सीता स्वयंवर कथा रामचंद्रजी के महिमा

सीता स्वयंवर कथा रामचंद्रजी के महिमा Sita Swayamvar Story Glory of Ramchandraji

सीय स्वयंबर कथा सुहाई। सरित सुहावनि सो छबि छाई॥
नदी नाव पटु प्रस्न अनेका। केवट कुसल उतर सबिबेका॥ 270

तुलसीदास जी द्वारा लिखी गई "सीता स्वयंवर" कथा रामायण का हिस्सा है। यह कथा भगवान राम और माता सीता के विवाह के बारे में है।
"सरित सुहावनि सो छबि छाई" इस श्लोक में, तुलसीदास जी कह रहे हैं कि सीता माता की सुंदरता नदी के किनारे की सुंदरता की तरह है, जिसका चेहरा वहाँ की छाया बनता है।
"नदी नाव पटु प्रस्न अनेका, केवट कुसल उतर सबिबेका" - इस छंद में, तुलसीदास जी वर्णन कर रहे हैं कि विभिन्न प्रकार की नदियों के उस पार करना और नाविका के कौशल से जुड़ा है। यहाँ, सीता माता के स्वयंवर का संदेश है कि श्रीराम ने धनुष तोड़ने में सफलता प्राप्त की, जो इस कथा का मुख्य हिस्सा है।
तुलसीदास जी के द्वारा लिखी गई यह कथा धार्मिकता और साहित्यिकता के माध्यम से भारतीय समाज में गहरी प्रभाव छोड़ चुकी है।

सुनि अनुकथन परस्पर होई। पथिक समाज सोह सरि सोई॥
घोर धार भृगुनाथ रिसानी। घाट सुबद्ध राम बर बानी॥ 271

"सुनि अनुकथन परस्पर होई, पथिक समाज सोह सरि सोई" - इस श्लोक में, तुलसीदास जी कह रहे हैं कि जब लोग एक-दूसरे की कथाएं सुनते हैं और उन्हें साझा करते हैं, तो समाज सभी के साथ उन्नति करता है। यहाँ एक अच्छी समाजिक संस्कृति की महत्ता बताई गई है।
"घोर धार भृगुनाथ रिसानी, घाट सुबद्ध राम बर बानी" - इस छंद में, तुलसीदास जी भगवान श्रीराम की महिमा गाते हैं। यहाँ प्रभु राम के गुणों की बड़ाई हो रही है, उनकी कथा का गुंजाइश की जा रही है जो सभी को प्रेरित करती है।
तुलसीदास जी की रचनाएँ भगवान श्रीराम और उनकी महानता को बयां करती हैं और साथ ही समाज में सहयोग, सद्भावना और समरसता के महत्त्व को भी उजागर करती हैं।

सानुज राम बिबाह उछाहू। सो सुभ उमग सुखद सब काहू॥
कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं। ते सुकृती मन मुदित नहाहीं॥ 272

"सानुज राम बिबाह उछाहू, सो सुभ उमग सुखद सब काहू" - इस श्लोक में, तुलसीदास जी भगवान राम का विवाह को सुंदर एवं धार्मिक बताते हैं। यह बताता है कि भगवान राम का विवाह सर्वश्रेष्ठ और सुखदायक है, जो सभी के लिए शुभ है।
"कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं, ते सुकृती मन मुदित नहाहीं" - यहाँ तुलसीदास जी कह रहे हैं कि जब लोग भगवान राम के विवाह की कथा सुनते हैं, तो उनके हृदय में हर्ष और उत्साह उत्पन्न होता है, और वे सुखी होते हैं। इससे उनकी मनोबल और सुकृति (अच्छे कर्म) में वृद्धि होती है।
यह श्लोक भगवान राम के विवाह के महत्त्व को बताता है और बताता है कि इसकी कथा सुनने से लोगों का मन प्रसन्न होता है और उनके धार्मिक और मानवीय गुण में सुधार होता है।

राम तिलक हित मंगल साजा। परब जोग जनु जुरे समाजा॥
काई कुमति केकई केरी। परी जासु फल बिपति घनेरी॥ 273

"राम तिलक हित मंगल साजा, परब जोग जनु जुरे समाजा" - यह श्लोक तुलसीदास जी के द्वारा लिखा गया है और यह बताता है कि भगवान राम के चरणों का सेवन करने से सभी का हित और मंगल होता है। इससे समाज में भगवान के भक्तों का संग और एकता बढ़ती है।
"काई कुमति केकई केरी, परी जासु फल बिपति घनेरी" - यहाँ तुलसीदास जी कह रहे हैं कि जिन लोगों के मन में दोष और अधर्म की भावना होती है, उनका परिणाम बुरा होता है। उन्हें बुरे फलों का सामना करना पड़ता है।
यह श्लोक धार्मिकता और सच्चाई की महत्ता को बताता है और यह बताता है कि जो लोग सच्चाई और धार्मिकता में विश्वास करते हैं, उन्हें सुख और मंगल मिलता है।

दो0-समन अमित उतपात सब भरतचरित जपजाग।
कलि अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग॥ 274

यह दोहा तुलसीदास जी के ग्रंथ "रामचरितमानस" से है।
यह दोहा कहता है कि कलियुग में अवगुणों और दोषों की बातें सुनने और बोलने से होने वाली अत्यधिक चरम अवस्था को   
दूर करने के लिए, श्रीरामचरितमानस के जप और जागरण का वर्णन किया गया है। इसका अर्थ है कि श्रीरामचरितमानस का पाठ और उसके गुणों का ध्यान रखना कलियुग में अवगुणों को दूर करने में सहायक हो सकता है।

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