बाल्मीकि रामायण के दूसरे भाग राम कथा, Ram Katha, the second part of Valmiki Ramayana,
रामायण कथा के दूसरे भाग में,
श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण, सीता माता के साथ चित्रकूट पर्वत पर निवास कर रहे थे। एक दिन वहाँ पर शूर्पणखा नाम की राक्षसी आई। शूर्पणखा ने राम और लक्ष्मण को देखकर उनमें मोहित होकर उनके पास जाकर अपनी भावनाओं का इजहार किया। वह चाहती थी कि राम उससे विवाह करें और लक्ष्मण को छोड़कर उसके साथ रहें।लेकिन राम ने शूर्पणखा की बात न सिर्फ अनदेखी की, बल्कि उसने उसे समझाया कि वह सीता की पत्नी हैं और उनके अलावा कोई और महिला उनकी भावनाओं को पूरा नहीं कर सकती।
शूर्पणखा नाराज होकर अपने भाई खर और दूसरे राक्षसों को लेकर वापस आई और उन्होंने सीता, राम और लक्ष्मण के खिलाफ साजिश की। खर, दूसरे राक्षसों के साथ मिलकर वे चित्रकूट पर्वत पर आए और लक्ष्मण को मारने की कोशिश की, परन्तु राम और लक्ष्मण ने उन्हें परास्त कर दिया।
इसके बाद, शूर्पणखा ने रावण को इस बारे में बताया और रावण ने फिर से सैकड़ों राक्षसों को चित्रकूट पर्वत पर भेजा। इस बार भी राम, लक्ष्मण ने उन्हें परास्त कर दिया।
इसके बाद राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट से विचलित होकर दंडकारण्य में चले गए, जहां उनकी अनेक अनुभव और वीरता की कहानियाँ हैं।
जीवन के मूल्यों संस्कृति
यह सब आदेश आत्मक है धर्मं चर- धर्म पर चलो, सत्यं वद- सत्य बोलो, यह सब आदेशात्मक है, और सुहृत सम्मित है जैसे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता समझाई यह सुहृत संम्मित है , लेकिन जो बाल्मीकि रामायण में है यह कांता सम्मित उपदेश है कांता समिति काव्य है जो काव्य होते हैं कांता सम्मित होते हैंजैसे- पत्नी मीठी मीठी बातों के द्वारा अपने पति को समझाती है, वैसे यह का बड़े से बड़े सिद्धांतों को मीठे ढंग से समझा देती है भगवत चरित्र का आश्रय लेकर के और हमारे एक आचार्य ने लिखा है कि शब्द प्रधान होने के कारण बाल्मीकि रामायण वेद की तरह है
अर्थ प्रधान होने के कारण यह महाभारत और पुराणों आदि की तरह भी है और व्यंग प्रधान होने के कारण यह कांता सम्मित तो है ही , यह श्रेष्ठ काव्य है ही ( व्यंग का तात्पर्य है ) कि जहां एक शब्द कई अर्थों को व्यन्जित करते हों, अर्थ प्रगट करते हों उसे व्यंग प्रधान कहते हैं
"वृध्दोहं त्वमयुवाधन्वी शक्ती कवची शरी" -
"मैं बूढ़ा हूं, तुम युवा हो, तुम रथ पर हो मैं बिरथ हूं, तुम अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित हो, मेरे पास कोई अस्त्र शस्त्र नहीं है, तुम्हारे पास अनेकों युद्धों का अनुभव है, मैंने कोई बड़ी लड़ाई जीवन में नहीं लड़ी है।"यह श्लोक महाभारत के युद्ध के समय में व्यक्तिगत संवाद का हिस्सा है और इसमें दो व्यक्तियों के बीच अंतर को दर्शाया गया है। इसमें एक पुराने और अनुभवी व्यक्ति की कमजोरियों और एक युवा और शक्तिशाली व्यक्ति की ताकत का तुलनात्मक वर्णन किया गया है।
यह श्लोक संस्कृत में है और इसका अर्थ है:
"वृद्ध: अहं" - मैं बूढ़ा हूँ।
"त्वम् युवा" - तुम युवा हो।
"धन्वी शक्ती" - धनुष धारण करने वाली शक्ति (विशेषतः अर्जुन को संदर्भ में इस्तेमाल होने वाला एक उपनाम)।
"कवची शरी" - कवच (रक्षा) धारण किया हुआ शरीर।
इस श्लोक का अर्थ है कि "मैं बूढ़ा हूँ, तुम युवा हो, मैंने धनुष धारण किया है और तुम्हारा शरीर एक कवच की भाँति है"।
यह श्लोक संस्कृत महाकाव्य 'महाभारत' से है, जोकि भारतीय साहित्य का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
आपने दिया हुआ श्लोक विशेषतः 'महाभारत' से है और इसका अर्थ निम्नलिखित है
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