भावार्थरामायण अरण्यकाण्ड की चौपाई

भावार्थरामायण अरण्यकाण्ड की चौपाई Chaupai of Bhavarthramayana Aranyakaand

चौपाई :  
हा जग एक बीर रघुराया। केहिं अपराध बिसारेहु दाया॥
आरति हरन सरन सुखदायक। हा रघुकुल सरोज दिननायक॥1॥
इस चौपाई का अर्थ है:
"हे जगत के एकमात्र वीर रघुराया, आप किस प्रकार से अपराधों को भूला देते हैं और उपकार करते हैं। आपकी आराधना से ही हमें सुख प्राप्त होता है, हे रघुकुल के राजा, हे दिनकरों के समान सुन्दर और शुभकरणीय प्रभु।"
यह चौपाई भगवान श्रीराम की महिमा और उनके दयालु रूप की स्तुति करती है। इसमें भक्ति और श्रद्धा के साथ भगवान की महानता का वर्णन किया गया है।
हा लछिमन तुम्हार नहिं दोसा। सो फलु पायउँ कीन्हेउँ रोसा॥
बिबिध बिलाप करति बैदेही। भूरि कृपा प्रभु दूरि सनेही॥2॥
चौपाई का अर्थ है:
"हे लक्ष्मण, तुम्हारा कोई दोष नहीं है, तुमने सही फल पाने के लिए ऐसा किया। सीता माता ने विभिन्न प्रकार से विलाप किया, लेकिन प्रभु श्रीराम ने उन पर बहुत कृपा की और उनसे प्यार किया।"
यह चौपाई मानवीय धर्म, वफादारी, और प्रेम की महत्ता को दर्शाती है। लक्ष्मण ने नेक भावना और सेवाभाव से सीता माता के लिए अपने कर्तव्य का पालन किया, जिससे भगवान श्रीराम की कृपा और प्यार का परिचय होता है।
बिपति मोरि को प्रभुहि सुनावा। पुरोडास चह रासभ खावा॥
सीता कै बिलाप सुनि भारी। भए चराचर जीव दुखारी॥3॥
 चौपाई का अर्थ है:
"मेरी मुश्किलों को भगवान श्रीराम तक पहुंचा दो, मैंने पुरोडास की तरह बड़ा पीड़ा झेली है। सीता माता के विलाप को सुनकर सभी चराचर जीव दुःखित हो गए हैं।"
यह चौपाई सीता माता के विलाप और उनके व्यथापूर्ण दुख को व्यक्त करती है। उनकी विलापी ध्वनि ने सभी के हृदय को दुःखित किया, जो उनकी मानसिक स्थिति को देखकर प्रभावित हो गए।
गीधराज सुनि आरत बानी। रघुकुलतिलक नारि पहिचानी॥
अधम निसाचर लीन्हें जाई। जिमि मलेछ बस कपिला गाई॥4॥
 इस चौपाई का अर्थ है:
"रावण के बन में गरुड़ राज ने श्रीराम की आरती गाई, और स्त्री को उनकी पहचान हो गई। अधम नारदीय रूप में गरुड़ राज चले गए, जैसे कपिला गाई की वन में मलेछ वास होता है।"
यह चौपाई गरुड़ राज की समझदारी और चतुराई को दर्शाती है, जो उन्हें सीता माता की पहचान में मदद करती है। उन्होंने अपने बुद्धि का प्रयोग करके रावण के बन में जा कर सीताजी की स्थिति को समझा।
सीते पुत्रि करसि जनि त्रासा। करिहउँ जातुधान कर नासा॥
धावा क्रोधवंत खग कैसें। छूटइ पबि परबत कहुँ जैसें॥5॥
 इस चौपाई का अर्थ है:
"सीता जी के पुत्र होने से रावण को भय होता था, उसको नष्ट करने के लिए मैं जैसे जाते हैं वैसे ही रावण भी अपने क्रोधी स्वभाव से उत्तेजित होता था। वह खग की भाँति तेज़ी से दौड़ता था, जैसे पर्वत से पक्षी उड़ जाए।"
यह चौपाई रावण के चरित्र को वर्णित करती है, जिनमें उनका क्रोध और भयानक स्वभाव दिखाया गया है। इसमें उनकी दुर्बलता और क्रोध की शक्ति का वर्णन है।
रे रे दुष्ट ठाढ़ किन हो ही। निर्भय चलेसि न जानेहि मोही॥
आवत देखि कृतांत समाना। फिरि दसकंधर कर अनुमाना॥6॥
चौपाई का अर्थ है:
"अरे दुष्ट! तुम क्यों ऐसे ठहरे हो? तुम्हें नहीं पता है कि मैं निर्भीक होकर चलता हूँ। जब तुम दसकंधर को देखते हो, तो फिर उसका पूरा अनुमान क्यों नहीं करते?"
