शिव पुराण में ब्रह्मा-विष्णु संवाद

शिव पुराण में ब्रह्मा-विष्णु संवाद

शिव पुराण पौराणिक कथा का भाग है जिसमें ब्रह्मा द्वारा विवाह के लिए भगवान शिव की पूजा और स्तुति का वर्णन है। इसका संदेश है कि भगवान शिव के प्रति भक्ति और पूजा से सभी संसारिक कष्टों का निवारण हो सकता है। यह कथा भक्ति और श्रद्धा का महत्व प्रमोट करती है और यह बताती है कि भगवान की कृपा से सभी समस्याएं हल हो सकती हैं।

शिव पुराण में ब्रह्मा-विष्णु संवाद

ब्रह्माजी बोले- नारद! काम के चले जाने पर श्री महादेव जी को मोहित कराने का मेरा अहंकार गिरकर चूर-चूर हो गया परंतु मेरे मन में यही चलता रहा कि ऐसा क्या करूं, जिससे महात्मा शिवजी स्त्री ग्रहण कर लें। यह सोचते-सोचते मुझे विष्णुजी का स्मरण हुआ। उन्हें याद करते ही पीतांबरधारी श्रीहरि विष्णु मेरे सामने प्रकट हो गए। मैंने उनकी प्रसन्नता के लिए उनकी बहुत स्तुति की। तब विष्णुजी मुझसे पूछने लगे कि मैंने उनका स्मरण किस उद्देश्य से किया था? यदि तुम्हें कोई दुख या कष्ट है तो कृपया मुझे बताओ मैं उस दुख को मिटा दूंगा। तब मैंने उनसे कहा- हे केशव ! यदि भगवान शिव किसी तरह पत्नी ग्रहण कर लें अर्थात विवाह कर लें तो मेरे सभी दुख दूर हो जाएंगे। मैं पुनः सुखी हो जाऊंगा। मेरी यह बात सुनकर भगवान मधुसूदन हंसने लगे और मुझ लोकस्रष्टा ब्रह्मा का हर्ष बढ़ाते हुए बोले- हे ब्रह्माजी! मेरी बातों को सुनकर आपके सभी भ्रमों का निवारण हो जाएगा। शिवजी ही सबके कर्ता और भर्ता हैं। वे ही इस संसार का पालन करते हैं। वे ही पापों का नाश करते हैं। भगवान शिव ही परब्रह्म, परेश, निर्गुण, नित्य, अनिर्देश्य, निर्विकार, अद्वितीय, अनंत और सबका अंत करने वाले हैं। वे सर्वव्यापी हैं। तीनों गुणों को आश्रय देने वाले, ब्रह्मा, विष्णु और महेश नाम से प्रसिद्ध रजोगुण, तमोगुण, सत्वगुण से दूर एवं माया से रहित हैं। भगवान शिव योगपरायण और भक्तवत्सल हैं। हे विधे! जब भगवान शिव ने आपकी कृपा से हमें प्रकट किया था। 
उस समय उन्होंने हमें बताया था कि यद्यपि ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र तीनों मेरे ही अवतार होंगे परंतु रुद्र को मेरा पूर्ण रूप माना जाएगा। इसी प्रकार देवी उमा के भी तीन रूप होंगे। एक रूप का नाम लक्ष्मी होगा और वह श्रीहरि की पत्नी होंगी। दूसरा रूप सरस्वती का होगा और वे ब्रह्माजी की पत्नी होंगी। देवी सती उमा का पूर्णरूप होंगी। वे ही भावी रुद्र की पत्नी होंगी। ऐसा कहकर भगवान महेश्वर वहां से अंतर्धान हो गए। समय आने पर हम दोनों (ब्रह्मा-विष्णु) का विवाह देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी से हुआ। भगवान शिव ने रुद्र के रूप में अवतार लिया। वे कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। जैसा कि भगवान शिव ने बताया था कि रुद्र अवतार की पत्नी देवी सती होंगी, जो साक्षात शिवा रूप हैं। अतः तुम्हें उनके अवतरण हेतु प्रार्थना करनी चाहिए। अपने मनोरथ का ध्यान करते हुए देवी शिवा की स्तुति करो। वे देवेश्वरी प्रसन्न होने पर तुम्हारी सभी परेशानियों और बाधाओं को दूर कर देंगी। इसलिए तुम सच्चे हृदय से उनका स्मरण कर उनकी स्तुति करो । यदि शिवा प्रसन्न हो जाएंगी तो वे पृथ्वी पर अवतरित होंगी। वे इस लोक में किसी मनुष्य की पुत्री बनकर मानव शरीर धारण करेंगी। तब वे निश्चय ही भगवान रुद्र का वरण कर उन्हें पति रूप में प्राप्त करेंगी। तब तुम्हारी सभी इच्छाएं अवश्य ही पूर्ण होंगी। अतएव तुम प्रजापति दक्ष को यह आज्ञा दो कि वे तपस्या करना आरंभ करें। उनके तप के प्रभाव से ही पार्वती देवी सती के रूप में उनके यहां जन्म लेंगी। देवी सती ही महोदव को विवाह सूत्र में बांधेंगी। शिवा और शिवजी दोनों निर्गुण और परम ब्रह्मस्वरूप हैं और अपने भक्तों के पूर्णतःअधीन हैं। वे उनकी इच्छानुसार कार्य करते हैं। ऐसा कहकर भगवान श्रीहरि विष्णु वहां से अंतर्धान हो गए। उनकी बातें सुनकर मुझे बड़ा संतोष हुआ क्योंकि मुझे मेरे दुखों और कष्टों का निवारण करने का उपाय मालूम हो गया था।
इस कथा के माध्यम से सिखने को मिलता है कि अहंकार को त्यागकर और भगवान की शरण में जाकर ही हम दुःखों का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। भगवान के प्रति भक्ति और निष्काम कर्म करने से ही हम आत्मा को शुद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
श्रीरुद्र संकेत-लिपि द्वितीय खंड दसवां अध्याय  समाप्त

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