सुन्दरकाण्ड का पाठ भावार्थ सहित चौपाई का भावार्थ
(चौपाई 111-120 अर्थ सहित)
श्री रामचरितमानस का पंचम सोपान सुन्दरकाण्ड है। इस सोपान में 01 श्लोक, 03 छन्द, 526 चौपाई, 60 दोहे हैं। मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करने की परंपरा है
चौपाई
आन दंड कछु करिअ गोसाँई। सबहीं कहा मंत्र भल भाई।।
सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर।। 111
111 इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"आन, दंड या भय कुछ भी करो, गोसाई (भगवान) के सामने सबसे अच्छा है। सभी बोले, 'मंत्र कहो, भला हो भाई।' सुनकर हनुमान बहुत हंसते हुए बोले, 'दसकंधर, मैंने अंग-भंग करके मंत्र पठाया है।'"
इस चौपाई से हमें यह सिखने को मिलता है कि सबसे उच्च और श्रेष्ठ भलाई का मार्ग हमेशा भगवान के सामने सीधा होता है। हनुमान ने अपने कार्य में श्रद्धा और निष्ठा बनाए रखते हुए उसका पालन किया और सभी ने मंत्रों की महत्ता को स्वीकार किया।
चौपाई
पूँछहीन बानर तहँ जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि।।
जिन्ह कै कीन्हसि बहुत बड़ाई। देखेउँ मैं तिन्ह कै प्रभुताई।।112
112 इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"बिना पूछे ही वहाँ जाएं, जहाँ श्रीराम निवास करते हैं, और तब अपने नाथ से मिलकर आएं। जो कुछ भी मैंने किया है, उसे मैंने उन्हें दिखाया है और उन्होंने मुझे अपनी श्रेष्ठता में स्थान दिया है।"
इस चौपाई से हमें यह सिखने को मिलता है कि श्रीराम के निवास स्थान में जाने के लिए हमें अपने नाथ से मिलना चाहिए और उन्हें अपने किए गए कार्यों की श्रेष्ठता को दिखाना चाहिए। भगवान को अपनी भक्ति और सेवा के माध्यम से मिलने का यही सही तरीका है।
Lesson of Sunderkand with meaning and meaning of Chaupai
चौपाई
बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना।।
जातुधान सुनि रावन बचना। लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना।।113
113इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"कपि ने रावण के बचनों को सुना और अपने मन में हंसी आई। उसने सहायक सुग्रीव का स्थान चलता हुआ मैंना। जब रावण ने जानकी से सुना और उसके बचनों को सुना, तो उसने मूर्खता से बनाई गई रचना में रुचि लेने लगी।"
इस चौपाई से हमें यह सिखने को मिलता है कि सही और उचित बचनों को सुनने पर अच्छा फल मिलता है, जबकि मूर्खता में पड़कर बनाई गई रचना में समर्थन देना उचित नहीं होता। यह भी दिखाता है कि बुद्धिमानता के साथ कार्य करना हमें सहायक हो सकता है।
चौपाई
रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला।।
कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी।।114
114 इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"नगर में घृत और तेल से भरे हुए एक-एक कुम्भ का बाहरी भाग रहा नहीं। कपि ने मस्ती में उन कुम्भों को खेला बनाया। पूर्ववासियों ने इस पूरी घटना को देखकर हैरानी और आश्चर्य रूप से कहा, और वे बहुत ज्यादा हँसी में डूबे हुए थे।"
इस चौपाई के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि विश्वास, कौतुक, और भक्ति के असली मायाजाल का पता लगाना महत्वपूर्ण है, जिससे अनुपेक्ष्य या अवांछनीय हास्य की गतिविधियां रूपांतरित हो सकती हैं।
चौपाई
बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी।।
पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघु रुप तुरंता।।115
115इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"जब हनुमानजी ने लंका में आग लगाई, तो उसकी तेज और प्राकृतिक आवेग ने सभी दिशाओं में लावण्य बिखेरा। वहां की प्रजा ने उनकी उपस्थिति को देखकर अत्यन्त आश्चर्यचकित होकर बोली, 'हनुमानजी ने फिर से लंका को देखी है और यह एक साधन के रूप में उसकी तीव्र और चुटकुलात्मक स्वभाव की प्राकृतिक प्रदृष्टि है।'"
