श्लोक और अर्थ सहित राम रक्षा स्तोत्र का

श्लोक और अर्थ सहित राम रक्षा स्तोत्र का  Ram Raksha Stotra with verses and meaning

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥31॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम के साथ उनके सहायकों का समर्थन करता है। इसका अर्थ है:
"जिसके दाहिने (दक्षिण) ओर लक्ष्मण हैं, बाएं (वाम) ओर जनक-तनया सीता हैं, और पुरब (पुरतो) में मारुति (हनुमान) हैं, उस रघुनंदन (श्रीराम) को मैं वंदन करता हूँ।"

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम के गुणों का वर्णन करता है। इसका अर्थ है:
"वह लोकों को आकर्षित करने वाला है, युद्ध के रंग में साहसी है, जिनकी आँखें जैसे कमल हैं, रघुकुल के नाथ हैं, जो कारुण्य की रूप धारण करते हैं, जो करुणामय हैं, उस श्रीरामचंद्र की शरण में हम आत्मसमर्पण करते हैं।"

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥

यह श्लोक हनुमानजी को समर्पित है और उनके गुणों का वर्णन करता है। इसका अर्थ है:
"मनोजवं - जो वायुपुत्र (हनुमान) हैं, मारुततुल्यवेगं - जो वायु के समान तेजस्वी हैं, जितेन्द्रियं - जो इंद्रियों को वश में करते हैं, बुद्धिमतां वरिष्ठम - जो बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, वातात्मजं - जो वायुपुत्र हैं, वानरयूथमुख्यं - वानर समूह के प्रमुख हैं, ऐसे श्रीराम के दूत हनुमान की शरण में हम आत्मसमर्पण करते हैं।"

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ॥34॥

यह श्लोक महाकवि वाल्मीकि को समर्पित है। इसका अर्थ है:
"मैं स्तुति करता हूं वाल्मीकि को, जो राम का अनुगामी हैं, जो 'राम राम' इस मधुर और मधुर ध्वनि से कविता की शाखा को उत्पन्न करते हैं, जैसे मधुर मधुर वचन बोलते हुए कोकिला पर बैठे हों।"

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम को समर्पित है। इसका अर्थ है:
"मैं पुनः और पुनः भगवान श्रीराम को नमस्कार करता हूँ, जो संकटों का नाशक, सब सम्पदाओं का दाता, लोकों को प्रिय, श्रीराम को।"

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥36॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम को समर्पित है। इसका अर्थ है:
"राम राम" का गर्जन यमराज के दूतों के लिए भव बीजों का नाश, सुख की सम्पत्ति का स्रोत, और दुःख का नाश है। यह नाम जीवों के भव सागर से तारक है।

रामो राजमणिः सदा विजयते,
रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता,
निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं,
रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः,
सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः ॥37॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम की महिमा का गुणगान करता है। इसका अर्थ है:
"श्रीराम हमेशा विजयी होते हैं, राम राजा मणि, हमेशा जीत को प्राप्त होते हैं। मैं रामेश राम को ध्यान करता हूँ, जो सब दुष्ट निशाचरों को नष्ट कर देते हैं। मैं उनका भक्त हूँ, मेरा चित्त राम में ही विलीन है, जो हमेशा मुझे उद्धार करें। उनके सिवा कोई परायणता की वस्तु नहीं है, उनसे बढ़कर कोई परम आश्रय नहीं है।"

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥

यह श्लोक राम नाम की महिमा को वर्णित करता है। इसका अर्थ है:
"राम, रामेति, रामेति - जो मन में राम का ध्यान करता है, वह रामे (भगवान श्रीराम के नाम में लीन) मनोरम (मनोजनक) हो जाता है। हे वरानने (ओ सुंदरवदन!) रामनाम हजारों नामों के तुल्य है।"

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