गणेशजी का शिरोच्छेदन ,पार्वती का क्रोध एवं गणेश को जीवनदान Decapitation of Ganesha, anger of Parvati and giving life to Ganesha

गणेशजी का शिरोच्छेदन ,पार्वती का क्रोध एवं गणेश को जीवनदान

 गणेशजी का शिरोच्छेदन

ब्रह्माजी बोले- हे मुनिश्रेष्ठ नारद! इस प्रकार जब सभी शिवगण, देवता और भूत-प्रेत उस बालक द्वारा परास्त हो गए तो स्वयं भगवान शिव उस बालक को दंड देने के लिए चल दिए। वहां गणेश ने अपनी माता के चरणों का स्मरण करके भगवान शिव से युद्ध करना आरंभ किया। एक छोटे से बालक को इस प्रकार निर्भयतापूर्वक युद्ध करते देखकर भगवान शिव आश्चर्यचकित रह गए। इतना वीर, पराक्रमी और साहसी बालक देखकर शिवजी को एक पल अच्छा लगा, परंतु तभी अगले पल उन्हें उस बालक की धृष्टता का स्मरण हो आया। उस बालक ने उनके प्रिय भक्तों और गणों सहित देवराज इंद्र व मुझे भी प्रताड़ित किया था। भगवान शिव क्रोध के वशीभूत होकर गणेश से युद्ध करने लगे । उन्होंने अपने हाथ में धनुष उठा लिया। भगवान शिव को इस प्रकार अपने निकट आते देखकर गणेश ने अपनी माता पार्वती का स्मरण करके भगवान शिव पर अपनी शक्ति से प्रहार कर दिया। गणेश के प्रहार से शिवजी के हाथ का धनुष टूटकर गिर गया। तब उन्होंने पिनाक उठा लिया परंतु गणेश ने उसे भी गिरा दिया। यह देखकर शिवजी का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने त्रिशूल उठा लिया। अब तो गणेश और त्रिलोकीनाथ भगवान शिव के बीच अत्यंत भयानक युद्ध छिड़ गया। भगवान शिव तो सर्वेश्वर हैं। सब देवताओं में श्रेष्ठ और लीलाधारी हैं। उनकी माया को समझ पाना हर किसी के वश की बात नहीं है। वे महान वीर और पराक्रमी हैं। उनकी शक्ति को ललकारना स्वयं अपनी मृत्यु को बुलावा देने जैसा है परंतु गणेश भी यह न समझ सके । अपनी माता का आशीर्वाद पाकर गणेश ने अपने को अजेय जानकर पूरे पराक्रम से युद्ध किया। दोनों में भीषण युद्ध चलता रहा। सभी देवताओं और शिवगणों के साथ मैं भी उनका वह युद्ध विस्मित होकर देखता रहा। जब गणेश किसी भी तरह से अपने हठ से पीछे हटने को तैयार न हुए, तो भगवान शिव के क्रोध की सारी सीमाएं टूट गई और उन्होंने अपने त्रिशूल से श्री गणेश का सिर काट दिया।
शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता (चतुर्थ खंड) सोलहवां अध्याय समाप्त

