सुंदरकांड पाठ अर्थ सहित
चौपाई 101-110 अर्थ सहित
श्री रामचरितमानस का पंचम सोपान सुन्दरकाण्ड है। इस सोपान में 01 श्लोक, 03 छन्द, 526 चौपाई, 60 दोहे हैं। मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करने की परंपरा है- चौपाई
मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा।।
बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन।।101
- इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"हनुमान जी कहते हैं कि रावण, आपने मुझे कुछ भी नहीं बाँधा है और मैंने अपने प्रभु के कार्यों को किया है। मैंने अपनी प्रभु से आपको सिखाने के लिए बिनती की है और मैं आपकी इज्जत का पूरा ध्यान रखता हूं। कृपया मेरी बातें सुनिए और अपनी अभिमानित भावना को छोड़कर मेरी सिखावन को स्वीकार करें।"
इस चौपाई में हनुमान जी रावण से ब्रज कर रहे हैं और उन्हें अपने प्रभु श्रीराम के उपासक बनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
- चौपाई
देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी।।
जाकें डर अति काल डेराई। जो सुर असुर चराचर खाई।।102
- इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"हनुमान जी कहते हैं कि तुम अपने कुल को ध्यान से देखो और भ्रम को त्यागकर भगवान की भक्ति में लग जाओ। जिनका भय अत्यंत दुर्भग्यपूर्ण है, उनके प्रति डरो मत। सभी देवता, असुर, चराचर जगत में सबको श्रीराम की भक्ति करनी चाहिए।"
इस चौपाई में हनुमान जी भक्तों से अपने कुल और उनके भगवान में विश्वास करने की प्रेरणा कर रहे हैं। वे भक्तों से भगवान की भक्ति में लगने का सुझाव दे रहे हैं और भगवान के प्रति भय को छोड़ने की उपदेश दे रहे हैं।
Sunderkand text with meaning
- चौपाई
तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै। मोरे कहें जानकी दीजै।।
राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राज तुम्ह करहू।।103
- इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"हनुमान जी कहते हैं कि अब तुम्हें किसी से भी बयार नहीं करना चाहिए। मुझसे कहो 'जानकी' को प्राप्त करने का आशीर्वाद दें। राम चरणों में मन को लगाकर, तुम्हें लंका का अचल राजा बनाऊंगा।"
इस चौपाई में हनुमान जी भक्तों से सार्थक प्रेम और समर्पण की भावना के साथ भगवान राम की भक्ति को आगे बढ़ाने का सुझाव दे रहे हैं। वे भक्तों से किसी से भी द्वेष न करने और सच्चे प्रेम में रहने का समर्थन कर रहे हैं, साथ ही उन्हें राम चरणों में मन लगाकर अचल राजा बनने का आशीर्वाद देने का भी आश्वासन दे रहे हैं।
- चौपाई
रिषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका।।
राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।।104
- इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"राम भक्त हनुमान जी कहते हैं कि राजर्षि पुलस्त्य जी की पत्नी मंदोदरी तेही प्रकार की विमुक्ति प्राप्त करेंगी, जैसे सिता माता को राम नाम बिना नहीं मिलता है। इसलिए मोह और मद को छोड़कर राम नाम की ध्यान में लग जाओ।"
इस चौपाई में हनुमान जी भगवान राम के नाम के महत्व को बता रहे हैं और यह बता रहे हैं कि बिना राम नाम के, भक्ति के माध्यम से मुक्ति नहीं हो सकती। उन्होंने सीता माता के परित्याग को उदाहरण के रूप में देते हुए भक्तों से मोह और मद को छोड़कर राम नाम की ध्यान में लगने की सलाह दी है।
- चौपाई
बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषण भूषित बर नारी।।
राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई।।105
- इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"इस चौपाई में हनुमान जी बता रहे हैं कि एक सच्ची स्त्री, जो राम की भक्ति में लगी होती है, वह सभी श्रृंगार और अलंकारों से सुसज्जित होती है। वह बिना सुन्दर वस्त्र और भूषणों के सहारे भी बहुत सुंदर होती है। उनकी संपत्ति और प्रभुता उन्हें इस संसार से उबारने का उपाय होती है और वह बिना किसी संपत्ति और प्रभुता के भी राम की प्राप्ति में सफल होती हैं।"
इस चौपाई में हनुमान जी स्त्री के महत्व को बता रहे हैं और यह दिखा रहे हैं कि भक्ति और निष्ठा से भरपूर स्त्री किसी भी स्थिति में सुंदर होती है और वह भगवान की कृपा से सभी सुखों को प्राप्त कर सकती है।
