तुलसीदास जी की शिक्षा

तुलसीदास जी की शिक्षा Tulsidas ji's education

"संकर उर अति छोभु सती न जानहिं मरमु सोइ॥
तुलसी दरसन लोभु मन डरु लोचन लालची॥"312

यह दोहा तुलसीदास जी की भक्ति और प्रेम को व्यक्त करता है।
"संकर उर अति छोभु सती न जानहिं मरमु सोइ" - यहां बताया गया है कि संसारिक विषयों में अत्यंत लुभावने चीजों को मनुष्य अपने हृदय में छुपा लेता है, लेकिन उसे अपने जीवन का सत्य नहीं पता चलता।
"तुलसी दरसन लोभु मन डरु लोचन लालची" - इसमें बताया गया है कि तुलसीदास जी का मानना था कि उनका मन तुलसीदास के दर्शन को पाने के लिए बेहद बेचैन था, और उनकी आंखें भी लालची थीं। वे भगवान के दर्शन के लिए बहुत बेचैन थे और उन्हें अपने दर्शन की अभिलाषा थी।

"रावन मरन मनुज कर जाचा। प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा॥
जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा। करत बिचारु न बनत बनावा॥"313

ये पंक्तियाँ भगवान राम के जीवन से जुड़ी हैं और यह बताती हैं कि बातों में विश्वास रखना और उन्हें पालना कितना महत्त्वपूर्ण होता है।
"रावन मरन मनुज कर जाचा" - यहां बताया गया है कि मनुष्य को रावण की मृत्यु को प्राप्त करनी है, अर्थात् उसे अपनी बुराईयों को अन्त करना होता है।
"प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा" - इसमें बताया गया है कि भगवान राम ने जो वचन दिए हैं, वे हमेशा सत्य होते हैं और उन्हें पूरा करना चाहिए।
"जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा" - यह बताता है कि अगर हम सही रास्ते पर नहीं चलते हैं और गलती करते हैं, तो बाद में हमें पछतावा होता है।
"करत बिचारु न बनत बनावा" - इसमें बताया गया है कि हमें अपने कार्यों को सोच-समझकर करना चाहिए, बिना सोचे-समझे नहीं करना चाहिए।
"एहि बिधि भए सोचबस ईसा। तेहि समय जाइ दससीसा॥
लीन्ह नीच मारीचहि संगा। भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा॥"314

ये पंक्तियाँ भगवान राम के जीवन से जुड़ी हैं और यह बताती हैं कि चालाकी या धोखाधड़ी किसी को भी बड़ी मुश्किल में डाल सकती है।
"एहि बिधि भए सोचबस ईसा। तेहि समय जाइ दससीसा॥" - इसमें बताया गया है कि कई बार चालाकी और धोखाधड़ी के जरिए किसी को धोखा देने की योजना बनाई जाती है, लेकिन जब वो समय आता है, तो वह योजना खुद उसके खिलाफ हो जाती है।
"लीन्ह नीच मारीचहि संगा। भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा॥" - यहां बताया गया है कि जब रावण ने मारीच को अपने साथ लिया, तो वह तुरंत ही उसके धोखाधड़ी में फंस गया और उसने उसे कुप्रयोग में ला दिया।

"करि छलु मूढ़ हरी बैदेही। प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही॥
मृग बधि बन्धु सहित हरि आए। आश्रमु देखि नयन जल छाए॥"315

यह दोहे भगवान राम और सीता के सम्बन्ध को व्यक्त करते हैं।
"करि छलु मूढ़ हरी बैदेही। प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही॥" - इसमें बताया गया है कि बैदेही, यानी सीता ने भगवान राम के साथ एक छल किया था, लेकिन वे छल को समझ नहीं पाए।
"मृग बधि बन्धु सहित हरि आए। आश्रमु देखि नयन जल छाए॥" - यहां बताया गया है कि जब भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण और मृगों के साथ आश्रम में आए, तो सीता के आंखों में जल आ गया। वे भावुक हो गईं क्योंकि उन्होंने अपनी छल को समझ नहीं पाया।

"बिरह बिकल नर इव रघुराई। खोजत बिपिन फिरत दोउ भाई॥
कबहूँ जोग बियोग न जाकें। देखा प्रगट बिरह दुख ताकें॥"316

ये पंक्तियाँ प्रेम और विचार के बारे में हैं।
"बिरह बिकल नर इव रघुराई। खोजत बिपिन फिरत दोउ भाई॥" - इसमें बताया गया है कि जैसे मनुष्य अपने प्रियजन के बिना बेचैन होता है, उसी तरह भगवान राम भी सीता के अभाव में उदासीन थे।
"कबहूँ जोग बियोग न जाकें। देखा प्रगट बिरह दुख ताकें॥" - यहां बताया गया है कि कभी-कभी मिलन और वियोग के समय भी प्रेमी अलग नहीं होते हैं, लेकिन प्रेम की विशेषता यहां है कि उसका असर हमेशा महसूस होता है।

अति विचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान।
जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन॥317

यह छंद भगवान राम के विचित्र चरित्र को वर्णित करता है। इसमें कहा गया है कि जो लोग मतिमान नहीं होते और भ्रमित होकर कुछ अनजान सोचते हैं, वे भगवान राम के चरित्र को समझ नहीं पाते।
अति विचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान।
जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन रघुनाथ का चरित्र बड़ा ही विचित्र है, उसको पहुँचे हुए ज्ञानीजन ही जानते हैं। जो मंदबुद्धि हैं, वे तो विशेष रूप से मोह के वश होकर हृदय में कुछ दूसरी ही बात समझ बैठते हैं॥
यह श्लोक भगवान राम के चरित्र की महत्ता और उसकी अद्भुतता को बताता है। इसमें यह कहा गया है कि रघुनाथ (भगवान राम) के चरित्र में एक अद्भुतता है, और इसे समझने वाले ज्ञानी ही होते हैं। वे लोग जो बुद्धिमान नहीं हैं, वे मोह के वश में होकर हृदय में कुछ और ही समझ बैठते हैं।

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