शिव चरणों में आनंदमय विषय का वर्णन देवताओं के लिए शिवलिंगों का निर्माण

शिव चरणों में आनंदमय विषय का वर्णन 

शिव चरणों में आनंदमय का वर्णन

नारद जी बोले ब्रह्माजी! आप धन्य हैं क्योंकि आपने अपनी बुद्धि को शिव चरणों में लगा रखा है। कृपा कर इस आनंदमय विषय का वर्णन सविस्तार पुनः कीजिए। 
ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! एक समय की बात है। मैंने सब ओर से देवताओं और ऋषियों को बुलाया और क्षीरसागर के तट पर भगवान विष्णु की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया। 
भगवान विष्णु प्रसन्न होकर बोले- हे ब्रह्माजी ! एवं अन्य देवगणो। आप यहां क्यों पधारे हैं? आपके मन में क्या इच्छा है? आप अपनी समस्या बताइए । मैं निश्चय ही उसे दूर करने का प्रयत्न करूंगा। यह सुनकर, 
ब्रह्माजी बोले- हे भगवन्! दुखों को दूर करने के लिए किस देवता की सेवा करनी चाहिए?
तब भगवान विष्णु ने उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा- हे ब्रह्मन् ! भगवान शिव शंकर ही सब दुखों को दूर करने वाले हैं। सुख की कामना करने वाले मनुष्य को उनकी भक्ति में सदैव लगे रहना चाहिए। उन्हीं में मन लगाए और उन्हीं का चिंतन करे। जो मनुष्य शिव भक्ति में लीन रहता है, जिसके मन में वे विराजमान हैं, वह मनुष्य कभी दुखी नहीं हो सकता। पूर्व जन्म में किए गए पुण्यों एवं शिवभक्ति से ही पुरुषों को सुंदर भवन, आभूषणों से विभूषित स्त्रियां, मन का संतोष, धन-संपदा, स्वस्थ शरीर, पुत्र-पौत्र, अलौकिक प्रतिष्ठा, स्वर्ग के सुख एवं मोक्ष प्राप्त होता है। जो स्त्री या पुरुष प्रतिदिन भक्तिपूर्वक शिवलिंग की पूजा करता है उसको हर जगह सफलता प्राप्त होती है। वह पापों के बंधन से छूट जाता है। ब्रह्माजी एवं अन्य गणों ने भगवान विष्णु के उपदेश को ध्यानपूर्वक सुना। भगवान विष्णु को प्रणाम कर, कामनाओं की पूर्ति हेतु उन्होंने शिवलिंग की प्रार्थना की।
 Description of the blissful theme at Shiva's feet
Construction of Shivalingas for the deities

