शिवजी को मोहने में काम की हार

शिवजी को मोहने में काम की हार

इस कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने रति और कामदेव की सहायता से भगवान शिव को मोहने की कोशिश की थी, लेकिन यह कोशिश व्यार्थशील रही। भगवान शिव का ध्यान और तप काफी उच्च स्थिति में था, और उन्होंने इस मोहित करने की प्रयासों को अस्वीकार किया। कामदेव को उनके प्रयास में सफलता नहीं मिली

सूत जी बोले- हे ऋषियो! जब इस प्रकार प्रजापति ब्रह्माजी ने कहा, तब उनके वचनों को सुनकर नारद जी आनंदित होकर बोले- हे ब्रह्मन् ! मैं आपको बहुत धन्यवाद देता हूं कि आपने इस दिव्य कथा को मुझे सुनाया है। हे प्रभु! अब आप मुझे संध्या के विषय में और बताइए कि विवाह के बाद उन्होंने क्या किया? क्या उन्होंने दुबारा तप किया या नहीं? 
सूत जी बोले- इस प्रकार नारद जी ने ब्रह्माजी से पूछा। उन्होंने यह भी पूछा कि जब कामदेव रति के साथ विवाह करके वहां से चले गए और दक्ष आदि सभी मुनि वहां से चले गए, संध्या भी तपस्या के लिए वहां से चली गईं, तब वहां पर क्या हुआ 


ब्रह्माजी बोले- हे श्रेष्ठ नारद! तुम भगवान शिव के परम भक्त हो, तुम उनकी लीला को अच्छी प्रकार जानते हो। पूर्वकाल में जब मैं मोह में फंस गया तब भगवान शिव ने मेरा मजाक उड़ाया, तब मुझे बड़ा दुख हुआ । मैं भगवान शिव से ईर्ष्या करने लगा। मैं दक्ष मुनि के यहां गया। देवी रति और कामदेव भी वहीं थे। मैंने उन्हें बताया कि शिवजी ने किस प्रकार मेरा मजाक उड़ाया था। मैंने पुत्रों से कहा कि तुम ऐसा प्रयत्न करो जिससे महादेव शिव किसी कमनीय कांति वाली स्त्री से विवाह कर लें। मैंने प्रभु शिव को मोहित करने के लिए कामदेव और रति को तैयार किया। कामदेव ने मेरी आज्ञा को मान लिया। 
कामदेव बोले- हे ब्रह्माजी! मेरा अस्त्र तो सुंदर स्त्री ही है। अतः आप भगवान शिव के लिए किसी परम सुंदरी की सृष्टि कीजिए। यह सुनकर मैं चिंता में पड़ गया। मेरी तेज सांसों से पुष्पों से सजे बसंत का आरंभ हुआ। बसंत और मलयानल ने कामदेव की सहायता की। इनके साथ कामदेव ने शिवजी को मोहने की चेष्टा की, पर सफल नहीं हुए। मैंने मरुतगणों के साथ पुनः उन्हें शिवजी के पास भेजा। बहुत प्रयत्न करने पर भी वे सफल नहीं हो पाए । अतः मैंने बसंत आदि सहचरों सहित रति को साथ लेकर शिवजी को मोहित करने को कहा। फिर कामदेव प्रसन्नता से रति और अन्य सहायकों को साथ लेकर शिवजी के स्थान को चले गए।
इस कथा से यह सिखने को मिलता है कि ध्यान और तप की महत्वपूर्णता है और भगवान शिव की उच्च स्थिति और निष्कलंकता को व्यक्त करती है। ब्रह्मा जी ने अपने प्रयासों के बावजूद भी उन्हें मोहित नहीं कर पाए, जो इसे एक अध्यात्मिक सन्देश के रूप में बनाता है।
श्रीरुद्र संकेत-लिपि द्वितीय खंड आठवां अध्याय समाप्त

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