ऋषि विश्वामित्र क्रोधित भगवान श्रीराम से कहा कि सूर्यास्त से पहले राजा को मृत्यु दंड नहीं दिया उन्हें श्राप दे देंगे

ऋषि विश्वामित्र क्रोधित भगवान श्रीराम से कहा कि सूर्यास्त से पहले राजा को मृत्यु दंड नहीं दिया उन्हें श्राप दे देंगे 

ऋषि विश्वामित्र क्रोधित 

हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथ के उत्तर रामायण के अनुसार जब अश्वमेघ यज्ञ पूरा हो गया तो श्रीराम ने एक बहुत बड़ी सभा का आयोजन किया। जिसमें उन्होंने सभी देवता, ऋषि, मुनि, किन्नरों, यक्षों और राजाओं आदि को उसमें आमंत्रित किया। कहा जाता है कि सभा में आए नारद मुनि के भड़काने पर सभा में प्रस्तुत एक राजा ने ऋषि विश्वामित्र को छोड़कर सबको प्रणाम किया। जिससे ऋषि विश्वामित्र क्रोधित हो उठे और उन्होंने भगवान श्रीराम से कहा कि अगर सूर्यास्त से पहले श्रीराम ने उस राजा को मृत्यु दंड नहीं दिया तो वो उन्हें श्राप दे देंगे।

श्रीराम ने सूर्यास्त से पूर्व मारने का प्रण ले लिया

इस पर श्रीराम ने उस राजा को सूर्यास्त से पूर्व मारने का प्रण ले लिया। श्रीराम के प्रण की ख़बर पाते ही राजा भागा-भागा हनुमान जी की माता अंजनी की शरण में गया तथा बिना पूरी बात बताए उनसे प्राण रक्षा का वचन मांग लिया। तब माता अंजनी ने हनुमान जी को राजन की प्राण रक्षा का आदेश दिया। हनुमान जी ने श्रीराम की शपथ लेकर कहा कि कोई भी राजन का बाल भी बांका नहीं कर पाएगा परंतु जब राजन ने बताया कि भगवान श्रीराम ने ही उसका वध करने का प्रण किया है तो हनुमान जी धर्म संकट में पड़ गए कि राजन के प्राण कैसे बचाएं और माता का दिया वचन कैसे पूरा करें तथा भगवान श्रीराम को श्राप से कैसे बचाएं। धर्म संकट में फंसे हनुमानजी को एक योजना सूझी। हनुमानजी ने राजन से सरयू नदी के तट पर जाकर राम नाम जपने के लिए कहा। हनुमान जी खुद सूक्ष्म रूप में राजन के पीछे छिप गए। जब राजन को खोजते हुए श्रीराम सरयू तट पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि राजन राम-राम जप रहा है।

ये तो भक्त है, मैं भक्त के प्राण कैसे ले लूं"। प्रभु श्रीराम ने सोचा, 

श्रीराम ने राज भवन लौटकर ऋषि विश्वामित्र से अपनी दुविधा कही। विश्वामित्र अपनी बात पर अड़िग रहे और जिस पर श्रीराम को फिर से राजन के प्राण लेने के लिए सरयू तट पर लौटना पड़ा। अब श्रीराम के समक्ष भी धर्मसंकट खड़ा हो गया कि कैसे वो राम नाम जप रहें, अपने ही भक्त का वध करें। राम सोच रहे थे कि हनुमानजी को उनके साथ होना चाहिए था परंतु हनुमानजी तो अपने ही आराध्य के विरुद्ध सूक्ष्म रूप से एक धर्म युद्ध का संचालन कर रहे थे। हनुमानजी को यह ज्ञात था कि राम नाम जपते हु‌ए राजन को कोई भी नहीं मार सकता, खुद मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी नहीं। श्रीराम ने सरयू तट से लौटकर राजन को मारने के लिए जब शक्ति बाण निकाला तब हनुमानजी के कहने पर राजन राम-राम जपने लगा। राम जानते थे राम-नाम जपने वाले पर शक्तिबाण असर नहीं करता। वो असहाय होकर राजभवन लौट गए। विश्वामित्र उन्हें लौटा देखकर श्राप देने को उतारू हो गए और राम को फिर सरयू तट पर जाना पड़ा।
इस बार राजा हनुमान जी के इशारे पर जय-जय सियाराम जय-जय हनुमान गा रहा था। प्रभु श्री राम ने सोचा कि मेरे नाम के साथ-साथ ये राजन शक्ति और भक्ति की जय बोल रहा है। ऐसे में कोई अस्त्र-शस्त्र इसे मार नहीं सकता। इस संकट को देखकर श्रीराम मूर्छित हो गए। तब ऋषि व‌शिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र को सलाह दी कि राम को इस तरह संकट में न डालें। उन्होंने कहा कि श्रीराम चाह कर भी राम नाम जपने वाले को नहीं मार सकते क्योंकि जो बल राम के नाम में है और खुद राम में नहीं है। संकट बढ़ता देखकर ऋषि विश्वामित्र ने राम को संभाला और अपने वचन से मुक्त कर दिया। मामला संभलते देखकर राजा के पीछे छिपे हनुमान वापस अपने रूप में आ गए और श्रीराम के चरणों मे आ गिरे।तब प्रभु श्रीराम ने कहा कि हनुमानजी ने इस प्रसंग से सिद्ध कर दिया है कि भक्ति की शक्ति सदैव आराध्य की ताकत बनती है तथा सच्चा भक्त सदैव भगवान से भी बड़ा रहता है। इस प्रकार हनुमानजी ने राम नाम के सहारे श्री राम को भी हरा दिया। धन्य है राम नाम और धन्य-धन्य है प्रभु श्री राम के भक्त हनुमान।

श्री राम मंत्र कैसे सिद्ध करें

यह भगवान राम के प्रति हमारी पूर्ण भक्ति को दर्शाता है। पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए मंत्रों का जाप लगातार 48 दिनों तक करना चाहिए। यदि ऐसा करना संभव नहीं है तो इस मंत्र का सोमवार के दिन जाप करना चाहिए। मंत्रों का जाप दिन में तीन बार 9, 27, 54, 108 या 1008 बार करना चाहिए।

रामायण में कौन सा मंत्र है

राम मंत्र (रामायण, बालकाण्ड) - ॐ श्री रामाय नमः (Om Shri Ramaya Namah) इस मंत्र का जाप राम भगवान की आराधना और उनकी कृपा को प्राप्त करने में सहायक है।

राम नाम मंत्र क्या है

एक लोकप्रिय मंत्र श्री राम जय राम जय जय राम (अक्सर "ओम" के साथ जोड़ा जाता है) है, जिसे समर्थ रामदास द्वारा पश्चिमी भारत में लोकप्रिय बनाया गया था। "रामनाम सत्य है" ( अनुवाद। राम का नाम सत्य है) एक हिंदी वाक्यांश है जिसे आमतौर पर हिंदू लोग किसी शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाते समय जपते हैं।

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