इस चौपाई के माध्यम से हमें यह बताया जा रहा है कि हनुमानजी के वीर्य और आग लगाने की शक्ति ने लंका की प्रजा को बहुत आश्चर्यचकित किया, और उनकी महात्मा को सभी को प्रभावित करने में कामयाब हुई।
चौपाई
निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं। भई सभीत निसाचर नारीं।।
देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई।।116
116 इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"हनुमानजी ने लंका में प्रवेश करते हुए सुन्दर और कनक से शोभित वस्त्रों को धारण किया। सभी निसाचर नारियों ने उनकी बहादुरी को देखकर हैरान होकर आपकी ओर आत्म-समर्पण कर दिया। उनकी दैहिक शक्ति बहुत उच्च थी और वह मंदिर से मंदिर चढ़कर प्रभु की आराधना करने को ले जाते थे।"
इस चौपाई से हमें यह सिखने को मिलता है कि हनुमानजी ने अपनी महात्मा को प्रदर्शित करते हुए लंका में प्रवेश किया, और उनकी शक्ति ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। वह सभी नारियों को प्रेरित करने के लिए एक आदर्श बने।
चौपाई
जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला।।
तात मातु हा सुनिअ पुकारा। एहि अवसर को हमहि उबारा।।117
117 इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"जब हनुमान ने लंका को देखा, तो उसने उसे तेज, प्रचंड, और डरावना पाया। वहां लोग भयानक और कठिनाईयों में जी रहे थे। तब हनुमानजी ने वहां के लोगों की पीड़ा को सुनकर उनका सहानुभूति हुआ और उन्हें उबारने का निर्णय किया।"
इस चौपाई से हमें यह ज्ञात होता है कि हनुमानजी ने लंका की पीड़ा और कष्ट को देखकर उन प्रचंड रूपी संसारिक दुःखों का सामना करने की तैयारी की और उन्होंने अपनी महाकाय और भगवान राम के भक्ति भाव से इस जीवन को उबारने का निर्णय लिया।
चौपाई
हम जो कहा यह कपि नहिं होई। बानर रूप धरें सुर कोई।।
साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा।।118
118इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"यह कपि नहीं है, जो हमने कहा है, यह कोई साधु है जो सूर्य का रूप धारण करता है। साधुओं को अवग्या करने का फल ऐसा है कि जैसा कोई नगर में अनाथ व्यक्ति किसी के समान होता है।"
इस चौपाई से हमें यह सिखने को मिलता है कि एक साधु कभी भी अपने स्वार्थ के लिए नहीं आता, बल्कि उसका उद्देश्य समाज के लाभ के लिए होता है। यहां कपि का रूप दिखाने के बजाय साधुता का रूप धारण करने का सुझाव दिया जा रहा है, जिससे यह साबित होता है कि भगवान का भक्त समाज के हित में कैसे कार्य करता है।
चौपाई
जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं।।
ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा।।119
119इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"नगर को तबाह करने में एक निमिष लगता है, और एक बिभीषण का गृह स्थित नहीं है। ऐसे ही दूत अग्नि के समान जलते हैं। जो तुरंत नहीं बुझती, वह किसी कारण से गिरिजा (हिमालय पर्वत) को छूने का संकेत करती है।"
इस चौपाई से यह सिखने को मिलता है कि दूतों की शक्ति अगर अनियंत्रित होती है तो वह समाज के लिए हानिकारक हो सकती है। इसे नियंत्रित करने के लिए आदमी को विचारशील रहना चाहिए और अपने घर की सुरक्षा में सावधानी बरतनी चाहिए।
चौपाई
उलटि पलटि लंका सब जारी। कूदि परा पुनि सिंधु मझारी।।
मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा।।120
120इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"लंका पलट गई, सभी जगह से हरियाली बढ़ गई। हनुमान ने सिंधु नदी को पुनः जाकर लांछित किया। माता सीता, कृपया करके, मुझे कुछ संकेत दीजिए, जैसा कि रघुकुलनायक श्रीराम ने मुझे दिया है।"
इस चौपाई से यह सिखने को मिलता है कि हनुमान ने लंका को पूरी तरह अद्भुती रूप से बदल दिया और उसने सीता माता के प्रति अपनी श्रद्धाभक्ति और कृपाभावना को दिखाया। इससे हमें यह सिखने को मिलता है कि भगवान की भक्ति में समर्पण करने पर अद्भुत फल प्राप्त होता है और भक्त को भगवान की कृपा सदैव मिलती है।
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