संपूर्ण सुंदरकांड पाठ हिंदी में चौपाई, चौपाई का भावार्थ (चौपाई 81-90 अर्थ सहित)

संपूर्ण सुंदरकांड पाठ हिंदी में

चौपाई 81-90  अर्थ सहित

श्री रामचरितमानस का पंचम सोपान सुन्दरकाण्ड है। इस सोपान में 01 श्लोक, 03 छन्द, 526 चौपाई, 60 दोहे  हैं। मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करने की परंपरा है
चौपाई
तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं। जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं।।
चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा।।81
81इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में 

"हे माता, तिनों लोक में मुझे किसी भय का सामना नहीं करना पड़ा है। अगर तुम मेरी सुख-सन्तोष को मानती हो, तो मेरे मन में कोई चिंता नहीं है। चलो, मैं नई सिरिसा पर बैठकर तुम्हारे लिए फलों को तोड़ने के लिए जा रहा हूँ। तुम फलों को खाओगी, और यह तुम्हारे लिए सुखप्रद होगा।"
इस चौपाई में हनुमान जी अपनी माता से सान्त्वना कर रहे हैं और उन्हें सुखद भोजन का आनंद लेने के लिए बाग में जाने के लिए कह रहे हैं।
चौपाई
रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे।।
नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी।।82
82इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में

"तुम्हारे पास बहुत सारे भक्त हैं, जो तुम्हारे साथ हैं और तुम्हारी सेवा करते हैं। कुछ तुम्हारे आगे मर जाते हैं और कुछ तुम्हें पुकारते हैं। परमात्मा, एक मात्र तुम्हारा सेवक अत्यंत भारी भक्त है, जो वहां जाकर अशोक वन में उजारी हुई असोक वाटिका का नाश कर रहा है।"
इस चौपाई में हनुमान जी की सेवा भक्ति और उनके प्रति भक्तों की समर्पणा भाव व्यक्त हो रहा है, जो भगवान राम के प्रति उनकी अपनी पूर्ण समर्पणा को दर्शाता है।
Complete Sunderkand text in Hindi
चौपाई
खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे।।
सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना।।83
83इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में 

"हनुमान जी ने देखा कि लव और कुश बहुत सारे फलों को खा रहे हैं और फिर उनके साथ राक्षसों को मारने के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह देखकर रावण को भटों को बचाने के लिए नाना प्रकार से भटों को पठाया और हनुमान जी ने रावण को देखकर गर्जना की।"
इस चौपाई में हनुमान जी ने लव और कुश की शक्ति को देखकर उनकी तैयारी को समझते हुए रावण को भटों की सेना को बचाने के लिए भटों को पठाया है।
चौपाई
सब रजनीचर कपि संघारे। गए पुकारत कछु अधमारे।।
पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा।।84
84इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में