यह चौपाई महाकवि तुलसीदास जी के द्वारा लिखी गई है और इसमें एक उपदेश है कि दुष्ट लोग क्यों अपने कार्यों को सोच-समझकर नहीं करते। वे समझने के बजाय आवश्यकता से अधिक अनुमान करते हैं।
की मैनाक कि खगपति होई। मम बल जान सहित पति सोई॥
जाना जरठ जटायू एहा। मम कर तीरथ छाँड़िहि देहा॥7॥
चौपाई का अर्थ है:
"मैनाका की अग्नि के बन्धु की भाँति तुम्हें मेरा पति बनाने का अधिकार है, वह मेरे बल के साथ ही मेरा पति है। जारद और जटायु की तरह वह तीर्थ गया है, मेरे कारण अपनी जान गवा दी है।"
यह चौपाई देवी सीता की भावना को दर्शाती है, जो भगवान श्रीराम को अपने पति के रूप में मानती हैं और उनकी तुलना में जान देने वाले जटायु और जरठ की जातियों का उल्लेख करती हैं।
सुनत गीध क्रोधातुर धावा। कह सुनु रावन मोर सिखावा॥
तजि जानकिहि कुसल गृह जाहू। नाहिं त अस होइहि बहुबाहू॥8॥
 चौपाई का अर्थ है:
"रावण क्रोध के कारण सुनकर अशोक वान में दौड़ा, कहो रावण तुम मेरे लिए एक सीख बनो। तुम्हें सीता जी को छोड़कर वापस जाना चाहिए, क्योंकि वहाँ तुम्हारा कोई आश्रय नहीं होगा।"
यह चौपाई सुझाव देती है कि रावण को अपने क्रोध से बाहर निकलकर दूसरों की समझ और शिक्षा से सीख लेनी चाहिए। उसे सीता माता की हृदयवानी विनती को मानना चाहिए और उसे उन्हें वापस देना चाहिए, क्योंकि उसकी सुरक्षा उसके घर में नहीं होगी।
राम रोष पावक अति घोरा। होइहि सकल सलभ कुल तोरा॥
 उतरु न देत दसानन जोधा। तबहिं गीध धावा करि क्रोधा॥9॥
चौपाई का अर्थ है:
"राम का क्रोध प्राकृतिक आग के समान अत्यंत भयंकर होता है, जो तुम्हारे सम्पूर्ण कुल को नष्ट कर सकता है। रावण को जोधा राम ने नहीं छोड़ा, इसलिए रावण का क्रोध और उसकी बुद्धिमत्ता ने उसे गीध की तरफ दौड़ा दिया।"
यह चौपाई राम भगवान के क्रोध की भावना को दर्शाती है, जो भयंकर और अद्भुत होता है। रामचरितमानस में राम के क्रोध का वर्णन इस चौपाई में किया गया है, जो रावण की बुद्धिमत्ता को व्यक्त करता है।
धरि कच बिरथ कीन्ह महि गिरा। सीतहि राखि गीध पुनि फिरा॥
चोचन्ह मारि बिदारेसि देही। दंड एक भइ मुरुछा तेही॥10॥
 इस चौपाई का अर्थ है:
"राम ने गीध को बिना किसी उपयोग के पृथ्वी पर गिरा दिया, परन्तु उन्होंने सीता को बचाकर फिर से ले जाया। गीध के चेहरे पर चोट लगाकर उसने उसकी जान बचाई, और उसके सिर पर एक तड़का लगने से वह मूर्छित हो गया।"
यह चौपाई रामायण के किस्से में गीध (गरुड़) और रावण के बीच के संघर्ष का वर्णन करती है, जिसमें राम ने सीता को बचाकर उसे पुनः अपने शरण में लिया।
तब सक्रोध निसिचर खिसिआना। काढ़ेसि परम कराल कृपाना॥
काटेसि पंख परा खग धरनी। सुमिरि राम करि अदभुत करनी॥11॥
इस चौपाई का अर्थ है:
