श्लोक भारतीय संस्कृति में सुंदरता को समर्पित भावार्थ [81-86]

श्लोक भारतीय संस्कृति में सुंदरता को समर्पित भावार्थ Shloka dedicated to beauty in Indian culture

श्लोक 
मनि मानिक मुकुता छबि जैसी। अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी ।। 
 नृप किरीट तरुनी तनु पाई। लहहिं सकल सोभा अधिकाई।। 81
यह श्लोक भारतीय संस्कृति में सुंदरता को समर्पित है। यह श्लोक एक महान कवि और रामायण के लेखक, महर्षि वाल्मीकि जी के द्वारा रचित "रामायण" से लिया गया है।
भावार्थ-
मणि की तरह चमकने वाले माणिक्य और मुकुट की छवि जैसी। नागराज शेषनाग के सिर पर हाथी के सिर की तरह वह सोहा नहीं।
राजा के किरीट (मुकुट) की तरह छोटी युवती का शरीर पाया। वह सभी सुंदरता को बहुत ज्यादा दिखाती थी।"
श्लोक 
तैसेहिं सुकबि कबित बुध कहहीं। उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं।।
 भगति हेतु बिधि भवन बिहाई। सुमिरत सारद आवति धाई।। 82
भावार्थ-
"सुकबि (कवियों के गुणों को बयान करने वाले) भी कहते हैं कि उनकी अनगिनत अनगिनत छवियाँ (गुण) उत्पन्न होती हैं। भक्ति के लिए विधि ने भवन (घर) को छोड़ दिया है, सार्वभौम भगवान राम की स्मृति करते हुए लोग उत्तेजित होकर आते हैं और उन्हें धायन में ले लेते हैं।"
यह श्लोक भक्ति के महत्त्व को और भगवान राम की स्मृति में ध्यान का महत्त्व बताता है। इसमें उन्हें प्रेम और श्रद्धा से भगवान की याद करने की प्रेरणा दी गई है।
श्लोक 
राम चरित सर बिनु अन्हवाएँ। सो श्रम जाइ न कोटि उपाएँ।। 
कबि कोबिद अस हृदय बिचारी। गावहिं हरि जस कलि मल हारी ।। 83
भावार्थ-
"रामचरित्र (भगवान राम की कथा) को बिना सुनाने से उनका सर्वोत्तम मार्ग प्राप्त नहीं होता है। कई कोटि (करोड़ों) प्रयासों से भी वह श्रम व्यर्थ होता है। कवि (कवियों) और पंडित (ज्ञानियों) का हृदय रामायण की चर्चा करने में ही लगा होता है, जिससे वे हरि (भगवान) की स्तुति करते हैं, जो कलियुग के पाप को नष्ट करने वाला है।"
यह श्लोक भगवान राम के चरित्र की महत्ता और उसके सुनने या पढ़ने के महत्त्व को दर्शाता है, जिससे व्यक्ति धर्मपरायण बनता है और पापों से मुक्ति प्राप्त करता है।
श्लोक 
कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना। सिर धुनि गिरा लगत पछिताना ।। 
हृदय सिंधु मति सीप समाना। स्वाति सारदा कहहिं सुजाना।। 84
भावार्थ-
"प्राकृतिक गुणों का गान करने वाले लोगों ने समझाया है कि जब समय गुजर जाता है, तो वे खोए हुए समझते हैं। वे हृदय के समुद्र में मतिमान सीप (समझ) के समान हैं, और वे स्वाति और सारद (मंगल) के महिने के समान हैं, जो समझदार कहलाते हैं।"
यह श्लोक बुद्धिमानता और समय के महत्त्व को दर्शाता है। इसमें बताया गया है कि समय से पहले उपयुक्त कार्य करने की बुद्धि रखने वाले व्यक्ति ही असल में समय में अच्छा उपयोग कर सकते हैं।
श्लोक 
जौं बरषइ बर बारि बिचारू। होहिं कबित मुकुतामनि चारू ।। 85
भावार्थ-
यह श्लोक एक सुंदर ध्वनि को प्रकट करता है। इसमें व्यक्त किया गया है कि जब श्रेष्ठ विचार का जल बरसता है, तो कविता मुक्ता मणि के समान सुंदर होती है। यहां 'जल बरसता है' की मुक्ति के रूप में कविता का उद्दारण किया गया है, जो कि सुंदरता, सादगी और ऊर्जा को दर्शाता है। विचारों और अभिव्यक्ति की रूपरेखा को मुक्ता मणि के साथ तुलना करते हुए श्रेष्ठता को दर्शाने का प्रयास किया गया है।
"जब बादल बरसते हैं, तो मैं उनको बार-बार देखता हूँ और इस प्रकार कविता के मुकुट में उनकी चमक को चार्मिन्द देखता हूँ।"
यह श्लोक प्राकृतिक दृश्यों के सौंदर्य को व्यक्त करता है और कवि अपनी कविता में वर्षा के समय की सुंदरता को दर्शाता है।
श्लोक 
दो- जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग ।
 पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग ॥  86
भावार्थ-
"दो-जुगुती (दोहे) फिर से बोलिए, रामायण की कहानी को लेकर। सत्संगति में रहने से अच्छे लोगों का पुनः सम्पर्क करना, जिससे उनके प्रेम में और भी बढ़ावा हो।"
यह श्लोक रामायण की महत्ता और सत्संगति (अच्छे लोगों के साथ संगति) के महत्त्व को बताता है। इसका संदेश है कि रामायण की कथा को बार-बार ध्यान में रखना और सत्संग में रहकर सत्संगी व्यक्तियों के साथ संवाद करना मानव जीवन को प्रेरित कर सकता है और प्रेम की भावना को बढ़ा सकता है।आप लोग हमारे वेबसाइट पर आनी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आपको अगर हमारी पोस्ट अच्छी लगती है अधिक से अधिक लोगों तक फेसबुक व्हाट्सएप इत्यादि पर शेयर अवश्य करें और कमेंट कर हमें बताएं कि आपको इस तरह की जानकारी चाहिए जो हिंदू धर्म से हो

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