अरण्यकांड के दोहे अंतिम अर्थ सहित

अरण्यकांड के दोहे अंतिम अर्थ सहित couplets of aranyakand with final meaning

दोहा :  
राका रजनी भगति तव राम नाम सोइ सोम।
 अपर नाम उडगन बिमल बसहुँ भगत उर ब्योम॥42 क॥
इस दोहे में कहा गया है कि तेरे राम नाम की भक्ति रात्रि की चाँदनी की तरह शुद्ध है। और अन्य नामों का उड़ाने वाला परिशुद्ध नाम भक्तों के हृदय में वास करता है।
एवमस्तु मुनि सन कहेउ कृपासिंधु रघुनाथ।
तब नारद मन हरष अति प्रभु पद नायउ माथ॥42 ख॥
इस प्रकार, मुनि ने कृपासागर श्रीराम को ऐसे ही कहा। तब नारद ने बहुत आनन्दित होकर भगवान के पादों को अपने माथे पर स्थान दिया।
दोहा :  
काम क्रोध लोभादि मद प्रबल मोह कै धारि।
तिन्ह महँ अति दारुन दुखद मायारूपी नारि॥43॥
इस दोहे में कहा गया है कि काम, क्रोध, लोभ, मद, प्रबल मोह और उनकी धारणा मायामयी रूपी नारी के समान बहुत ही दुखद होते हैं।
दोहा :  
अवगुन मूल सूलप्रद प्रमदा सब दुख खानि।
ताते कीन्ह निवारन मुनि मैं यह जियँ जानि॥44॥
इस दोहे में कहा गया है कि अवगुण, मूल अशुभता, सूलप्रद, और प्रमाद सभी दुःख लाने वाले होते हैं। मुनिश्रेष्ठों ने उन्हें दूर करने का प्रयास किया है, इसलिए मैं इन्हें अपने जीवन के लिए जानता हूँ।
दोहा :  
गुनागार संसार दुख रहित बिगत संदेह।
तजि मम चरन सरोज प्रिय तिन्ह कहुँ देह न गेह॥45॥
इस दोहे में कहा गया है कि गुणों से रहित संसार दुःख से रहित है और इस बात में कोई संदेह नहीं है। मैं इसे बहुत प्रिय मानता हूँ, इसलिए मैं उनके चरणों को त्यागने का नहीं कहता।
दोहा :  
रावनारि जसु पावन गावहिं सुनहिं जे लोग।
राम भगति दृढ़ पावहिं बिनु बिराग जप जोग॥46 क॥
दीप सिखा सम जुबति तन मन जनि होसि पतंग।
भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसंग॥46 ख॥
इन दोहों में कहा गया है कि जो लोग रावण की प्रशंसा करते हैं, उन्हें सुनना चाहिए, लेकिन राम की भक्ति को स्थायी रूप से प्राप्त करने के लिए बिना विराग और जप और योग के बिना नहीं मिलती। जैसे मधुमक्खी दीप की शिक्षा से सीखती है और शरीर और मन को पतंग की तरह उड़ाना सीखती है, उसी तरह राम की भक्ति में रमना चाहिए और हमेशा काम और मद को छोड़कर सत्संग का आनंद लेना चाहिए।

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