सीता का अपहरण: अशोक वाटिका

सीता का अपहरण: अशोक वाटिका  Overview of Sita: Ashok Vatika

यह वह स्थान है जहां राम की पत्नी सीता को अपहरण के बाद रावण ने बंदी बना लिया था, क्योंकि उन्होंने रावण के महल में रहने से इनकार कर दिया था और अशोक वाटिका में शिमशापा के पेड़ के नीचे रहना पसंद किया था। रावण ने माता सीता का हरण करने के पश्चात उन्हें अशोक वाटिका में रखा गया था। यह अशोक वाटिका रावण ने बनवाई थी। इस वाटिका में एक गुफा भी है। यह वाटिका आज भी श्रीलंका के एक पर्वत पर स्थित है 1. अशोक वाटिका लंका में स्थित है, जहां रावण ने सीता को हरण करने के पश्चात बंधक बनाकर रखा था। ऐसा माना जाता है कि एलिया पर्वतीय क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था जिसे ‘सीता एलिया’ नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है। वेरांगटोक, जो महियांगना से 10 किलोमीटर दूर है वहीं पर रावण ने सीता का हरण कर पुष्पक विमान को उतारा था। महियांगना मध्य श्रीलंका स्थित नुवारा एलिया का एक पर्वतीय क्षेत्र है। इसके बाद सीता माता को जहां ले जाया गया था उस स्थान का नाम गुरुलपोटा है जिसे अब ‘सीतोकोटुवा’ नाम से जाना जाता है। यह स्थान भी महियांगना के पास है। एलिया पर्वतीय क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था जिसे ‘सीता एलिया’ नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है। इसके अलावा और भी स्थान श्रीलंका में मौजूद हैं, जिनका ऐतिहासिक महत्व है।

जानिये सीता किस पेड़ के नीचे बैठी 

सीता ने अपने अपहरण के दौरान अशोक वाटिका में शिमशापा के पेड़ के नीचे ही बैठना पसंद किया था। इसे अशोक वाटिका के माध्यम से व्यक्त किया गया है, जो रावण के महल के आस-पास ही था। यह वाटिका रावण के राजमहल के पास स्थित थी और सीता ने यहां पर अपने पति राम की याद में बैठकर उनका इंतजार किया था।

अशोक वाटिका में शिमशापा के पेड़ की कथा

अशोक वाटिका में शिमशापा के पेड़ की कथा रामायण में बहुत महत्त्वपूर्ण है। यहां रावण ने सीता को बंदी बनाया था, और सीता ने उस समय शिमशापा के पेड़ के नीचे ही बैठने का फैसला किया था। कथा कहती है कि रावण ने सीता को अपहरण कर लिया और उसे अपने राजमहल में ले गया। सीता ने राम की याद में त्रासदी महसूस की और वह राम के लिए विलाप करने लगी। वह राम की प्रेम की भावना में डूबी रहती थी और अपने पति के प्रति निष्ठा और समर्पण दिखाती रहती थी। रावण ने अनेक प्रकारों से उसे सम्मोहित करने की कोशिश की, परंतु सीता ने हमेशा अपने पति के प्रति वफादार रही। अशोक वाटिका में शिमशापा के पेड़ के नीचे बैठते समय, सीता ने वहां अपने आत्मसमर्पण और सहनशीलता का प्रदर्शन किया। वह उम्मीद और आत्मविश्वास से भरी रही और राम की प्रतीक्षा में धैर्य से रही। इस पेड़ की कथा मानवता, साहस और समर्पण के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत की जाती है।

महत्त्व  शिमशापा के पेड़ की पूजा के विशेष लाभ 

शिमशापा के पेड़ की पूजा के विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व हैं। इस पेड़ की पूजा को कुछ विशेष लाभों से जोड़ा जाता है:
  1. आध्यात्मिक स्थिरता:** शिमशापा के पेड़ की पूजा करने से आध्यात्मिक संवेदना बढ़ती है। इसका फलस्वरूप व्यक्ति शांति, मानसिक स्थिरता और आत्मानुभूति प्राप्त कर सकता है।
  2. कष्ट और दुःखों का निवारण:** शिमशापा के पेड़ की पूजा का मान्यता से माना जाता है कि यह कष्ट और दुःखों को दूर करने में मदद करती है। यह पूजा व्यक्ति को जीवन की मुश्किल स्थितियों से निपटने में सहायता प्रदान कर सकती है।
  3. संतान की कामना:** कुछ स्थानों पर, शिमशापा के पेड़ की पूजा संतान की कामना को पूरा करने में सहायता करती है।प्राकृतिक चिकित्सा:** इस पेड़ के पत्ते और वृक्ष के अन्य भागों का उपयोग प्राकृतिक उपचार के रूप में भी किया जाता है।
यह पेड़ और उसकी पूजा विभिन्न सम्प्रदायों और क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण होती है। यह विशेष तरीके से विश्वास किया जाता है कि इस पूजा से व्यक्ति को अनेक सार्वभौमिक और आत्मिक लाभ प्राप्त हो सकते हैं।

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