रामचरितमानस दोहे कथा विश्वास और प्रेरें Ramcharitmanas couplet story faith and inspiration
जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें॥
निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी॥204
"जैसा भी बुद्धि, विवेक और शक्ति मुझमें है, वही कहता हूँ मैं हृदय से हरि की प्रेरणा से। अपने संदेह, मोह और भ्रम को दूर करने के लिए मैं भव सागर की कथा को पार करने की कोशिश करता हूँ।"
इस दोहे में तुलसीदासजी यह कह रहे हैं कि उनकी बुद्धि, विवेक और बल से वह हरि की प्रेरणा से हृदय से बोलते हैं। और उन्होंने यह भी कहा है कि वे भव सागर की कथा को सुनाकर अपने संदेह, मोह और भ्रम को दूर करने का प्रयास करते हैं।
बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि॥
रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥205
यह दोहे गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"रामकथा सब लोगों का मनोरंजन है और यह कलियुग के दोषों को नष्ट कर देती है। रामकथा कलियुग की सर्पिणी को भरकर, पुनः बुद्धि को प्रज्वलित करती है।"
इस दोहे में तुलसीदासजी कह रहे हैं कि रामकथा सभी के लिए मनोरंजनकारी है और यह कलियुग के दोषों को नष्ट कर देती है। रामकथा कलियुग की सर्पिणी को भरकर, पुनः बुद्धि को जाग्रत करती है।
रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई॥
सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि॥206
यह दोहे गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"रामकथा कलियुग में विष की तरह कामना को गाती है, लेकिन यह सुजनों को जीवंत करने वाली है और मन को सुखाती है। वही इस भूमि पर स्थित सुधा की तरह है, जो भय को नष्ट कर, भ्रम को दूर करती है, भुजंगिनी (सर्पिणी) को भी भगाती है।"
इस दोहे में कहा गया है कि रामकथा कलियुग में कामना की तरह गाई जाती है, लेकिन यह सजीवनी है जो सजीवता को उत्तेजित करती है और मन को आनंदित करती है। यह बसुधा की तरह है, जो भय को दूर करती है, भ्रम को मिटाती है, और सर्पिणी को भी भगाती है।
असुर सेन सम नरक निकंदिनि। साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि॥
संत समाज पयोधि रमा सी। बिस्व भार भर अचल छमा सी॥207
यह श्लोक गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"असुरों की सेना के समान जो नरक को नष्ट करती है, वही साधुओं के लिए कुल और समाज का हित करने वाली है। संतों के समाज को समुद्र की तरह जो मिल गयी है, जो विश्व का भार उठाकर अचल छमा सी बन गयी है।"
इस श्लोक में कहा गया है कि साधुओं का समाज वो समुद्र है जो नरक की तरह के असुरों को नष्ट करता है और समाज के हित में लगा होता है। संतों के समाज को समुद्र की तरह समझा गया है, जो समाज का भार उठाकर स्थिर बना देता है।
जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी। जीवन मुकुति हेतु जनु कासी॥
रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी। तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी॥208
यह दोहे गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"जैसे जमुना नदी में गंदगी जामने से साफ़ हो जाती है, उसी तरह जन वाराणसी में मुक्ति के लिए जाते हैं। तुलसीदास कहते हैं कि जैसे तुलसी माता श्रीराम की प्रिय हैं, उसी तरह हमारे हृदय में भी तुलसीदासजी की कविता हैं।"
इस दोहे में कहा गया है कि जैसे जमुना नदी में जमी गंदगी साफ़ हो जाती है, उसी तरह मनुष्य वाराणसी जाते हैं ताकि मुक्ति प्राप्त हो सके। तुलसीदासजी कहते हैं कि जैसे तुलसी माता श्रीराम की प्रिय हैं, उसी तरह हमारे हृदय में भी तुलसीदासजी की कविता हैं।
दो0- राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।
तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥209
यह श्लोक गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"रामकथा मंदाकिनी नदी के समान मनमोहक है, और चित्रकूट पर्वत के समान अति चारु (सुंदर) है। तुलसीदास कहते हैं कि तुलसी की सुंदरता, सनेह और सीता-राम का वास बिहार के समान है।"
इस दोहे में तुलसीदासजी कह रहे हैं कि रामकथा मंदाकिनी नदी की तरह मनमोहक है और चित्रकूट पर्वत की तरह अत्यंत सुंदर है। उन्होंने सीता-राम के वास को भी तुलसी के सुंदरता और सनेह के समान बताया है।
राम चरित चिंतामनि चारू। संत सुमति तिय सुभग सिंगारू॥
जग मंगल गुन ग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥210
यह दोहे गोस्वामी तुलसीदासजी के 'रामचरितमानस' से हैं। इसका अर्थ है:
"रामायण चिंतामणि (मनोकामना को पूर्ण करने वाली चिन्तामणि) है और उसकी कथा बहुत ही सुंदर है। संतों के लिए वह राम की सुमति (समझ) और सुभग सिंगार है। राम के गुण जगत में मंगलमय हैं, वे दान, मुक्ति, धन, धर्म और आध्यात्मिक लोक के धाम हैं।"
इस दोहे में कहा गया है कि रामायण मनोकामना को पूर्ण करने वाली चिन्तामणि है और उसकी कथा अत्यंत सुंदर है। संतों के लिए वह राम की समझ और सुंदर सिंगार (श्रृंगार) है। राम के गुण जगत में मंगलमय हैं, वे दान, मुक्ति, धन, धर्म और आध्यात्मिक लोक के धाम हैं।
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