"इस प्रकार रावण को बहुत क्रोध आया, जिससे गरुड़ ने उस पर अत्यंत भयानक कृपा दिखाई। गरुड़ ने अपने पंख काट दिए और धरती पर पड़ा पर राम भगवान का स्मरण करते हुए अद्भुत कार्य किया।"
यह चौपाई गरुड़ और रावण के बीच के संघर्ष को वर्णित करती है, जिसमें गरुड़ ने राम भगवान की कृपा के लिए अपने पंख काट दिए और धरती पर पड़ गए।
सीतहि जान चढ़ाइ बहोरी। चला उताइल त्रास न थोरी॥
करति बिलाप जाति नभ सीता। ब्याध बिबस जनु मृगी सभीता॥12॥
चौपाई का अर्थ है:
"सीता ने जान को चढ़ाई का संकेत दिया, और वह उस त्रास को न कम करके चली गई। सीता ने आकाश की ओर करते हुए बहुत विलाप किया, जैसे मृगी अपने बच्चों के लिए विलाप करती है।"
यह चौपाई मानवीय दुःख और विलाप की भावना को दर्शाती है। सीता माता ने राम की खोज में बहुत कष्ट सहा और विलाप किया, जिससे उनका दुख और व्यथा दर्शाया जा रहा है।
गिरि पर बैठे कपिन्ह निहारी। कहि हरि नाम दीन्ह पट डारी॥
एहि बिधि सीतहि सो लै गयऊ। बन असोक महँ राखत भयऊ॥13॥
इस चौपाई का अर्थ है:
"श्रीराम ने बागीचे में बैठे हुए वानरों को देखा, और उन्हें हरि का नाम दे कर विशेष प्रकार से प्रोत्साहित किया। इसी प्रकार सीता माता ने उस तरह से वानरों को ले जाया, जिस प्रकार अशोक वाटिका में आश्रय लिया गया था।"
यह चौपाई सीता माता और वानर सेना के बीच की मैत्री और साथी भावना को दर्शाती है। श्रीराम ने वानरों को उत्साहित किया और सीता माता ने उन्हें सहायता दी जिससे उन्होंने अशोक वाटिका में वानरों का साथ दिया।
चौपाई :  
रघुपति अनुजहि आवत देखी। बाहिज चिंता कीन्हि बिसेषी॥
जनकसुता परिहरिहु अकेली। आयहु तात बचन मम पेली॥1॥
इस चौपाई का अर्थ है:
"राघव (श्रीराम) अपने भाई लक्ष्मण के साथ जानकी माता को ढूंढते हुए आए, लेकिन वे बाहरी चिंता करते रहे। 'जनक की पुत्री' सीता माता को अकेले छोड़ दिया, और यह तात्पर्य है कि मेरे अनुसार उनके वचन को पालन करो।"
यह चौपाई श्रीराम के भाई लक्ष्मण के साथ जानकी माता की खोज में उनके भय और चिंता को दर्शाती है। श्रीराम ने अपनी वाणी में सीता माता के अत्यधिक सम्मान की बात की है और उनसे संबंधित उनके वचनों का पालन की अपील की है।
निसिचर निकर फिरहिं बन माहीं। मम मन सीता आश्रम नाहीं॥
गहि पद कमल अनुज कर जोरी। कहेउ नाथ कछु मोहि न खोरी॥2॥
 इस चौपाई का अर्थ है:
"निसाचर राक्षस बाहर फिर रहे हैं, मेरे मन में सीता माता का आश्रम नहीं है। मैंने अपने पाद कमलों को अपने भाई लक्ष्मण के बल से पकड़ा, और मैंने अपने नाथ (राम) से कुछ मांगा है, इसलिए मुझे कोई भी भय नहीं है।"
यह चौपाई रामायण के किस्से में हनुमान जी की भावना को दर्शाती है, जब वे लंका में सीता माता की खोज कर रहे थे और उनके मन में एक स्थिर आश्रय नहीं था। वे राम भगवान से निर्भीकता से बात कर रहे थे कि उन्होंने सिर्फ भगवान के सेवा के लिए कुछ मांगा था, इसलिए उन्हें किसी भी डर की आवश्यकता नहीं थी।
