सुन्दरकाण्ड
चौपाई 61-70 अर्थ सहित
श्री रामचरितमानस का पंचम सोपान सुन्दरकाण्ड है। इस सोपान में 01 श्लोक, 03 छन्द, 526 चौपाई, 60 दोहे हैं। मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करने की परंपरा हैचौपाई
"हे रामदूत हनुमान, मैं जानकी माता की उपासिका हूँ और मैंने सत्य की शपथ खाकर तुम्हें भगवान राम का संदेश लाने के लिए बनाया है।
इस मुद्रिका (अंगूठी) के माध्यम से, मैं तुम्हारे पास आ रही हूँ, राम का सन्देश लेकर, तुम्हें बताने के लिए कि वह तुमसे दीनहीन राम की तथा सम्पूर्ण मन्दस्थिति की जानकारी चाहते हैं।"
यह चौपाई हनुमान जी की निष्ठा और सेवाभाव को प्रकट करती है, जिन्होंने अपने प्रभु राम के संदेश को लेकर सीता माता के पास पहुंचने का संकल्प किया।
"नार और वानर, इस प्रकार संग कहूँ, कि वे कैसे मिले थे और कैसे एक-दूसरे के साथ बैठे थे, उस रीति से मुझसे कहो।
हरिजन (भगवान राम) ने अपने भक्तों की प्रेम भावना को बहुत गहराई से जान लिया, और उनके नेत्र अब बहुत प्रसन्न हो गए थे, जिनमें पुलकों की भरमार हो रही थी।"
यह चौपाई राम भक्ति और भक्त-भगवान के अद्वितीय समर्पण की महत्वपूर्णता को प्रमोट करती है। इसमें भक्तों की आत्मीयता और भगवान के प्रति प्रेम का उदाहरण है।
राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की।।
यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी।।61
61इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी"हे रामदूत हनुमान, मैं जानकी माता की उपासिका हूँ और मैंने सत्य की शपथ खाकर तुम्हें भगवान राम का संदेश लाने के लिए बनाया है।
इस मुद्रिका (अंगूठी) के माध्यम से, मैं तुम्हारे पास आ रही हूँ, राम का सन्देश लेकर, तुम्हें बताने के लिए कि वह तुमसे दीनहीन राम की तथा सम्पूर्ण मन्दस्थिति की जानकारी चाहते हैं।"
यह चौपाई हनुमान जी की निष्ठा और सेवाभाव को प्रकट करती है, जिन्होंने अपने प्रभु राम के संदेश को लेकर सीता माता के पास पहुंचने का संकल्प किया।
Sunderkand
चौपाई
नर बानरहि संग कहु कैसें। कहि कथा भइ संगति जैसें।।
हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी।।62
62इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी"नार और वानर, इस प्रकार संग कहूँ, कि वे कैसे मिले थे और कैसे एक-दूसरे के साथ बैठे थे, उस रीति से मुझसे कहो।
हरिजन (भगवान राम) ने अपने भक्तों की प्रेम भावना को बहुत गहराई से जान लिया, और उनके नेत्र अब बहुत प्रसन्न हो गए थे, जिनमें पुलकों की भरमार हो रही थी।"
यह चौपाई राम भक्ति और भक्त-भगवान के अद्वितीय समर्पण की महत्वपूर्णता को प्रमोट करती है। इसमें भक्तों की आत्मीयता और भगवान के प्रति प्रेम का उदाहरण है।
चौपाई
"हनुमान जी ने कहा, 'तात, मैंने भगवान राम की सीता जी से मिलने के लिए समुद्र को पार किया, लेकिन मेरी बूढ़े होने के कारण यह संदेश तुम्हें नहीं पहुंचा।
अब मैं कहता हूँ कि हे तात, मैं सुरक्षित हूँ। बलिहारी करता हूँ तुझे। सुख और सुरक्षा के साथ मैं स्वर्ग की ओर जा रहा हूँ, तेरे साथ और मेरे अनुज सहित।'"
इस चौपाई में हनुमान जी अपने ताता, माता और राजा दशरथ को अपनी सीता जी से मिलन की खुशी का संदेश दे रहे हैं।
बूड़त बिरह जलधि हनुमाना। भयउ तात मों कहुँ जलजाना।।
अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी। अनुज सहित सुख भवन खरारी।।63
63इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी "हनुमान जी ने कहा, 'तात, मैंने भगवान राम की सीता जी से मिलने के लिए समुद्र को पार किया, लेकिन मेरी बूढ़े होने के कारण यह संदेश तुम्हें नहीं पहुंचा।
अब मैं कहता हूँ कि हे तात, मैं सुरक्षित हूँ। बलिहारी करता हूँ तुझे। सुख और सुरक्षा के साथ मैं स्वर्ग की ओर जा रहा हूँ, तेरे साथ और मेरे अनुज सहित।'"
इस चौपाई में हनुमान जी अपने ताता, माता और राजा दशरथ को अपनी सीता जी से मिलन की खुशी का संदेश दे रहे हैं।
चौपाई
