कब और कैसे करें शिव तांडव स्तोत्र का पाठ रावण ने 17 श्लोकों से भगवान शिव की स्तुति गाई स्त्रोत पाठ के लाभ

कब और कैसे करें शिव तांडव स्तोत्र का पाठ

रावण ने 17 श्लोकों से भगवान शिव की स्तुति गाई  स्त्रोत पाठ के लाभ 

शिव तांडव स्तोत्र की रचना रावण ने की थी। इस स्तोत्र में रावण ने 17 श्लोकों से भगवान शिव की स्तुति गाई है।
एक बार जब रावण ने अहंकार वश कैलाश पर्वत को उठाने की कोशिश की, तो भगवान शिव ने अपना अंगूठा दबाकर पर्वत को स्थिर कर दिया था। जिससे रावण का हाथ पहाड़ के नीचे दब गया। तब वेदना में रावण ने भगवान शिव की स्तुति की। रावण द्वारा गाए गए इस भजन को शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किसी भी अन्य पाठ की तुलना में भगवान शिव को अधिक प्रिय है। इसका पाठ करने से भगवान शिव बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। यह स्त्रोत बहुत ही चमत्कारी माना जाता है।

कब और कैसे करें शिव तांडव स्तोत्र का पाठ

  • प्रातः काल या प्रदोष काल में इसका पाठ करना सर्वोत्तम होता है।
  • पहले शिव जी को प्रणाम करके उन्हें धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  • इसके बाद गाकर शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें।
  • अगर नृत्य के साथ इसका पाठ करें तो सर्वोत्तम होगा।
  • पाठ के बाद शिव जी का ध्यान करें और अपनी प्रार्थना करें।

शिव तांडव स्तोत्रम के लाभ

  1. शास्त्रों के अनुसार, सभी शिव की पूजा कर सकते हैं। कोई नियम नहीं है, किसी भी जाति या लिंग का कोई भी व्यक्ति कभी भी शिव तांडव स्तोत्रम का जाप कर सकता है।
  2. सिद्धि प्राप्ति के लिए शिव तांडव स्त्रोत एकमात्र योग्यता भक्ति है। शिव तांडव स्तोत्रम का पाठ करने के लाभ चमत्कारी हैं। यह आपको शक्ति, मानसिक शक्ति, सुख, समृद्धि और बहुत कुछ देता है।
  3. इन सभी से अधिक, आपको निश्चित रूप से शिव का आशीर्वाद प्राप्त होगा। यदि आप पूरी निष्ठा के साथ गीत को सुनते हैं, तो आप निश्चित रूप से शंभू की उपस्थिति को महसूस कर सकते हैं।
  4. शिव तांडव स्त्रोत सबसे ऊर्जावान और शक्तिशाली रचना है जिसे पूरी श्रृष्टि नमन करती है। शिव तांडव स्त्रोत का नियमित पाठ करने से स्वस्थ्य संबंधित रोग दूर होते हैं।
  5. शिव तांडव स्त्रोत का पाठ यदि रात्रि में किया जाए तो शत्रु पर प्राप्त होती है, लेकिन ध्यान रहे पाठ करने से पहले मन में किसी के प्रति बुरा विचार ना लाएं।
  6. शिव तांडव स्त्रोत को सुबह भजन के रूप में पाठ करने से आपको अपने पापों से मुक्ति मिलती है। शिव से अपनी गलतियों की क्षमा मांगते समय मन को कोमल रखें।
  7. शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने से जन्म कुण्डली में पितृ दोष और कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है। याद रहे किसी ब्राह्मण की देख रेख में ही यह किया जाना चाहिए।

शिव तांडव स्तोत्र हिंदी अर्थ के साथ 

जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥
हिंदी अर्थ:- 
जिन शिव जी की सघन, वनरूपी जटा से प्रवाहित हो गंगा जी की धाराएँ उनके कंठ को प्रक्षालित करती हैं, जिनके गले में बड़े एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।
जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥
हिंदी अर्थ:-
जिन शिव जी की जटाओं में अतिवेग से विलास पूर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरें उनके शीश पर लहरा रहीं हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अनुराग प्रतिक्षण बढ़ता रहे।
धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
हिंदी अर्थ:-
जो पर्वतराजसुता (पार्वती जी) के विलासमय रमणीय कटाक्षों में परम आनन्दित चित्त रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणीगण वास करते हैं, तथा जिनकी कृपादृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर (आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले) शिवजी की आराधना से मेरा चित्त सर्वदा आनन्दित रहे।
जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥
हिंदी अर्थ:- 
मैं उन शिवजी की भक्ति में आनन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों के आधार एवं रक्षक हैं, जिनकी जटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों का प्रकाश पीले वर्ण प्रभा-समूह रूप केसर के कान्ति से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गजचर्म से विभूषित हैं।
सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥
हिंदी अर्थ:- 
जिन शिव जी के चरण इन्द्र-विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों की धूल से रंजित हैं (जिन्हें देवतागण अपने सर के पुष्प अर्पण करते हैं), जिनकी जटाओं में लाल सर्प विराजमान है, वो चन्द्रशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

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