राम लक्ष्मण जटायु के साथ पंचवटी के लिए प्रस्थान किया लक्ष्मण ने शूपर्णखा की नाक काट दिए खर और दूषण की मृत्यु
राम लक्ष्मण जटायु के साथ पंचवटी के लिए प्रस्थान किया
लक्ष्मण ने शूपर्णखा की नाक काट दिए राम के द्वारा खर और दूषण की मृत्यु वाल्मीकि रामायण द्वारा
राम लक्ष्मण जटायु के साथ पंचवटी Panchavati with Ram Laxman Jatayu
दस वर्ष बीत जाने के बाद लक्ष्मण और सीता के साथ राम सुतीक्ष्ण ऋषि के आश्रम में लौट आए। आतिथ्य सत्कार स्वीकारने के बाद राम ने उनसे महर्षि अगस्त्य के बारे में पूछा। उनके द्वारा बताए गए मार्ग के अनुसार वे महर्षि अगस्त्य के आश्रम पहुँचे। राम के आगमन की सूचना पाकर ऋषि बहुत हर्षित हुए और उनका यथोचित स्वागत किया। आतिथ्य स्वीकार करने के बाद राम ने उनसे ऐसे स्थान के बारे में जानना चाहा जहाँ वे आश्रम बनाकर सुखपूर्वक रह सकें। ऋषि ने कहा, 'यहाँ से दो योजन की दूरी पर गोदावरी के पास पंचवटी नाम से एक बहुत ही सुंदर स्थान है, वहीं जाकर आप लक्ष्मण के साथ आश्रम बनाइए और पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वहाँ सुखपूर्वक निवास कीजिए।' यह सुनकर वे ऋषि से आज्ञा लेकर वहाँ के लिए प्रस्थित हुए। पंचवटी जाते समय बीच में राम को एक विशालकाय गीध मिला जो भयंकर पराकम प्रकट करने वाला था। राम और लक्ष्मण द्वारा उसका परिचय पूछने पर उसने अपने को राजा दशरथ का मित्र जटायु बताया। उसने कहा कि यह दुर्गम वन राक्षसों से सेवित है। लक्ष्मण सहित वे यदि पर्णशाला से कभी बाहर जाएं तो इस अवसर पर वह देवी सीता की रक्षा करेगा। इसे सुन राम ने उनका बहुत सम्मान किया। जटायु के साथ उन्होंने पंचवटी के लिए प्रस्थान किया। वहाँ पहुँच कर लक्ष्मण ने उचित स्थान पर एक सुंदर-सी कुटिया का निर्माण किया। फिर शास्त्रीय विधि से पूजा-अर्चना करके और वास्तु शांति करके लक्ष्मण ने उस कुटिया को राम को दिखाया जिसे देख राम बहुत खुश हुए। तत्पश्चात् उन्होंने गोदावरी के तट पर स्नान करके जल से देवताओं और पितरों का तर्पण किया और वे सुखपूर्वक वहाँ रहने लगे।
लक्ष्मण ने शूपर्णखा की नाक काट दिए Description of Laxman Shuparnakha's nose
एक बार राम लक्ष्मण के साथ किसी बातचीत में व्यस्त थे, तभी दसमुख राक्षस की बहन शूपर्णखा नाम की एक राक्षसी वहाँ आ पहुँची जो राम को देखते ही काममोहित हो गई। उसने तपस्वी वेश धारण करने वाले, साथ में स्त्री और धनुष-बाण ग्रहण करने वाले राम से इस जंगल में आने का कारण पूछा। उन्होंने अत्यंत सहज भाव से अपने आने का कारण तथा लक्ष्मण और सीता के बारे में विस्तार से बता कर फिर उसके बारे में जानना चाहा। उसने भी अपने बारे में बताते हुए कहा कि वह इच्छानुसार रूप धारण करने वाली, अकेले ही वन में विचरण करने वाली शूपर्णखा नाम की एक राक्षसी है। विश्रवा मुनि के वीर पुत्र रावण, कुंभकर्ण और धर्मात्मा विभीषण उसके भाई हैं। खर और दूषण भी उसके ही भाई हैं। उसने कहा कि उसका मन उन पर आसक्त हो गया है, इसलिए वह उन जैसे पुरुषोत्तम के प्रति पति की भावना रखकर बड़े प्रेम से आई है। किंतु राम उसकी बात को सुनकर हँसने लगे। अपने आप को विवाहित बताकर उन्होंने उससे लक्ष्मण के पास जाने के लिए कहा। लक्ष्मण के पास जाने पर उसने उन्हें भी मनाने का प्रयास किया जिसमें वह सफल न हो सकी। वह फिर राम के पास गई, सीता को राम के साथ बैठी देख वह उनके प्रति दुर्वचनों का प्रयोग करने लगी और सीता को खाने के लिए उन पर जोर से झपटी जिस के कारण राम ने कुपित होकर लक्ष्मण से उसे अंगहीन करने के लिए कहा। देखते ही देखते लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट दिए।
राम के द्वारा खर और दूषण की मृत्यु Death of Khar and Dushan by Ram
खून से भीगी हुई वह महाभयंकर एवं विकराल रूपवाली निशाचरी नाना प्रकार से चीत्कार करने लगी और भागकर राक्षससमूह से घिरे हुए भयंकर तेजवाले जनस्थान निवासी भाई खर के पास जाकर पृथ्वी पर गिर पड़ी। अपनी बहन को इस अवस्था में देख खर को बहुत कोध आया और उसने इस सब का कारण पूछा। शूपर्णखा ने वन में सीता और लक्ष्मण के साथ राम के आने और अपने कुरूप किए जाने का सारा वृतांत कह सुनाया। उसने कहा कि वह उस स्त्री सहित उन दोनों राजकुमारों का खून पीना चाहती है।
शूपर्णखा की बात से कुद्ध हुए खर ने अपने चौदह राक्षसों को उनका मुकाबला करने के लिए भेजा जिन्हें राम ने जड़ से कटे वृक्षों की भांति धराशायी कर दिया। उनको मरा देख शूपर्णखा खर के पास पुनः आई और वह समाचार सुनाया। उसे सुनकर कुद्ध हुए खर ने अपने सेनापति दूषण से सेना तैयार करने और उन पर आकमण करने के लिए कहा। सेना के साथ प्रस्थान करते ही अमंगलसूचक अपशकुन होने लगे जिसकी खर ने परवाह न की। उसे आता देख राम ने सीता को लक्ष्मण के साथ किसी गुफा में सुरक्षित भेज दिया और स्वयं खर, दूषण और सेना के साथ लड़ने लगे। पहले सेना के साथ दूषण मारा गया, फिर त्रिशिरा आया, उसकी गति भी दूषण के समान ही हुई और अंत में राम का खर के साथ भीषण संग्राम हुआ। राम के द्वारा धनुष के खण्डित होने, रथ के टूटने और सारथि के मारे जाने पर खर हाथ में गदा लिए रथ से कूदकर धरती पर राम के सामने खड़ा हो गया। राम ने उसे बहुत फटकारा जिसे सुन वह तीव्र कोध में भर गया और उन पर भयंकर गदा चलाने लगा। राम ने अनेक बाण मारकर उस गदा के टुकड़े-टुकड़े कर डाले और अंत में राम ने इंद्र के द्वारा दिए गए तेजस्वी बाण से खर को धराशायी कर दिया। खर के मारे जाने के बाद लक्ष्मण भी सीता के साथ पर्वत की कंदरा से निकलकर प्रसन्नतापूर्वक आश्रम में आ गए।
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