शिव पूजन की विधि तथा भगवान शिव की पूजा करते ही ये दुख समाप्त हो जाते है जानिए शिव पुराण
शिव पूजन की विधि
ऋषि बोले- हे सूत जी ! अब आप हम पर कृपा कर हमें ब्रह्माजी व नारद के संवादों के अनुसार शिव पूजन की विधि बताइए, जिससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र आदि चारों वर्णों को शिव पूजन किस प्रकार करना चाहिए? आपने व्यास जी के मुख से जो सुना हो, कृपया हमें भी बताइए। महर्षियों के ये वचन सुनकर सूत जी ने ऋषियों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहना आरंभ किया।
सूत जी बोले - हे मुनिश्वर ! जैसा आपने पूछा है, वह बड़े रहस्य की बात है। मैंने इसे जैसा सुना है, उसे मैं अपनी बुद्धि के अनुसार आपको सुना रहा हूं। पूर्वकाल में व्यास जी ने सनत्कुमार जी से यही प्रश्न किया था। फिर उपमन्यु जी ने भी इसे सुना था और इसे भगवान श्रीकृष्ण को सुनाया था। वही सब मैं अब ब्रह्मा-नारद संवाद के रूप में आपको बता रहा हूं।
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भगवान शिव की पूजा करते ही ये दुख समाप्त
ब्रह्माजी ने कहा भगवान शिव की भक्ति सुखमय, निर्मल एवं सनातन रूप है तथा समस्त मनोवांछित फलों को देने वाली है। यह दरिद्रता, रोग, दुख तथा शत्रु द्वारा दी गई पीड़ा का नाश करने वाली है। जब तक मनुष्य भगवान शिव का पूजन नहीं करता और उनकी शरण में नहीं जाता, तब तक ही उसे दरिद्रता, दुख, रोग और शत्रुजनित पीड़ा, ये चारों प्रकार के पाप दुखी करते हैं। भगवान शिव की पूजा करते ही ये दुख समाप्त हो जाते हैं और अक्षय सुखों की प्राप्ति होती है। वह सभी भोगों को प्राप्त कर अंत में मोक्ष प्राप्त करता है। शिवजी का पूजन करने वालों को धन, संतान और सुख की प्राप्ति होती है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों को सभी कामनाओं तथा प्रयोजनों की सिद्धि के लिए
विधि अनुसार पूजा-उपासना करनी चाहिए
ब्रह्ममुहूर्त में उठकर गुरु तथा शिव का स्मरण करके तीर्थों का चिंतन एवं भगवान विष्णु का ध्यान करें। फिर मेरा स्मरण-चिंतन करके स्तोत्र पाठ पूर्वक शंकरजी का विधिपूर्वक नाम लें। तत्पश्चात उठकर शौचक्रिया करने के लिए दक्षिण दिशा में जाएं तथा मल-मूत्र त्याग करें। ब्राह्मण गुदा की शुद्धि के लिए उसमें पांच बार शुद्ध मिट्टी का लेप करें और धोएं। क्षत्रिय चार बार, वैश्य तीन बार और शूद्र दो बार यही क्रम करें। तत्पश्चात बाएं हाथ में दस बार और दोनों हाथों में सात बार मिट्टी लगाकर धोएं। प्रत्येक पैर में तीन-तीन बार मिट्टी लगाएं। स्त्रियों को भी इसी प्रकार क्रम करते हुए शुद्ध मिट्टी से हाथ-पैर धोने चाहिए। ब्राह्मण को बारह अंगुल, क्षत्रिय को ग्यारह, वैश्य को दस और शूद्र को नौ अंगुल की दातुन करनी चाहिए। षष्ठी, अमावस्या, नवमी, व्रत के दिन, सूर्यास्त के समय, रविवार और श्राद्ध के दिन दातुन न करें। दातुन के पश्चात जलाशय में जाकर स्नान करें तथा विशेष देश-काल आने पर मंत्रोच्चारपूर्वक स्नान करें। फिर एकांत स्थान पर बैठकर विधिपूर्वक संध्या करें तथा इसके उपरांत विधि-विधान से शिवपूजन का कार्य आरंभ करें। तदुपरांत मन को सुस्थिर करके पूजा ग्रह में प्रवेश करें तथा आसन पर बैठें। सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन करें। उसके उपरांत शिवजी की स्थापना करें। तीन बार आचमन कर तीन प्राणायाम करते समय त्रिनेत्रधारी शिव का ध्यान करें। महादेव जी के पांच मुख, दस भुजाएं और जिनकी स्फटिक के समान उज्ज्वल कांति है। सब प्रकार के आभूषण उनके श्री अंगों को विभूषित करते हैं तथा वे बाघंबर बांधे हुए हैं। फिर प्रणव