रामचरितमानस श्लोक अर्थ राम और सीता मंजुता

रामचरितमानस श्लोक अर्थ राम और सीता मंजुता  Ramcharitmanas shloka meaning Ram and Sita Manjuta

रामचरितमानस श्लोक अर्थ
सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना। ग्यान नयन निरखत मन माना॥
रघुपति महिमा अगुन अबाधा। बरनब सोइ बर बारि अगाधा॥242

यह श्लोक श्रीरामचरितमानस में है और इसका अर्थ है:
"सप्त प्रबन्ध शुभ सोपानों के समान हैं, जिनमें ज्ञान की धारा बहती है और मन मान को अनुभव करता है। रघुपति श्रीराम की महिमा अग्नि की तरह अद्भुत है, जो बार-बार वर्णन किया जाता है और जिसका अन्त नहीं होता।"
यह श्लोक भगवान श्रीराम की महिमा और उनके गुणों की महत्ता को व्यक्त करता है।

राम और सीता मंजुता
राम सीय जस सलिल सुधासम। उपमा बीचि बिलास मनोरम॥
पुरइनि सघन चारु चौपाई। जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई॥243

यह श्लोक तुलसीदास जी के रामचरितमानस से हैं। इस श्लोक का अर्थ है:
"राम और सीता वैदेही (सीया) जैसे हैं वैसे ही साफ़ और मधुर स्वरूप में पवित्र जल की तरह सुखदायी हैं। इन गहरी और सुंदर चौपाईयों में ज्ञान और भक्ति की मिठास है, जो मन को प्रिय है और उसे सुखदायक अनुभव कराती है।"
कमल के रंगीन सोहा
छंद सोरठा सुंदर दोहा। सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा॥
अरथ अनूप सुमाव सुभासा। सोइ पराग मकरंद सुबासा॥244

यह दोहा भाषा में बहुत सुंदरता से व्यक्त करता है कि जैसे कि सुंदर बहुरंगी कमल कुंजों में सुखद होते हैं, वैसे ही प्राकृतिक रूप से उत्पन्न हुए व्यक्ति अपने संतानों में सुंदरता और श्रेष्ठता की भावना को संजीवनी देते हैं। इस दोहे में 'बहुरंग' कमल का उल्लेख करके यह बताया गया है कि संतान भी अनेक गुणों और योग्यताओं में समृद्ध होती हैं, जो उसे समृद्ध और सुंदर बनाते हैं। इसमें संतान की शोभा और प्रकाश की तुलना पराग (सुगंधित फूल) और मकरंद (मधु) के सुगंध से की गई है। इसमें परंपरागत सुंदरता और विशेषता की व्याख्या की गई है।

अच्छे कर्म, ज्ञान, वैराग्य
सुकृत पुंज मंजुल अलि माला। ग्यान बिराग बिचार मराला॥
धुनि अवरेब कबित गुन जाती। मीन मनोहर ते बहुभाँती॥245

यह श्लोक संस्कृत में है, और इसका अर्थ है:
"सुकृत (अच्छे कर्म) की माला बहुत ही मनोहर होती है, लेकिन ज्ञान और वैराग्य (त्याग) की माला से भी बहुत अधिक चमकती है। इसी प्रकार, गुणों की धारा अपने आप में एक सुंदर मीन की तरह बहुत विविध होती है।"
यह श्लोक जीवन में अच्छे कर्म करने की महत्ता और उन्हें समझने के विशेष मान्यताओं को दर्शाता है, और साथ ही साथ ज्ञान और वैराग्य की महत्ता को भी उजागर करता है।

जीवन के मार्ग चार
अरथ धरम कामादिक चारी। कहब ग्यान बिग्यान बिचारी॥
नव रस जप तप जोग बिरागा। ते सब जलचर चारु तड़ागा॥246

यह श्लोक संस्कृत में है और इसका अर्थ है:
"अर्थ (धन), धर्म, काम (कार्य) और मोक्ष - ये चारों ही मार्ग हैं। ग्यान (ज्ञान) और बिग्यान (विज्ञान) को सोचने में कहना जाता है। जप (मंत्र-जाप), तप (तपस्या), योग (ध्यान) और वैराग्य (दूसरों के प्रति उदारता) - ये सभी जलचर जीवों के लिए भी आकर्षक होते हैं।"
इस श्लोक में बताया गया है कि जीवन में सभी योग्यताएं और अनुभव हैं, और व्यक्ति को अपनी प्राथमिकताओं और आदर्शों के अनुसार चुनना चाहिए। यह श्लोक जीवन के विभिन्न पहलुओं को संतुलित रखने की महत्ता को दर्शाता है।

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