तुलसीदास के 20 दोहे अर्थ सहित{193-196}

तुलसीदास के 20 दोहे अर्थ सहित 20 couplets of Tulsidas with meaning

सोइ करतूति बिभीषन केरी। सपनेहुँ सो न राम हियँ हेरी॥
ते भरतहि भेंटत सनमाने। राजसभाँ रघुबीर बखाने॥193

"सोइ करतूति बिभीषन केरी। सपनेहुँ सो न राम हियँ हेरी॥" इस पंक्ति में कहा गया है कि जैसे रावण की पुत्री सीता ने विभीषण को भगवान राम का प्रतीक्षा करने की सलाह दी, उसी तरह हमें भी अपनी आत्मा को भगवान की खोज में जुटाना चाहिए।
"ते भरतहि भेंटत सनमाने। राजसभाँ रघुबीर बखाने॥" इस पंक्ति में कहा गया है कि भरत ने भगवान राम को सम्मान और आदर्श के साथ भेंट की, और राजसभा में उनकी महिमा का वर्णन किया।
इन पंक्तियों में भक्ति, श्रद्धा, और भगवान के प्रति समर्पण के महत्त्व को बताया गया है। भक्ति और भगवान की आराधना के माध्यम से ही हम अपने अंधकार को दूर कर सकते हैं और सत्य की ओर प्रकाश को प्राप्त कर सकते हैं।

दो0-प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान॥
तुलसी कहूँ न राम से साहिब सीलनिधान॥194

यह दोहा गोस्वामी तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है। इस दोहे में उन्होंने भगवान राम की महिमा को व्यक्त किया है।
"प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान॥"
इस दोहे में तुलसीदास जी कह रहे हैं कि भगवान राम ने जब वन में जाने का समय आया तो स्वयं वनरों से मदद मांगी। उन्होंने स्वयं ही अपनी स्थिति को वन में उनके समान बनाया। यहां तक कि वनरों से भी जब वह सम्मानित और उनके साथ समान व्यवहार किया। इससे स्पष्ट होता है कि भगवान का प्रेम और सम्मान सभी के लिए समान होता है।
तुलसी कहूँ न राम से साहिब सीलनिधान॥"
यह दोहा गोस्वामी तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है। इसमें वे भगवान राम की सील (गुणों) की महिमा को व्यक्त कर रहे हैं।
इस दोहे में तुलसीदास जी कह रहे हैं कि मैं भगवान राम की सील (गुणों) की महिमा को वर्णन नहीं कर सकता। यहाँ उन्होंने भगवान राम के गुणों की अद्भुतता और उनकी महिमा को स्तुति के रूप में उचित माना है, जिन्हें वे अपने शब्दों में व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। उनके इस उत्साह और भक्ति से पता चलता है कि भगवान राम की सील (गुणों) की अत्यन्त उत्कृष्टता है और वे उन्हें अपने शब्दों में व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं।
राम निकाईं रावरी है सबही को नीक।
जों यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक॥195

"राम निकाईं रावरी है सबही को नीक।"
इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान राम की महिमा को व्यक्त कर रहे हैं। इस पंक्ति में उन्होंने कहा है कि भगवान राम का स्वरूप सभी के लिए नीक (उत्तम) है। यहाँ "निकाईं" शब्द का अर्थ होता है "स्वरूप" या "सच्चाई"। उनकी स्वरूपता और गुणों की महिमा सभी के लिए उत्तम है। तुलसीदास जी इस पंक्ति में भगवान राम के उच्च स्थान को बताते हैं, जो सभी के लिए उपयुक्त और उत्तम है।
"जों यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक॥"
यह दोहा गोस्वामी तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है। इस पंक्ति में उन्होंने भगवान राम की गुणों की महिमा को व्यक्त किया है।
यहाँ कहा गया है कि जो व्यक्ति सदा ही साँची और सत्य है, वही नीक है, और तुलसीदास जैसा व्यक्ति भगवान राम को नीक मानता है। इस पंक्ति में सत्यता और सच्चाई के महत्त्व को उजागर किया गया है और उन्होंने इसे भगवान राम की उन्नति और महिमा का हिस्सा बताया है।

एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ।
बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ॥196

"एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ।"
यह दोहा गोस्वामी तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है। इसमें उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण सिख दिया है।
इस पंक्ति में व्यक्त होता है कि हमें अपने गुणों को अधिक चर्चा करने की बजाय दूसरों के गुणों को ढूंढना चाहिए। यह एक महत्त्वपूर्ण संदेश है कि हमें दूसरों के दोषों की बजाय अपने गुणों पर ध्यान देना चाहिए। यह हमें अपने स्वभाव को समझने और स्वयं को सुधारने का मार्ग दिखाता है।
"बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ॥"
यह दोहा गोस्वामी तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है। इसमें वे भगवान राम की महिमा और उनके गुणों की महत्ता को व्यक्त कर रहे हैं।
इस पंक्ति में गोस्वामी तुलसीदास जी कह रहे हैं कि भगवान राम की कथा सुनकर कलियुग में प्राप्त होने वाले दोषों का नाश हो जाता है। भगवान राम की कथा का सुनना कलियुग के दोषों को नष्ट करने में सहायक होता है। इससे हमें उनकी महिमा का अनुभव होता है और हमारा मन शुद्धि की और बढ़ता है।

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