दशरथ के दुःख

दशरथ के दुःख Dasaratha's sorrows

एहि बिधि दुखित प्रजेसकुमारी। अकथनीय दारुन दुखु भारी॥
बीतें संबत सहस सतासी। तजी समाधि संभु अबिनासी॥372

यह दोहे भगवान तुलसीदास जी के हैं। इसका अर्थ निम्नलिखित है:
एहि - इस प्रकार
बिधि - तरीका
दुखित - दुखी
प्रजेसकुमारी - प्रजा की राजकुमारी
अकथनीय - अकथनीय (अनाकथनीय)
दारुन - भयानक
दुखु - दुःख
भारी - भार
बीतें - बीतते रहते हैं
संबत - संवत्सर
सहस - हजार
सतासी - सत्तासी (सात सौ आठावन)
तजी - त्याग देते हैं
समाधि - समाधान
संभु - भगवान शिव
अबिनासी - अविनाशी
इस दोहे में कहा गया है कि जनता की राजकुमारी इस प्रकार के दुखों से पीड़ित हो रही है, जो अनाकथनीय और भयानक हैं। हजारों संवत्सर बीत जाते हैं, लेकिन वे समाधान और अविनाशी भगवान शिव को छोड़ देती हैं।

राम नाम सिव सुमिरन लागे। जानेउ सतीं जगतपति जागे॥
जाइ संभु पद बंदनु कीन्हा। सनमुख संकर आसनु दीन्हा॥373

यह दोहे विश्वकवि तुलसीदास जी के रामचरितमानस से हैं। इसमें दशरथ के पत्नी कैकेयी के प्रति राजा दशरथ का दुःख और उनके द्वारा लिये गए फैसले का वर्णन किया गया है। दशरथ ने कैकेयी की मांग पर राम को वनवास भेजने का फैसला किया था, जिससे उन्होंने अपने प्रिय पुत्र को खो दिया था। यह दोहे इस प्रसंग को संक्षेप में दर्शाते हैं और दशरथ की दुःखभरी स्थिति को व्यक्त करते हैं।
यह दोहे तुलसीदास जी के हैं। इसका अर्थ निम्नलिखित है:
राम नाम सिव - राम नाम का सिवाय
सुमिरन - स्मरण
लागे - लगा है
जानेउ - जानते हैं
सतीं - सती (सीता माता)
जगतपति - जगत के पति (भगवान)
जागे - जागरूक होते हैं
जाइ - जाते हुए
संभु - भगवान शिव
पद - पास
बंदनु - बंदन किया
कीन्हा - किया
सनमुख - सामने
संकर - शिव
आसनु - आसन (स्थान)
दीन्हा - दिया
इस दोहे में कहा गया है कि जब सभी ध्यान राम नाम के सिवाय होता है, तो सती माता जानती हैं कि जगत के पति, भगवान शिव, जागरूक होते हैं। वे शिव जी के पास जाकर उनका बंदन किया और सामने स्थान दिया।

लगे कहन हरिकथा रसाला। दच्छ प्रजेस भए तेहि काला॥
देखा बिधि बिचारि सब लायक। दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक॥

यह दोहे भगवान तुलसीदास जी के हैं। इसका अर्थ निम्नलिखित है:
लगे - लगा है
कहन - कहानी
हरिकथा - भगवान की कथा
रसाला - रसीला
दच्छ - दक्ष
प्रजेस - प्रजा
भए - हो गई
तेहि - उसी
काला - काला (अंधकार)
देखा - देखकर
बिधि - भगवान
बिचारि - सोचकर
सब - सभी
लायक - योग्य
दच्छहि - दक्ष राजा
कीन्ह - किया
प्रजापति - प्रजापति
नायक - नेता
इस दोहे में कहा गया है कि जब हरिकथा रसाली हो जाती है, तो दक्ष राजा की प्रजा भी उसी काले अंधकार में चली जाती है। जब भगवान ने सभी को देखा और सोचा, तो वे दक्ष राजा को प्रजापति नेता बनाया।

बड़ अधिकार दच्छ जब पावा। अति अभिमानु हृदयँ तब आवा॥
नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं॥375

यह दोहे भगवान तुलसीदास जी के हैं। इसका अर्थ निम्नलिखित है:
बड़ - बड़ी
अधिकार - शक्ति
दच्छ - दक्ष
जब - जब
पावा - प्राप्त किया
अति - बहुत
अभिमानु - अहंकारी
हृदयँ - हृदय
तब - तब
आवा - आता है
नहिं - नहीं
कोउ - कोई
अस - ऐसा
जनमा - जन्म
जग - दुनिया
माहीं - में
प्रभुता - शासन
पाइ - प्राप्त होती है
जाहि - जहां
मद - अहंकार
नाहीं - नहीं
इस दोहे में कहा गया है कि जब दक्ष राजा ने बड़ी शक्तियों को प्राप्त किया, तब उनके हृदय में बहुत अभिमान आया। दुनिया में जिस जगह पर शासन होता है, वहां अहंकार नहीं होता।

दच्छ लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड़ जाग। 
नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग॥376

यह श्लोक तुलसीदास जी के "रामचरितमानस" से है और इसका अर्थ है:
दच्छ ऋषि ने मुनियों से कहा, सब लोग जाग जाएं और महत्त्वपूर्ण कार्यों का आरंभ करें।
सभी देवताओं ने सम्मानपूर्वक सिर झुकाए और विशेष भाग्यशाली होते हैं जो महादेव (भगवान शिव) की पूजा करते हैं।
यह श्लोक भक्ति, साधना, और समर्पण के माध्यम से ईश्वर की पूजा और सेवा की महत्ता को बताता है, और विभिन्न धार्मिक कार्यों के प्रति समर्पण की प्रेरणा देता है।

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