"कृपाल रघुराज बहुत कोमल चित्त वाले हैं, जो सदैव कपियों के हित के लिए संसार में अपनी रूपरेखा को दृढ़ करते हैं।
रघुनायक (राम) ने अपने सेवकों को सदैव सुख प्रदान करने के लिए सरल भाषा में आदेश दिया है, और कभी-कभी उन्होंने सुरति (ध्यान) में भी रूचि दिखाई है।"
इस दोहे में भक्ति और सेवा के माध्यम से भगवान के प्रति प्रेम का महत्वपूर्ण संदेश है।
कोमलचित कृपाल रघुराई। कपि केहि हेतु धरी निठुराई।।
सहज बानि सेवक सुख दायक। कबहुँक सुरति करत रघुनायक।।64
64इस दोहे का भावार्थ (meaning) हिंदी में "कृपाल रघुराज बहुत कोमल चित्त वाले हैं, जो सदैव कपियों के हित के लिए संसार में अपनी रूपरेखा को दृढ़ करते हैं।
रघुनायक (राम) ने अपने सेवकों को सदैव सुख प्रदान करने के लिए सरल भाषा में आदेश दिया है, और कभी-कभी उन्होंने सुरति (ध्यान) में भी रूचि दिखाई है।"
इस दोहे में भक्ति और सेवा के माध्यम से भगवान के प्रति प्रेम का महत्वपूर्ण संदेश है।
चौपाई
"कभी-कभी मेरे नयन (आँखें) शीतलता से भरे होते हैं, जब मैं श्याम सुनती हूं और वह भगवान राम नयनों से मृदु गीत गा रहे होते हैं।
मेरे वचन कभी नहीं आते हैं, और मेरी आँखें बार-बार भगवान से मिलने की आशा में भरी रहती हैं। अहो, नाथ! मैं आपके बिना निपट जाती हूं और आपकी अनुपस्थिति में मैं सब भूल जाती हूं।"
इस चौपाई में सीता माता की राम से वियोग की भावना और उनकी वीरहा का वर्णन किया गया है।
कबहुँ नयन मम सीतल ताता। होइहहि निरखि स्याम मृदु गाता।।
बचनु न आव नयन भरे बारी। अहह नाथ हौं निपट बिसारी।।65
65इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी"कभी-कभी मेरे नयन (आँखें) शीतलता से भरे होते हैं, जब मैं श्याम सुनती हूं और वह भगवान राम नयनों से मृदु गीत गा रहे होते हैं।
मेरे वचन कभी नहीं आते हैं, और मेरी आँखें बार-बार भगवान से मिलने की आशा में भरी रहती हैं। अहो, नाथ! मैं आपके बिना निपट जाती हूं और आपकी अनुपस्थिति में मैं सब भूल जाती हूं।"
इस चौपाई में सीता माता की राम से वियोग की भावना और उनकी वीरहा का वर्णन किया गया है।
चौपाई
"सीता माता, जो परम विरह की भावना से अत्यंत दुखित हैं, ने कपिनंदन हनुमान से कहा, 'कपि, तू मुझसे विचार विमर्श करने के लिए बड़े ही सौम्य भाषण में बिनती करता है।
हे कपिनंदन, मेरी आपके साथ और प्रभु राम के साथ सभी बच्चों के साथ खुशियों की पूर्वस्थिति है। तुम्हारा दुख मेरे दुख का कारण है, और तुम्हारे साथ सुकृपा अपना निवास करने वाले हैं।'"
इस चौपाई में सीता माता का प्रभु राम से मिलन का आग्रह और हनुमान जी के वचनों का समर्थन किया गया है।
"जन्म से ही तुम्हें माता-पिता का प्रेम मिला है, पर तुम्हारा सर्वोत्तम प्रेम भगवान राम के प्रति है। मैं तुमसे कहती हूँ, हे सीता, राम जी के बिना तुम्हारा जीवन विनाश है। मेरा कहना है कि सारा संसार मेरे लिए विपरीत हो गया है।"
इस चौपाई में सीता माता अपने पति राम जी के प्रति अपने अद्वितीय प्रेम का व्यक्तिगत अभिव्यक्ति कर रही है।
देखि परम बिरहाकुल सीता। बोला कपि मृदु बचन बिनीता।।
मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दुख दुखी सुकृपा निकेता।।66
66इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी "सीता माता, जो परम विरह की भावना से अत्यंत दुखित हैं, ने कपिनंदन हनुमान से कहा, 'कपि, तू मुझसे विचार विमर्श करने के लिए बड़े ही सौम्य भाषण में बिनती करता है।
हे कपिनंदन, मेरी आपके साथ और प्रभु राम के साथ सभी बच्चों के साथ खुशियों की पूर्वस्थिति है। तुम्हारा दुख मेरे दुख का कारण है, और तुम्हारे साथ सुकृपा अपना निवास करने वाले हैं।'"
इस चौपाई में सीता माता का प्रभु राम से मिलन का आग्रह और हनुमान जी के वचनों का समर्थन किया गया है।
चौपाई
जनि जननी मानहु जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना।।
कहेउ राम बियोग तव सीता। मो कहुँ सकल भए बिपरीता।।67
67इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में "जन्म से ही तुम्हें माता-पिता का प्रेम मिला है, पर तुम्हारा सर्वोत्तम प्रेम भगवान राम के प्रति है। मैं तुमसे कहती हूँ, हे सीता, राम जी के बिना तुम्हारा जीवन विनाश है। मेरा कहना है कि सारा संसार मेरे लिए विपरीत हो गया है।"
इस चौपाई में सीता माता अपने पति राम जी के प्रति अपने अद्वितीय प्रेम का व्यक्तिगत अभिव्यक्ति कर रही है।
चौपाई
"मेरे मन में नए तरुओं के किसलय की भांति हृदय पल्लवित हो रहा है, जैसे कि काल-निर्मित निशि चंद्रमा जलता है। पुराने बाग़ों में बहते हुए बन में वृक्ष झूलते हैं, जैसे बर्फ के समय वृक्षों की शाखाएं हिलती हैं, और जैसे तेल का बर्तन गरम होने पर बूँदें बहती हैं।"
इस चौपाई में सूर्य देवता की कृपा, उसके चमकने का वर्णन, और प्राकृतिक दृश्यों के साथ उसकी तुलना की गई है।
नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू। कालनिसा सम निसि ससि भानू।।
कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा। बारिद तपत तेल जनु बरिसा।।68
68इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में "मेरे मन में नए तरुओं के किसलय की भांति हृदय पल्लवित हो रहा है, जैसे कि काल-निर्मित निशि चंद्रमा जलता है। पुराने बाग़ों में बहते हुए बन में वृक्ष झूलते हैं, जैसे बर्फ के समय वृक्षों की शाखाएं हिलती हैं, और जैसे तेल का बर्तन गरम होने पर बूँदें बहती हैं।"
इस चौपाई में सूर्य देवता की कृपा, उसके चमकने का वर्णन, और प्राकृतिक दृश्यों के साथ उसकी तुलना की गई है।
चौपाई
"जो भी कारण हो, उसके अनुसार ही दुख होता है, जैसे कि उराग (सर्प) स्वाँस लेने की तरह त्रिभुज रूप से होता है। अपने अनुभवों से मैं कुछ कहता हूं, लेकिन कहानी कहते समय यह नहीं कह सकता कि यह जानकर किसी को भी दुःख होगा या नहीं।"
इस चौपाई में जीवन के अनिश्चितता और अस्थायी स्वरूप को बताने का प्रयास किया गया है, और यह दिखाता है कि जीवन की उपायुक्तता का मूल्यांकन करना कितना कठिन हो सकता है।
जे हित रहे करत तेइ पीरा। उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा।।
कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई।।69
69इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में "जो भी कारण हो, उसके अनुसार ही दुख होता है, जैसे कि उराग (सर्प) स्वाँस लेने की तरह त्रिभुज रूप से होता है। अपने अनुभवों से मैं कुछ कहता हूं, लेकिन कहानी कहते समय यह नहीं कह सकता कि यह जानकर किसी को भी दुःख होगा या नहीं।"
इस चौपाई में जीवन के अनिश्चितता और अस्थायी स्वरूप को बताने का प्रयास किया गया है, और यह दिखाता है कि जीवन की उपायुक्तता का मूल्यांकन करना कितना कठिन हो सकता है।
चौपाई
"जो भी कारण हो, उसके अनुसार ही दुख होता है, जैसे कि उराग (सर्प) स्वाँस लेने की तरह त्रिभुज रूप से होता है। अपने अनुभवों से मैं कुछ कहता हूं, लेकिन कहानी कहते समय यह नहीं कह सकता कि यह जानकर किसी को भी दुःख होगा या नहीं।"
इस चौपाई में जीवन के अनिश्चितता और अस्थायी स्वरूप को बताने का प्रयास किया गया है, और यह दिखाता है कि जीवन की उपायुक्तता का मूल्यांकन करना कितना कठिन हो सकता है।
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा।।
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं। जानु प्रीति रसु एतेनहि माहीं।।70
70इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में "जो भी कारण हो, उसके अनुसार ही दुख होता है, जैसे कि उराग (सर्प) स्वाँस लेने की तरह त्रिभुज रूप से होता है। अपने अनुभवों से मैं कुछ कहता हूं, लेकिन कहानी कहते समय यह नहीं कह सकता कि यह जानकर किसी को भी दुःख होगा या नहीं।"
इस चौपाई में जीवन के अनिश्चितता और अस्थायी स्वरूप को बताने का प्रयास किया गया है, और यह दिखाता है कि जीवन की उपायुक्तता का मूल्यांकन करना कितना कठिन हो सकता है।
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