी और श्रृंगी का विवाह हुआ और उनकी संतान के रूप में शांता उत्पन्न हुई थीं। रामायण में शांता का उल्लेख कई स्थानों पर है, लेकिन उनके जीवन का विस्तृत वर्णन अधिकांश ग्रंथों में नहीं मिलता है। वे भगवान राम की मौसी थीं और उनका विवाह श्रृंगी ऋषि से हुआ था।

महर्षि श्रृंगी ऋषि की कथा

महर्षि श्रृंगी ऋषि की कथा में बहुत कम विवरण है, और इसके बारे में अलग-अलग पुराणों और ग्रंथों में विभिन्न संस्कृत लेखों में उल्लेख किया गया है। श्रृंगी ऋषि की विशेष कथा उनकी तपस्या, उनके ध्यान और वैराग्य के प्रति उनकी श्रद्धा और समर्पण को हाइलाइट करती है। कुछ पुराणों के अनुसार, श्रृंगी ऋषि ने अपनी माता के प्रति अत्यंत सेवाभाव देखते हुए उन्हें धरती पर वापस लाने का संकल्प किया। उन्होंने तपस्या करते हुए भगवान शिव की कृपा से एक अद्वितीय यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में श्रृंगी ऋषि ने अपने ध्यान की गहराई में जाकर एक निराकार ब्रह्मांड के स्वरूप को देखा और माता को वापस लाने का आदेश प्राप्त किया। इस घटना के बाद, श्रृंगी ऋषि ने वर्षिणी को स्वीकार कर लिया, जिनकी पुत्री शांता थीं। श्रृंगी ऋषि और वर्षिणी का विवाह हुआ, और उनकी संतान के रूप में शांता उत्पन्न हुई थीं।  यह कथा भारतीय पौराणिक साहित्य का हिस्सा है और विभिन्न संस्कृत ग्रंथों में उपलब्ध है, जिसमें श्रृंगी ऋषि की तपस्या, उनकी परिश्रमित ध्यान और उनका संसार से वैराग्य वर्णित किया गया है।

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