शिवगणों का गणेश से विवाद 'शिवगणों से गणेश का युद्ध Dispute between Shivganas and Ganesha 'War of Ganesha with Shivganas'

शिवगणों का गणेश से विवाद 'शिवगणों से गणेश का युद्ध

शिवगणों का गणेश से विवाद

ब्रह्माजी बोले-नारद! शिवगण अपने प्रभु भगवान शिव की आज्ञा पाकर द्वार पर पहुंचे और द्वारपाल बने श्रीगणेश को वहां से हट जाने के लिए कहा। परंतु जब गणेश ने हटने से साफ इनकार कर दिया और शिवगणों को डांटा-फटकारा तो वे भी गणेश से लड़ने लगे और बोले - ओ मूर्ख बालक ! अगर तू अपने प्राणों की रक्षा करना चाहता है तो अभी और इसी वक्त महल के द्वार को छोड़कर यहां से चला जा अन्यथा दंड पाने के लिए तैयार हो जा। यह देखकर गणेश को क्रोध आ गया और वे कठोरतापूर्वक शिवगणों से बोले कि तुम इसी समय यहां से दूर चले जाओ वरना मेरे क्रोध को भुगतने के लिए तैयार हो जाओ। गणेश बातें सुनकर शिवगण हंसने लगे, फिर द्वारपाल श्री गणेश को डांटते हुए बोले- मूर्ख हम भगवान शिव के गण हैं और उनकी आज्ञा से ही तुम्हें यहां से हटने के लिए कह रहे हैं। अब तक तुम्हें बालक समझकर हम छोड़ रहे थे, परंतु तुम तो बहुत ही हठी बालक हो, जो मानने को बिलकुल भी तैयार नहीं हो। अभी भी कहते हैं कि शीघ्र ही यहां से हट जाओ अन्यथा मार दिए जाओगे। शिवगणों के इन वाक्यों को सुनकर गणेश जी अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने शिवगणों को डांटा और धमकाकर वहां से भगा दिया। उनके इस प्रकार डांटने से शिवगण भयभीत होकर वहां से भागकर भगवान शिव के पास वापस आ गए। वहां जाकर उन शिवगणों ने अपने स्वामी भगवान शिव को जाकर सारी बातें बता दीं। यह सुनकर भगवान शिव ने क्रोधित होकर श्री गणेश को द्वार से हटाने का आदेश अपने गणों को दिया। शिवगण पुनः द्वार पर पहुंचे और गणेश को हटने के लिए कहने लगे परंतु गणेश ने वहां से हटने से साफ इनकार कर दिया। गणेश निर्भय होकर उन गणों से बोले कि मैं पार्वती का पुत्र हूं और तुम भगवान शिव के गण हो। हम दोनों ही अपनी-अपनी जगह अपने-अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं। तुम शिवजी की आज्ञा मानकर मुझे द्वार से हटाना चाहते हो, परंतु मैं अपनी माता की आज्ञा मानते हुए उनकी बिना आज्ञा प्राप्त किए किसी को भी इस द्वार से प्रवेश करने की आज्ञा नहीं दे सकता। अतः मुझसे बार-बार द्वार से हटने के लिए न कहो और जाकर अपने आराध्य स्वामी को इसकी सूचना दे दो। तब शिवगण भगवान शिव के पास गए और उन्हें सब बातों से अवगत करा दिया। भगवान शिव तो महान लीलाधारी हैं। उनकी बातों को समझ पाना अत्यंत कठिन है। यह सुनकर उन्होंने अपने गणों से कहा कि वह छोटा-सा बालक अकेला तुम्हें डरा रहा है और तुम इतनी अधिक संख्या में होकर भी उससे डर रहे हो। जाओ, जाकर उससे युद्ध करो और उसे बंदी बनाकर द्वार के सामने से हटाकर ही मेरे सामने आना।
शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता (चतुर्थ खंड) चौदहवां अध्याय समाप्त