अनुज समेत गए प्रभु तहवाँ। गोदावरि तट आश्रम जहवाँ॥
 आश्रम देखि जानकी हीना। भए बिकल जस प्राकृत दीना॥3॥
इस चौपाई का अर्थ है:
"भगवान श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ वहाँ जाकर गोदावरी नदी के तट पर स्थित आश्रम को देखा। आश्रम में जानकी माता की अनुपस्थिति को देखकर वे बहुत व्याकुल हो गए, जैसे कोई साधारण व्यक्ति दुखी हो जाता है।"
यह चौपाई रामायण के किस्से में भगवान राम के भाई लक्ष्मण की भावना को दर्शाती है, जब वे गोदावरी नदी के तट पर स्थित आश्रम पहुंचे और वहां जानकी माता की अनुपस्थिति को देखकर उनका दुःख और व्याकुलता।
हा गुन खानि जानकी सीता। रूप सील ब्रत नेम पुनीता॥
लछिमन समुझाए बहु भाँति। पूछत चले लता तरु पाँती॥4॥
इस चौपाई का अर्थ है:
"हे लक्ष्मण! सीता माता गुणों का खाना है, वे रूप, चरित्र, व्रत, और नाम में पवित्रता से भरी हुई हैं। लक्ष्मण ने उन्हें बहुत तरीकों से समझाया, और जब वे जंगल की लता और पेड़ों से पूछते चले गए।"
यह चौपाई श्रीराम और सीता माता के गुणों की महिमा को बयान करती है, जो उनके रूप, संस्कार, व्रत, और नाम में प्रशंसा करती है। इसमें लक्ष्मण ने सीता माता को उनकी श्रेष्ठता के बारे में समझाया।
हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता मृगनैनी॥
खंजन सुक कपोत मृग मीना। मधुप निकर कोकिला प्रबीना॥5॥
इस चौपाई का अर्थ है:
"हे पंछी और हे मृगों की संगति वाले जन्तुओं की श्रेणी! तुम्हें देखते हुए सीता जी ने मृगवती आँखों से तुम्हें देखा। शुक, कपोत, मृग, मीन, मधुप, निकर, कोकिला, और परागिनी कोकिला, ये सभी पक्षी मधुर स्वर से जाने जाते हैं।"
यह चौपाई सीता माता के मृगनयन (वन में घूमते समय जानवरों को देखना) के बारे में है, जिसमें वे वन्य जीवों की श्रेणी को देखकर उनकी सुंदरता का आनंद लेती हैं। चौपाई में अनेक प्रकार के पक्षियों की स्तुति की गई है, जो सुरीले स्वर में गाते हैं।
कुंद कली दाड़िम दामिनी। कमल सरद ससि अहिभामिनी॥
 बरुन पास मनोज धनु हंसा। गज केहरि निज सुनत प्रसंसा॥6॥
इस चौपाई का अर्थ है:
"यहाँ पर भवरे को कुंद की कलियों से ढँका देखते हैं, जो कि कमल के समुद्र में डूबे हुए हैं। उनके पास बाण चलाने वाले वायुपुत्र हनुमान और अपने सुनने की प्रशंसा में अपनी ही स्तुति कर रहे हैं।"
इस चौपाई में रामायण के कुछ पात्रों का वर्णन किया गया है, जैसे कि भवरे जो कुंद की कलियों में ढके हुए हैं, और हनुमान जी जो बाण चलाने के लिए तैयार हैं।

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