देवताओं  के लिए शिवलिंगों का निर्माण

श्री विष्णु ने विश्वकर्मा को बुलाकर कहा- हे मुने! तुम मेरी आज्ञा से देवताओं के लिए शिवलिंगों का निर्माण करो।' तब विश्वकर्मा ने मेरी और श्रीहरि की आज्ञा को मानते हुए, देवताओं के लिए उनके अनुसार लिंगों का निर्माण कर उन्हें प्रदान किया।  मुनिश्रेष्ठ नारद! सभी देवताओं को प्राप्त शिवलिंगों के विषय में सुनो। सभी देवता अपने द्वारा प्राप्त लिंग की पूजा उपासना करते हैं। पद्मपराग मणि का लिंग इंद्र को, सोने का कुबेर को, पुखराज का धर्मराज को, श्याम वर्ण का वरुण को, इंद्रनीलमणि का विष्णु को और ब्रह्माजी हेमलय लिंग को प्राप्त कर उसका भक्तिपूर्वक पूजन करते हैं। इसी प्रकार विश्वदेव चांदी के लिंग की और वसुगण पीतल के बने लिंग की भक्ति करते हैं। पीतल का अश्विनी कुमारों को, स्फटिक का लक्ष्मी को, तांबे का आदित्यों को और मोती का लिंग चंद्रमा को प्रदान किया गया है। व्रज-लिंग ब्राह्मणों के लिए व मिट्टी का लिंग ब्राह्मणों की स्त्रियों के लिए हैं। मयासुर चंदन द्वारा बने लिंग का और नागों द्वारा मूंगे के बने शिवलिंग का आदरपूर्वक पूजन किया जाता है। देवी मक्खन के बने लिंग की अर्चना करती हैं। योगीजन भस्म-मय लिंग की, यक्षगण दधि से निर्मित लिंग की, छायादेवी आटे के लिंग और ब्रह्मपत्नी रत्नमय शिव लिंग की पूजा करती हैं। बाणासुर पार्थिव लिंग की पूजा करता है। भगवान विष्णु ने देवताओं को उनके हित के लिए शिवलिंग के साथ पूजन विधि भी बताई। देवताओं के वचनों को सुनकर मेरे हृदय में हर्ष की अनुभूति हुई । मैंने लोकों का कल्याण करने वाली शिव पूजा की उत्तम विधि बताई। यह शिव भक्ति समस्त अभीष्ट फलों को प्रदान करने वाली है। इस प्रकार लिंगों के विषय में बताकर ब्रह्माजी ने शिवलिंग व शिवभक्ति की महिमा का वर्णन किया। शिवपूजन भोग और मोक्ष प्रदान करता है। मनुष्य जन्म, उच्च कुल में प्राप्त करना अत्यंत दुर्लभ है। इसलिए मनुष्य रूप में जन्म लेकर मनुष्य को शिव भक्ति में लीन रहना चाहिए। शास्त्रों द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करते हुए, जाति के नियमों का पालन करते हुए कर्म करें। संपत्ति के अनुसार दान आदि दें। जप, तप, यज्ञ और ध्यान करें। ध्यान के द्वारा ही परमात्मा का साक्षात्कार होता है। भगवान शंकर अपने भक्तों के लिए सदा उपलब्ध रहते हैं। जब तक ज्ञान की प्राप्ति न हो, तब तक कर्मों से ही आराधना करें। इस संसार में जो-जो वस्तु सत असत रूप में दिखती है अथवा सुनाई देती है, वह परब्रह्म शिव रूप है। तत्त्वज्ञान न होने तक देव की मूर्ति का पूजन करें। अपनी जाति के लिए अपनाए गए कर्म का प्रयत्नपूर्वक पालन करें। आराध्य देव का पूजन श्रद्धापूर्वक करें क्योंकि पूजन और दान से ही हमारी सभी विघ्न व बाधाएं दूर होती हैं। जिस प्रकार मैले कपड़े पर रंग अच्छे से नहीं चढ़ता, परंतु साफ कपड़े पर अच्छी तरह से रंग चढ़ता है, उसी प्रकार देवताओं की पूजा-अर्चना से मनुष्य का शरीर पूर्णतया निर्मल हो जाता है। उस पर ज्ञान का रंग चढ़ता है और वह भेदभाव आदि बंधनों से छूट जाता है। बंधनों से छूटने पर उसके सभी दुख-दर्द समाप्त हो जाते हैं और मोह-माया से मुक्त मनुष्य शिवपद प्राप्त कर लेता है। मनुष्य जब तक गृहस्थ आश्रम में रहे, तब तक सभी देवताओं में श्रेष्ठ भगवान शंकर की मूर्ति का प्रेमपूर्वक पूजन करे। भगवान शंकर ही सभी देवों के मूल हैं। उनकी पूजा से बढ़कर कुछ भी नहीं है। जिस प्रकार वृक्ष की जड़ में पानी से सींचने पर जड़ एवं शाखाएं सभी तृप्त हो जाती हैं उसी प्रकार भगवान शिव की भक्ति है। अतः मनोवांछित फलों की प्राप्ति के लिए शिवजी की पूजा करनी चाहिए। अभीष्ट फलों की प्राप्ति तथा सिद्धि के लिए समस्त प्राणियों को सदैव लोक कल्याणकारी भगवान शिव का पूजन करना चाहिए।

श्रीरुद्र संहिता बारहवां अध्याय समाप्त

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