भगवान शिव और देवी सती का विवाह के पश्चात जीवन कैसा व्यतीत हुआ जानिए

 भगवान शिव और देवी सती का विवाह के पश्चात जीवन कैसा व्यतीत हुआ जानिए

देवी सती और भगवान शिव का एकांतिक रमण कैलाश पर्वत के शिखर पर बहुत ही आनंदमय और सुखद था। वे एक-दूसरे के साथ विशेष सम्बन्ध में रहते थे और उनका प्रेम एक अद्भुत आत्मा का मिलन था। इस समय, कैलाश पर्वत में एक शांति-पूर्ण वातावरण छाया हुआ था और देवी सती भगवान शिव के साथ अपने संसारिक बंधनों से मुक्त होकर आत्मा के साथ मेलजोल में रह रही थीं। इस समय, भगवान शिव ने अपनी अद्भुत लीलाएं और तात्कालिक घटनाएं दिखाना शुरू की। वे अपने भक्तों और गणों के साथ विचरण करते हुए नाट्य और संगीत का आनंद लेते थे। देवी सती भी उनके साथ इस दिव्य आनंद में भाग लेती थीं। इस प्रकार, उनका साथ आपसी प्रेम और आत्मा का संयोजन हर पल उन्हें आत्मा के अद्वितीयता का अहसास कराता था।

 भगवान शिव और देवी सती का विवाह

नारद जी ने पूछा- हे पितामह ब्रह्माजी! शिवजी के विवाह के पश्चात सभी पधारे देवी- देवताओं और ऋषि-मुनियों सहित श्रीहरि और आपको विदा करने के पश्चात क्या हुआ? हे प्रभु ! ससे आगे की कथा का वर्णन भी आप मुझसे करें। यह सुनकर ब्रह्माजी ने मुस्कुराते हुए कहा - हे महर्षि नारद! सभी उपस्थित देवताओं को विवाहोपरांत भगवान शिव और देवी सती ने प्रसन्नतापूर्वक विदा कर दिया। तत्पश्चात देवी सती ने सभी शिवगणों को भी कुछ समय के लिए कैलाश पर्वत से जाने की आज्ञा प्रदान की। सभी शिवगणों ने महादेव जी को प्रणाम कर उनकी स्तुति की। तत्पश्चात उन्होंने भगवान शंकर से वहां से जाने की आज्ञा मांगी। आज्ञा देते हुए महादेव जी ने कहा- जाएं लेकिन मेरे स्मरण करने पर आप सभी तुरंत मेरे समक्ष उपस्थित हो जाएं तब नंदी समेत सभी गण वहां भगवान शिव और देवी सती को अकेला छोड़कर कुछ समय के लिए कैलाश पर्वत से चले गए। अब कैलाश पर्वत पर भगवान शिव सती के साथ अकेले थे। देवी सती भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर बहुत खुश थीं। बहुत कठिन तप के उपरांत ही उन्हें भगवान शिव का सान्निध्य मिल पाया था। यह सोचकर वह बहुत रोमांचित थीं। उधर देवी सती के अनुपम सौंदर्य को देखकर शिवजी भी मोहित हो चुके थे। वे भी देवी सती का साथ पाकर अपने को धन्य समझ रहे थे। एकांत पाकर शिवजी अपनी पत्नी सती के साथ कैलाश पर्वत के शिखर पर रमण करने लगे।

कैलाश पर्वत पर इस अद्वितीय सम्बन्ध के बीच, भगवान शिव और देवी सती ने अपने भक्तों को भी आत्मा के महत्त्वपूर्ण तत्वों का उपदेश दिया। उन्होंने भक्तों को ध्यान और भक्ति के माध्यम से आत्मा के साथ एकाग्र होने का मार्ग प्रदान किया समय के साथ, भगवान शिव और देवी सती का यह आत्मिक संबंध और भक्तों के साथ उनका संवाद लोगों को भगवान की अद्वितीय नैतिकता और धार्मिकता का उपदेश देने का माध्यम बन गया। इस रूप में, कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और देवी सती का एकांतिक रमण और ध्यान साधकों के लिए आदर्श बन गया।
श्रीरुद्र संकेत-लिपि द्वितीय खंड इक्कीसवां अध्याय समाप्त

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