शिवगणों से गणेश का युद्ध

ब्रह्माजी बोले- नारद! जब भगवान शिव ने इस प्रकार अपने गणों को आज्ञा दी कि वे द्वार पर खड़े उस गण को किसी भी प्रकार से हटा दें, तब शिवगण निर्भय होकर पुनः महल के द्वार पर आ खड़े हुए। उन्हें देखकर गणेश जी हंसने लगे और बोले कि तुम फिर से आ गए। तुम्हें मैंने अभी समझाया था कि मैं यहां से हटने वाला नहीं हूं। मेरी माता पार्वती ने मुझे इसीलिए ही उत्पन्न किया है ताकि मैं उनकी हर आज्ञा का पालन कर सकूं। मेरे लिए उनकी आज्ञा ही सर्वश्रेष्ठ है। उनकी अवज्ञा मेरे वश में नहीं है। तुम ऐसे ही बार-बार मुझे परेशान करने के लिए यहां अा रहे हो। तब शिवगण बोले-अरे मूर्ख ! अबकी बार हम तुमसे विनम्रता से कहने नहीं आए हैं। क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। अब हम तुम्हें तुम्हारी धृष्टता के लिए दंड देने आए हैं। यह कहकर सभी शिवगण, जो कि विभिन्न प्रकार के आयुधों से विभूषित थे, गणेश पर टूट पड़े। गणेश और शिवगणों में बहुत भयानक युद्ध होने लगा परंतु गणेश के साहस और पराक्रम को देखकर सभी शिवगणों के होश उड़ गए। शिवजी का कोई भी गण गणेश को परास्त नहीं कर सका। गणेश ने अकेले ही अनेकों शिवगणों को मार-मारकर घायल कर दिया और वहां से भागने को विवश कर दिया। तत्पश्चात पुनः महल के द्वार पर डटकर खड़े हो गए। तब सब शिवगण घायल अवस्था में शिवजी के पास पहुंचे और उन्हें सारी बातें कह सुनाई। हे नारद! तभी मैं और श्रीहरि भी भगवान शिव के दर्शनों के लिए कैलाश पर पहुंचे। वहां हमने भगवान शिव को इस प्रकार चिंतित देखकर उनकी परेशानी का कारण पूछा। तब शिवजी ने कहा- हे विधाता! हे विष्णो! मेरे महल के द्वार पर एक बालक हाथ में छड़ी लेकर खड़ा है और वह मुझे महल के भीतर नहीं जाने दे रहा है। अतः मैं यहां खड़ा हूं। उसने मेरे गणों को भी मार-पीटकर वहां से भगा दिया है। ब्रह्माजी! आप जाकर उस बालक को समझाएं। तब मैं भगवान शिव की आज्ञा से गणेश को समझाने के लिए गया। मुझे वहां आया देखकर गणेश जी का क्रोध और बढ़ गया और वे मुझे मारने के लिए दौड़े। उन्होंने मेरी दाढ़ी-मूंछें नोच डालीं और मेरे साथ गए गणों को प्रताड़ित करने लगे। यह देखकर मैं वहां से लौट आया। भगवान शिव को मैंने सारी घटना बता दी। यह सुनकर उन्हें बहुत क्रोध आया। तब शिवजी ने इंद्र सहित सभी देवताओं, भूतों-प्रेतों को गणेश जी को द्वार से हटाने के लिए भेजा परंतु यह सब व्यर्थ हो गया। गणेश ने सबको मार-पीटकर वहां से भगा दिया। उस छोटे से बालक ने देवताओं की विशाल सेना के छक्के छुड़ाकर रख दिए। जब इस बात की सूचना महादेव जी को मिली तो वे बहुत क्रोधित हुए और स्वयं ही गणेश को दंडित करने के लिए चल  दिए।
शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता (चतुर्थ खंड)पंद्रहवां अध्याय समाप्त

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