पार्वती का क्रोध एवं गणेश को जीवनदान

नारद जी बोले - हे ब्रह्माजी! जब भगवान शिव ने क्रोधित होकर देवी पार्वती के प्रिय पुत्र गणेश का सिर काट दिया, तब फिर क्या हुआ? जब देवी पार्वती को गणेश की मृत्यु की सूचना मिली तो उन्होंने क्या किया? भगवन्! मुझ पर कृपा कर मुझे आगे के वृत्तांत के बारे में बताइए । नारद जी के इस प्रकार प्रश्न करने पर ब्रह्माजी मुस्कुराए और बोले- नारद! जैसे ही भगवान शिव ने क्रोधवश उस बालक का सिर काटकर उसे मौत के घाट उतारा, वैसे ही वहां खड़े सभी शिवगणों की प्रसन्नता देखते ही बनती थी। उन सभी ने खुश होकर गाजे-बाजे बजाए और वहां बहुत बड़ा उत्सव होने लगा। सब मस्त होकर नाचने लगे। भगवान शिव की चारों ओर जय-जयकार होने लगी। दूसरी ओर जब पार्वती स्नान कर चुकीं तो उन्होंने अपनी सखी को बाहर भेजा कि वह गणेश को अंदर बुला ले। और जब वह बाहर गई तो उसने वहां का जो हाल देखा उसे देखकर भयभीत हो गई। गणेश का सिर कटा हुआ अलग पड़ा था और धड़ अलग। सब देवता और शिवगण प्रसन्न होकर नृत्य कर रहे थे। यह दृश्य देखकर पार्वती की वह सखी भागी भागी भीतर गई और जाकर पार्वती को इन सब बातों से अवगत कराया। अपने पुत्र गणेश की मृत्यु का समाचार पाते ही देवी पार्वती अत्यंत क्रोधित हो गईं। उन्होंने रोना आरंभ कर दिया। रोते-बिलखते वे कहतीं - हाय मैं क्या करूं? कहां जाऊं? मैं तो अपने पुत्र की रक्षा भी न कर सकी। सब देवताओं और शिवगणों ने मिलकर मेरे प्यारे पुत्र को मौत के घाट उतार दिया। अब मैं भी अपने पुत्र का संहार करने वालों का विनाश करके रहूंगी। मैं प्रलय मचा दूंगी। यह कहकर उन्होंने सौ हजार शक्तियों की रचना कर दी और देखते ही देखते वहां मां जगदंबा की विशाल सेना इकट्ठी हो गई। वे शक्तियां प्रकट होते ही हाथ जोड़कर पार्वती को प्रणाम करते हुए बोलीं- हे माता! हे देवी! हम सबको इस प्रकार प्रकट करने का क्या कारण है? हमें आज्ञा दीजिए कि हम क्या करें? तब क्रोध से तमतमाती देवी पार्वती बोलीं- तुम सब जाकर मेरे पुत्र का वध करने वालों का नाश कर दो। तुम देवसेना में प्रलय मचा दो। आज्ञा पाते ही देवी पार्वती की वह शक्तिशाली सेना वहां से चली गई। बाहर जाकर उसने देवताओं और शिवगणों पर आक्रमण कर दिया। वे क्रोधित देवियां किन्हीं देवताओं को पकड़-पकड़कर अपने मुंह में डाल लेतीं तो किसी पर अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करतीं। इस प्रकार उन्होंने वहां बहुत आतंक मचाया। वहां चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। लोग अपनी जान बचाने के लिए जहां-तहां भागने लगे। यह नजारा देखकर भगवान शिव, मैं और श्रीहरि विष्णु बहुत चिंतित हुए। हमने सोचा कि अगर इन दैवीय शक्तियों को न रोका गया तो पल भर में ही देवताओं की समाप्ति हो जाएगी। इस धरा पर प्रलय आ जाएगी। सब सोचने लगे कि इस विनाशलीला को कैसे रोका जा सकता है? नारद, उसी समय तुम आकर कहने लगे कि इस संहार को देवी पार्वती ही रोक सकती हैं। इसके लिए आवश्यक है कि उनकी स्तुति करके उन्हें प्रसन्न किया जाए और किसी भी तरह उनके क्रोध को