मंत्र अर्थात ओंकार से शिवजी की पूजा आरंभ करें। पाद्य, अर्घ्य और आचमन के लिए पात्रों को तैयार करें। नौ कलश स्थापित करें तथा उन्हें कुशाओं से ढककर रखें। कुशाओं से जल लेकर ही सबका प्रक्षालन करें। तत्पश्चात सभी कलशों में शीतल जल डालें। खस और चंदन को पाद्यपात्र में रखें। चमेली के फूल, शीतल चीनी, कपूर, बड़ की जड़ तथा तमाल का चूर्ण बना लें और आचमनीय के पात्र में डालें। इलायची और चंदन को तो सभी पात्रों में डालें। देवाधिदेव महादेव जी के सामने नंदीश्वर का पूजन करें। गंध, धूप तथा दीपों द्वारा भगवान शिव की आराधना आरंभ करें। 'सद्योजातं प्रपद्यामि' मंत्र से शिवजी का आवाहन करें। ॐ वामदेवाय नमः' मंत्र द्वारा भगवान महेश्वर को आसन पर स्थापित करें। फिर 'ईशानः सर्वविद्यानाम्' मंत्र से आराध्य देव का पूजन करें। पाद्य और आचमनीय अर्पित कर अर्घ्य दें। तत्पश्चात गंध और चंदन मिले हुए जल से भगवान शिव को विधिपूर्वक स्नान कराएं। तत्पश्चात पंचामृत से भगवान शिव को स्नान कराएं। पंचामृत के पांचों तत्वों-दूध, दही, शहद, गन्ने का रस तथा घी से नहलाकर महादेव जी के प्रणव मंत्र को बोलते हुए उनका अभिषेक करें। जलपात्रों में शुद्ध व शीतल जल लें। सर्वप्रथम महादेव जी के लिंग पर कुश, अपामार्ग, कपूर, चमेली, चंपा, कनेर, बेला, कमल और उत्पल पुष्पों एवं चंदन को चढ़ाकर पूजा करें। उन पर अनवरत जल गुलाब, सफेद की धारा गिरने की भी व्यवस्था करें। जल से भरे पात्रों से महेश्वर को नहलाएं। मंत्रों से भी पूजा करनी चाहिए। ऐसी पूजा समस्त अभीष्ट फलों को देने वाली है। पावमान मंत्र, रुद्र मंत्र, नीलरुद्र मंत्र, पुरुष सूक्त, श्री सूक्त, अथर्वशीर्ष मंत्र, शांति मंत्र, भारुण्ड मंत्र, स्थंतरसाम, मृत्युंजय मंत्र एवं पंचाक्षर मंत्रों से पूजन करें। शिवलिंग पर एक सहस्र या एक सौ जलधाराएं गिराने की व्यवस्था करें। स्फटिक के समान निर्मल, अविनाशी, सर्वलोकमय परमदेव, जो आरंभ और अंत से हीन तथा रोगियों के औषधि के समान हैं, जिन्हें शिव के नाम से पहचाना जाता है एवं जो शिवलिंग के रूप में विख्यात हैं, उन भगवान शिव के मस्तक पर धूप, दीप, नैवेद्य और तांबूल आदि मंत्रों द्वारा अर्पित करें। अर्घ्य देकर भगवान शिव के चरणों में फूल अर्पित करें। फिर महेश्वर को प्रणाम कर आत्मा से शिवजी की आराधना करें और प्रार्थना करते समय हाथ में फूल लें। भगवान शिव से क्षमायाचना करते हुए कहें - हे कल्याणकारी शिव! मैंने अनजाने में अथवा जानबूझकर जो जप-तप पूजा आदि सत्कर्म किए हों, आपकी कृपा से वे सफल हों। हर्षित मन से शिवजी को फूल अर्पित करें। स्वस्ति वाचन कर, अनेक आशीर्वाद ग्रहण करें। भगवान शिव से प्रार्थना करें कि 'प्रत्येक जन्म में मेरी शिव में भक्ति हो तथा शिव ही मेरे शरणदाता हों।' इस प्रकार परम भक्ति से उनका पूजन करें। फिर सपरिवार भगवान को नमस्कार करें। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा करता है, उसे सब सिद्धियां प्राप्त होती हैं। उसे मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। उसके सभी रोग, दुख, दर्द और कष्ट समाप्त हो जाते हैं। भगवान शिव की कृपा से उपासक का कल्याण होता है। भगवान शंकर की पूजा से मनुष्य में सद्गुणों की वृद्धि होती है। यह सब जानकर नारद अत्यंत प्रसन्न होते हुए अपने पिता ब्रह्माजी को धन्यवाद देते हुए बोले कि आपने मुझ पर कृपा कर मुझे शिव पूजन की अमृत विधि बताई है। शिव भक्ति समस्त भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली है।
श्रीरुद्र संहिता ग्यारहवां अध्याय समाप्त
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