- चौपाई
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गए पुनि तबहिं सुखाहीं।।
सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी।।106
- इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"इस चौपाई में हनुमान जी बता रहे हैं कि जिन लोगों के मन और हृदय में सच्चा भक्तिभाव होता है, वे सदैव सुखी रहते हैं, जैसे सरिता जल से भरी रहती है और वृष्टि होती है तो वह भी सुखिया जाता है। हनुमान जी कहते हैं कि जो व्यक्ति श्रीराम के प्रति उनमें विशेष भक्ति रखता है, वह कभी भी उससे क्रोध नहीं करता है और हमेशा भगवान के प्रति भक्ति में लिपटा रहता है।"
इस चौपाई में हनुमान जी भक्ति के महत्व को बता रहे हैं और यह दिखा रहे हैं कि जो व्यक्ति भगवान के प्रति निष्ठा रखता है, वह सदैव सुखी रहता है और कभी भी क्रोधित नहीं होता।
- चौपाई
संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही।।
जदपि कहि कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी।।107
- इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"इस चौपाई में हनुमान जी भक्ति के माध्यम से ब्रह्मा, विष्णु, और शिव की स्वरूपता को बता रहे हैं। हनुमान जी कहते हैं कि जो व्यक्ति भक्ति में विवेकपूर्ण और निर्भीक रहकर भगवान की आराधना करता है, वह भक्ति में बिरत रहकर द्रोह नहीं करता। भगवान के प्रति भक्ति में सच्चे और ईमानदार रहना अत्यंत महत्वपूर्ण है।"
इस चौपाई से स्पष्ट होता है कि भक्ति में बिबेक और निष्ठा रखने से ही व्यक्ति भगवान के प्रति सच्चे भावनाओं के साथ रह सकता है और धार्मिक आदर्शों का पालन कर सकता है।
- चौपाई
बोला बिहसि महा अभिमानी। मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी।।
मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही।।108
- इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"इस चौपाई में हनुमान जी कहते हैं कि गुरु, जो महा अभिमानी हो गए हैं और मुझसे मिले हैं, वह बड़े ज्ञानी हैं। उन्होंने मुझे मृत्यु के निकट आने वाले कठिनाईयों का सिखावा दिया है ताकि मैं उसका सामना कर सकूँ।"
इस चौपाई से हमें यह सिखने को मिलता है कि गुरु अगर अभिमानी हों भी, तो उनका सीखना हमारे लिए बहुत फलकारी हो सकता है। गुरु हमें उन कठिनाईयों से निपटने की शक्ति प्रदान कर सकते हैं और हमें ज्ञान और ब्रह्मज्ञान की दिशा में मार्गदर्शन कर सकते हैं।
- चौपाई
उलटा होइहि कह हनुमाना। मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना।।
सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना। बेगि न हरहुँ मूढ़ कर प्राना।।109
- इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"हनुमान जी कहते हैं कि 'जो मैंने कहा, वह उलटा हो गया है, मतिभ्रम से तुम प्रगट हो जाओ।' कपि के बचनों को सुनकर हनुमान जी बहुत खिसिआने हैं, क्योंकि उन्होंने प्राणों को बचाने के लिए यह बात कही थी, लेकिन यह उलटा हो गया है। उन्हें कहा जाता है कि वे बहुत बूझदार हैं और अपनी भूलों से सीख लेते हैं।"
इस चौपाई से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें अपनी भूलों से सीखना चाहिए और उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए। भगवान हनुमान जी की इस भूल का परिचय उन्हें और भी अधिक महात्मा बनाता है, क्योंकि उन्होंने इससे सीखना नहीं बंद किया और सुधारने का प्रयास किया।
- चौपाई
सुनत निसाचर मारन धाए। सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए।
नाइ सीस करि बिनय बहूता। नीति बिरोध न मारिअ दूता।।110
- इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"राक्षसों को मारने वाला, सचिव सहित बिभीषण आकर सीधे मेरे पास आए। बहुत विनम्रता के साथ सीस झुकाकर उन्होंने बहुत से बचन बोले। उन्होंने अपनी नीति को बिरोधित नहीं किया और दूतों को न छोड़ा।"
इस चौपाई से हमें यह सिखने को मिलता है कि विनम्रता और सत्य का पालन करना हमेशा सही होता है, चाहे स्थिति जैसी भी हो। बिभीषण ने अपनी नीति को पक्षपात रहित रखा और विनम्रता से बातचीत की, जिससे उसे भगवान राम की भक्ति में स्थान मिला।
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