शांत किया जाए। सभी देवताओं को तुम्हारा यह विचार बहुत पसंद आया परंतु देवी पार्वती के गुस्से से सभी घबरा रहे थे। उनके सामने जाने का साहस किसी में भी नहीं था। सबने तुम्हें आगे कर दिया। हम सब महल के भीतर पार्वती के पास गए। सब देवता मिलकर देवी की स्तुति करने लगे और बोले - हे जगदंबे ! हे चण्डिके! हम सब आपको प्रणाम करते हैं। आप आदिशक्ति हैं। आप परम शक्तिशाली हैं। आपने ही इस जगत की रचना की है। आप ही प्रकृति हैं। आप प्रसन्न होने पर मनोवांछित फलों को देती हैं जबकि क्रोधित होने पर सबकुछ छीन लेती हैं। हे देवी! हम सब अपने अपराध के लिए आपसे क्षमायाचना करते हैं। हम सबके अपराध को क्षमा कर दो और अपने क्रोध को शांत करो। हे महामाई ! हम तुम्हारे चरणों में अपना शीश झुकाते हैं। हे माता ! हम पर अपनी कृपादृष्टि करो। हे परमेश्वरी! सबकुछ भूलकर प्रसन्न हो जाओ और भयानक रक्तपात को रोक दो । इस प्रकार देवताओं की स्तुति सुनकर देवी चुप रहीं। कुछ समय सोचकर बोलीं- हे देवताओ! वैसे तो तुम्हारा अपराध सर्वथा अक्षम्य है। फिर भी तुम्हारी क्षमा याचना को मैं सिर्फ एक शर्त पर स्वीकार कर सकती हूं। यदि मेरा पुत्र गणेश पहले की भांति जीवित हो जाए तो मैं तुम सबको क्षमा कर दूंगी। यह सुनकर सब देवता चुप हो गए क्योंकि यह तो असंभव कार्य था। फिर सभी देवता हाथ जोड़कर करुण अवस्था में भगवान शिव के सामने खड़े हो गए और बोले -भगवन्! अब आप ही हमारी रक्षा कर सकते हैं। जिस प्रकार आपने गणेश का सिर काटकर उसे मारा है, उसी प्रकार अब उसे जीवित कर दीजिए। देवताओं को प्रार्थना सुनकर भगवान शिव बोले कि देवताओ, तुम परेशान मत होओ। मैं वही कार्य करूंगा, जिससे तुम्हारा मंगल हो। भगवान शिव ने देवताओं को आदेश दिया कि उत्तर दिशा में जाएं और जो भी पहला प्राणी मिले उसका सिर काटकर ले आएं। तब उसका सिर हम गणेश के धड़ से जोड़कर उसे जीवित कर देंगे। देवता उत्तर दिशा की ओर चल दिए। वहां सर्वप्रथम उन्हें एक दांत वाला हाथी मिला, वे उसका सिर काटकर ले आए। वहां महल के द्वार पर वापस आकर उन्होंने गणेश के धड़ को धो-पोंछकर साफ किया और उसकी पूजा की तब उसमें हाथी का सिर लगा दिया। तत्पश्चात श्रीहरि विष्णु ने भगवान शिव के चरणों का ध्यान करते हुए मंत्रों से अभिमंत्रित जल गणेश के मृत शरीर पर छिड़का। जल के छींटे पड़ते ही भगवान शिव की कृपा से वह बालक ऐसे उठ खड़ा हुआ जैसे अभी-अभी नींद से जागा हो। वह बालक अब हाथी का मुख लग जाने से गजमुखी हो गया था परंतु फिर भी बहुत सुंदर और दिव्य लग रहा था। रक्तवर्ण का वह बालक अद्भुत शोभा से आलोकित हो रहा था। जब भगवान शिव की कृपा से पार्वती पुत्र गणेश जीवित हो गया तो सभी देवता और शिवगण अत्यंत प्रसन्न होकर नृत्य करने लगे। उनका सारा दुख पल भर में ही दूर हो गया। देवी पार्वती अपने प्रिय पुत्र गणेश को जीवित देखकर बहुत प्रसन्न हुईं। उनका क्रोध भी शांत हो गया था।
शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता (चतुर्थ खंड) सत्रहवां अध्याय समाप्त

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