संभु और पार्वती की पूजा

संभु और पार्वती की पूजा Worship of Sambhu and Parvati

एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं॥
संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी॥307

यह दोहा भगवान शिव और माता पार्वती की कथा से संबंधित है।
इस दोहे में बताया गया है कि एक बार त्रेता युग में, भगवान शिव (संभु) और माता पार्वती (सती जगजननि भवानी) कुंभज ऋषि के आश्रम में गए थे। वहां उन्होंने ऋषि का पूजन किया, क्योंकि ऋषि अखिलेश्वर, यानी सभी देवों के स्वामी, थे।
यह कविता शिव और पार्वती की महिमा और उनके महानता को दर्शाने के लिए है, जैसे कि वे सभी ऋषियों द्वारा सम्मानित होते हैं और उनके पूजन में सभी देवी-देवताओं का आदर किया जाता है।

"रामकथा मुनीबर्ज बखानी। सुनी महेस परम सुखु मानी॥
रिषि पूछी हरिभगति सुहाई। कही संभु अधिकारी पाई॥"308

इन दोहों में, तुलसीदास जी भगवान शिव की महिमा और भगवान राम की कथा के महत्त्व को बता रहे हैं।
पहले दोहे में, उन्होंने कहा है कि भगवान शिव ने मुनियों को रामकथा की बातें सुनाई और इसे सुनकर उन्होंने बहुत अधिक सुख महसूस किया।
दूसरे दोहे में, ऋषि ने हरिभक्ति को शिव जी से पूछा और शिव जी ने उन्हें बताया कि उन्होंने हरिभक्ति का अधिकारी होना कैसे प्राप्त किया।
इससे यह संदेश मिलता है कि भगवान शिव ने भी भगवान राम की कथा को सुना और उसे सुनकर अत्यधिक सुखी महसूस किया। वे भगवान राम के भक्त थे और उन्हें हरिभक्ति का अधिकारी बताया गया।
"कहत सुनत रघुपति गुन गाथा। कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा॥
मुनि सन बिदा मागि त्रिपुरारी। चले भवन सँग दच्छकुमारी॥"309

इन दोहों में, तुलसीदास जी भगवान शिव और माता पार्वती की कथा को वर्णित कर रहे हैं।
पहले दोहे में, भगवान शिव को कहते सुनते रघुपति (भगवान राम) उनके गुणों की गाथा सुनाते थे और कुछ दिन गिरिनाथ (हिमालय के राजा, शिव) के साथ रहते थे।
दूसरे दोहे में, शिव ने मुनियों से विदा मागी (विदाई मांगी) और उनके साथ दक्षकुमारी (माता सती, पार्वती) भवन के संग चली गईं। यहां इस विदाई का अर्थ है कि शिव और पार्वती ने मुनियों से अलग होकर अपने धार्मिक कार्यों के लिए अपना अगला पथ चुना।

"तेहि अवसर भंजन महिभारा। हरि रघुबंस लीन्ह अवतारा॥
पिता बचन तजि राजु उदासी। दंडक बन बिचरत अबिनासी॥"310

यह दोहा श्रीराम के जीवन से जुड़ी हुई है। इसमें बताया गया है कि जब सीता जी और श्रीराम जी वनवास में थे, तो भगवान विष्णु ने उनके रूप में अवतार लिया।
"तेहि अवसर भंजन महिभारा" - इसमें बताया जा रहा है कि श्रीराम जी के जीवन में वह समय था जब वे असुरों के भारी भार से परेशान थे।
"हरि रघुबंस लीन्ह अवतारा" - यहां श्रीराम जी को ही भगवान विष्णु के अवतार के रूप में प्रकट होने की बात कह रहा है।
"पिता बचन तजि राजु उदासी। दंडक बन बिचरत अबिनासी" - इसमें बताया गया है कि श्रीराम ने अपने पिता के आदेश को मानते हुए राजा का भार त्यागकर दंडक वन में जाकर निवास किया, जहां उनका वनवास बहुत दुर्भाग्यशाली और दुर्योधनी था।

"हृदयं बिचारत जात हर केहि बिधि दर्शनु होइ।
गुप्त रूप अवतरेउ प्रभु गएं जान सबु कोइ॥"311

यह दोहा भगवान की अदृश्य रूप की महत्ता को बताता है। यह कहता है कि जब कोई हृदय की गहराई से भगवान को चिंतन करता है और उसकी इच्छा से भगवान के दर्शन होते हैं, तो वह दर्शन सबसे अद्भुत होते हैं। भगवान अपना गुप्त रूप (अदृश्य रूप) से अवतरित होते हैं, और वे उस रूप में चले जाते हैं, जिसे कोई नहीं जान पाता।

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