अरण्यकाण्ड के दोहे सम्पूर्ण अर्थ सहित

अरण्यकाण्ड के दोहे सम्पूर्ण अर्थ सहित  Couplets of Aranyakaand with complete meaning

दोहा
अति कृपाल रघुनायक सदा दीन पर नेह।
ता सन आइ कीन्ह छलु मूरख अवगुन गेह॥1॥
इस दोहे का अर्थ है कि भगवान श्रीराम अत्यंत दयालु हैं और हमेशा दीनदयालु लोगों पर अपना प्रेम बरसाते हैं। इसलिए उनके चरणों में जो भी आता है, वह अपने अवगुणों और मूर्खता को छोड़कर भगवान की कृपा से उनके शरण में शरण लेता है।
दोहा :
बिनती करि मुनि नाइ सिरु कह कर जोरि बहोरि।
चरन सरोरुह नाथ जनि कबहुँ तजै मति मोरि॥4॥
इस दोहे में कहा गया है कि मैं भगवान के चरणों की भक्ति करता हूं और सिर झुकाकर भगवान से प्रार्थना करता हूं। मैं समझता हूं कि हे नाथ! कभी-कभी मेरा बुद्धि तुम्हारे चरणों को छोड़ देती है।
दोहा :
कलिमल समन दमन मन राम सुजस सुखमूल।
सादर सुनहिं जे तिन्ह पर राम रहहिं अनुकूल॥6 क॥
इस दोहे में कहा गया है कि जो लोग श्रीराम की कथाएं ध्यान करते हैं और उनकी महिमा को सुनते हैं, उनका मन कलिमलों को नष्ट करने में सक्षम होता है और वह सुख का मूल बन जाता है। ऐसे लोग जो श्रीराम की अनुग्रह में रहते हैं, उनके परिपालन में श्रीराम सदैव अनुकूल रहते हैं।
दोहा :
देखि राम मुख पंकज मुनिबर लोचन भृंग।
सादर पान करत अति धन्य जन्म सरभंग॥7॥
इस दोहे में कहा गया है कि जो मुनियों की तरह अपनी चेष्टा करते हुए श्रीराम के चेहरे को देखते हैं, उनके चेहरे की शोभा को देखकर वे बड़े धन्य होते हैं। ऐसे जन्म सभी भंगों से मुक्त हो जाते हैं।
दोहा :
सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम।
मम हियँ बसहु निरंतर सगुनरूप श्री राम॥8॥
इस दोहे में कहा गया है कि श्रीराम, जिनका शरीर नीले घने बादल की तरह है, सीता और उनके भाई लक्ष्मण के साथ हैं। मेरे हृदय में सदा उन सगुनरूप श्रीराम का वास हो।
दोहा :
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥
इस दोहे में कहा गया है कि जब सीता-राम ने निसाचरों का संहार किया, तब उन्होंने मेरे मन में भी वीरता और उत्साह का संचार किया। सभी मुनियों के आश्रम में जाकर वे सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं।
दोहा :
तब मुनि हृदयँ धीर धरि गहि पद बारहिं बार।
निज आश्रम प्रभु आनि करि पूजा बिबिध प्रकार॥10॥
इस दोहे में कहा गया है कि उस समय मुनियों ने अपने मन में स्थिरता धारण करके बार-बार श्रीराम के पादों को ग्रहण किया। वे अपने आश्रम में भगवान को लाकर विभिन्न प्रकार की पूजा करते हैं।
दोहा :
अनुज जानकी सहित प्रभु चाप बान धर राम।
मन हिय गगन इंदु इव बसहु सदा निहकाम॥11॥
इस दोहे में कहा गया है कि भगवान श्रीराम, सीता और उनके भाई लक्ष्मण के साथ धनुष और बाण लेकर हैं। मेरे मन में वे निरंतर निहित हैं, जैसे आसमान में चंद्रमा सदैव निहित रहता है।
दोहा :
मुनि समूह महँ बैठे सन्मुख सब की ओर।
सरद इंदु तन चितवन मानहुँ निकर चकोर॥12॥
इस दोहे में कहा गया है कि सभी मुनियों का समूह एकत्र बैठा हुआ है और वे सभी एक साथ उनकी ओर देख रहे हैं। वे भगवान को सर्वोत्तम चंद्रमा और अपनी चित्ती चकोर की भाँति मन में मानते हैं।
दोहा :
गीधराज सै भेंट भइ बहु बिधि प्रीति बढ़ाइ।
गोदावरी निकट प्रभु रहे परन गृह छाइ॥13॥
वहाँ गृध्रराज जटायु से भेंट हुई। उसके साथ बहुत प्रकार से प्रेम बढ़ाकर प्रभु श्री रामचंद्रजी गोदावरीजी के समीप पर्णकुटी छाकर रहने लगे॥13॥
दोहा :
ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ।
जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ॥14॥
इस दोहे में कहा गया है कि भगवान ईश्वर और जीवात्मा में भेद होता है, परन्तु सभी को समझाया जा सकता है कि सब कुछ भगवान के ही स्वरूप का हिस्सा है। जब व्यक्ति भगवान के पादों में रति हो जाता है, तो उसमें सभी दुःख, मोह और भ्रम दूर हो जाते हैं।
दोहा :
माया ईस न आपु कहुँ जान कहिअ सो जीव।
बंध मोच्छ प्रद सर्बपर माया प्रेरक सीव॥15॥
इस दोहे में कहा गया है कि माया (अज्ञान) को स्वयं आत्मा नहीं समझना चाहिए, जो जीव है। माया सभी बंधनों को और मोक्ष को प्रदान करने वाली है, और सबका परमात्मा को प्रेरित करने वाला सेवक है।
दोहा :
बचन कर्म मन मोरि गति भजनु करहिं निःकाम।
तिन्ह के हृदय कमल महुँ करउँ सदा बिश्राम॥16॥
इस दोहे में कहा गया है कि मेरे वचन, कर्म और मन को भगवान की भजना में लगाना चाहिए, और वह भजन निःकाम होना चाहिए। मैं उन लोगों के हृदय के कमल में हमेशा आराम करता हूँ, जो भगवान के प्रति भक्ति रखते हैं।

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