"हनुमान जी ने देखा कि सम्पूर्ण राक्षस सेना को वह अपनी महाशक्ति से नष्ट कर रहा है और वे राक्षस बहुत सारे अपमानित होकर पुनः पुकार रहे हैं। फिर हनुमान जी ने लव कुश को युद्ध के लिए तैयार होने का आदान-प्रदान किया, और उन्हें सुभट और अपार शक्तिमान होने के साथ-साथ योग्य योद्धा बनाने के लिए अनुरोध किया।"
इस चौपाई में हनुमान जी ने राक्षस सेना के हानि का वर्णन किया और फिर लव कुश को युद्ध के लिए प्रेरित किया है।
चौपाई
आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा।।
सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना।।85
85इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"हनुमान जी ने देखा कि मेघनाद नामक राक्षस स्वर्ग से आकर बाणों की वृष्टि कर रहा है, और उसके बाणों की गर्जना से सभी दिशाएं काँप रही हैं। सुनकर अपने पिता को बचाने के लिए उत्साहित हुआ, हनुमान जी ने मेघनाद को युद्ध के लिए तैयार होने का संकेत दिया।"
इस चौपाई में हनुमान जी ने मेघनाद की आगमन को देखा और उसकी शक्तियों का वर्णन किया है।
चौपाई
मारसि जनि सुत बांधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही।।
चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा।।86
86इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"हनुमान ने देखा कि रावण के पुत्र इंद्रजित ने अपनी बाणबण्धन कला से राक्षसों को बाँध लिया है, और इसका सीधा असर राक्षसों पर हो रहा है। इंद्रजित ने बड़ी अद्वितीय योजना और बलपूर्वक सभी बंधुओं का वध किया, जिससे हनुमान जी ने देखकर क्रोधित हो गए हैं।"
इस चौपाई में हनुमान जी ने राक्षसों के स्थानीय शक्तियों का अनुभव किया और उनके बीच में हो रहे युद्ध का स्वरूप दर्शाया है।
चौपाई
कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा।।
अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा।।87
87इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"हनुमान जी ने देखा कि राक्षसों का समूह अत्यंत भयंकर और आक्रमक है। वे आपस में जोरदार गर्जना कर रहे थे और उत्साह से रवा रहे थे। एक बहुत बड़ा तरुवृक्ष उपर ऊँचा था, और राक्षस कुमार उसमें बिराजमान थे, लेकिन वे सब कुछ व्यर्थ में बिराते जा रहे थे, क्योंकि हनुमान जी ने उनके बिना किए हुए अच्छूत और सकारात्मक कार्यों को देखा था।"
इस चौपाई में हनुमान जी ने राक्षसों के आक्रमणकारी स्वभाव को देखा और उनकी अस्थिरता और व्यर्थपन को दर्शाया है।
चौपाई
रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा।।
तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा।88
88इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"हनुमान जी ने महाभट रावण के साथ संगर्भ किया और उसके अंगों को बाँधकर उसे पीड़ित किया। वह तीनों बार महाभट को पीड़ित करने से उससे बहुत शोर हुआ, और फिर हनुमान जी ने उस घावित राक्षस के युगल (जोड़ी) को बहुत पीड़ाएँ देने का निमित्त किया।"
इस चौपाई में हनुमान जी ने राक्षस महाभट को प्रहार करके उसे पीड़ित किया है और उसके द्वारा किए गए प्रहार से घावित होने से महाभट ने शोर मचाया।
चौपाई
मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई।।
उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया।।89
89इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"हनुमान जी ने अपनी मुठी को मारकर एक बड़े वृक्ष पर चढ़कर जाना। वहां एक बहुमुखी विशेष शक्ति आई। हनुमान जी ने उस बहुमुखी शक्ति को प्राप्त करके बहु माया की रचना की। उन्होंने उसके सामर्थ्य को जीतने में नहीं जाने दिया, क्योंकि प्रभु के प्रति पूरी निष्ठा रखने के लिए यह उपहासनीय था।"
इस चौपाई में हनुमान जी ने विशेष शक्ति प्राप्त की है और उसका सही उपयोग करते हुए भगवान श्रीराम के सेवा में लगे रहने का उपहासनीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।
चौपाई
ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहि मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा।।
तेहि देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ।।90
90इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"ब्रह्मस्त्र से बचने के लिए कपि ने उसी ब्रह्मस्त्र को मारा। फिर उसने वही ब्रह्मस्त्र को बार-बार कटकर उस संघार में ले आया। जब कपि ने उसे ऐसे देखा, तो उसका मन मुड़छित हो गया और वह नागपाशों में बाँधकर उसे ले गया।"
इस चौपाई में हनुमान जी का ब्रह्मस्त्र के संघार में क्रियाशील रूप से समर्थन किया गया है। कपि ने ब्रह्मस्त्र को मारकर उसे संघार में ले आया और उसके बार-बार कटने से उसकी शक्ति को नष्ट किया। इसके बाद, हनुमान जी ने उस ब्रह्मस्त्र को नागपाशों में बाँधकर ले जाया।

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