जानिए 2024 दुर्गा अष्टमी पूजा और अन्य अनुष्ठान स्तुति कुमारी पूजा अस्त्र पूजा

जानिए 2024 दुर्गा अष्टमी पूजा और अन्य अनुष्ठान स्तुति कुमारी पूजा अस्त्र पूजा Know 2024 Durga Ashtami Puja and other rituals Stuti Kumari Puja Astra Puja

स्तुति माता महागौरी 


यह स्तुति माता महागौरी को समर्पित है और उसकी महिमा और शक्ति की प्रशंसा करती है। यह स्तुति माता दुर्गा के आठवें स्वरूप, महागौरी, की महत्वपूर्णता को बयान करती है।
स्तुति:-
या देवी सर्वभूतेषु माँमहागौरीरूपेणसंस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अनुवाद:-
हे देवी, जो सभी प्राणियों में समाहित हैं और माँ महागौरी रूप में स्थित हैं।
तुम्हें प्रणाम है, तुम्हें प्रणाम है, तुम्हें प्रणाम है, हे माँ, हम नमन करते हैं॥
यह स्तुति माता महागौरी के प्रति भक्ति और श्रद्धाभाव का अभिव्यक्ति है और उनकी कृपा का अनुरोध करती है। इससे भक्त किसी भी समय माता की कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए योग्य है।

21 जनवरी 2024 रविवार  पौष पुत्रदा एकादशी

22 जनवरी 2024 सोमवार कूर्म द्वादशी

कुमारी पूजा

कुमारी पूजा या कन्या पूजन एक अहम और प्रिय परंपरा है जो उत्तर भारत में दुर्गा अष्टमी के अवसर पर मनाई जाती है। इस पूजा में, युवा कन्याएं जो माता पार्वती की रूप में स्थित हैं, आमतौर पर त्रिकोण या त्रिशूल के रूप में सजाकर पूजा जाती हैं।
कुमारी पूजा की प्रक्रिया:
  1. चयन: पूजा के लिए स्थानीय समुदाय में विशेष रूप से चयनित युवा कन्याएं कुमारी पूजा के लिए चयनित की जाती हैं।
  2. सजावट: कन्याएं बहुत ही सुंदरता से सजाकर त्रिकोण या त्रिशूल के रूप में तैयार होती हैं।
  3. पूजा: पूजा के समय, कन्याएं एक स्थान पर बैठकर माता पार्वती की पूजा करती हैं। पूजा में धूप, दीप, पुष्प, चावल, और मिठाई आदि का उपयोग होता है।
  4. मंत्र जप: पूजा के दौरान, यहां तक कि कन्याएं माता का विशेष मंत्र जप भी करती हैं।
  5. आरती: इसके पश्चात, आरती गाई जाती है और कन्याओं को प्रशाद दिया जाता है।
  6. आशीर्वाद: पूजा के बाद, कन्याओं को आशीर्वाद दिया जाता है और वे समाज में सम्मानित होती हैं।
कुमारी पूजा में यह परंपरा है कि यह तीन से आठ साल की आयु की कन्याएं ही पूजा के लिए चयनित की जाती हैं। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य है माता पार्वती की कन्याओं के माध्यम से पूजना और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना है।

दुर्गा अष्टमी पूजा और अन्य अनुष्ठान

दुर्गाष्टमी पूजा एक महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक उत्सव है जो मां दुर्गा की पूजा को समर्पित है। इस अवसर पर भक्तगण माता दुर्गा की पूजा, अर्चना, और भक्ति करते हैं। यहां एक सामान्य दुर्गा अष्टमी पूजा अनुष्ठान की विधि दी गई है:
सामग्री:-
मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो
पूजा के लिए फूल, फल, नारियल, नींबू
रोली, कुमकुम, चावल
दीपक और कुंडलियाँ
गंगाजल या नर्मदा जल
पूजा के लिए मिठाई और फल
पूजा की विधि:-
ध्यान:-मां दुर्गा की मूर्ति के सामने बैठकर ध्यान करें। इस समय भगवान की प्रार्थना करें और अपनी श्रद्धा और भक्ति जताएं।
कलश स्थापना:-एक कलश में गंगाजल या नर्मदा जल डालें और उसे स्थापित करें।
पूजा:-मां दुर्गा को रोली, कुमकुम, चावल, फूल, फल, नारियल, नींबू से पूजें।
आरती:-दीपक की आरती करें और मां दुर्गा को चाँदन, कुंकुम, सुगंधित धूप, और मिठाई से आराधित करें।
प्रसाद:-पूजा के बाद मिठाई और फल को प्रसाद के रूप में मांगें और उसे बांटें।
व्रत समापन:-दुर्गाष्टमी के दिन की पूजा के बाद व्रत को समाप्त करें और मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करें।
इसके अलावा, दुर्गा अष्टमी के दिन विशेष रूप से नौ या चार दिन के व्रत भी किए जा सकते हैं, जिसमें भक्तगण नियमित रूप से पूजा, आराधना, और भक्ति करते हैं।

अस्त्र पूजा

"अस्त्र पूजा" एक ऐतिहासिक और कला संबंधित परंपरागत पूजा पद्धति है, जिसमें शस्त्रों की पूजा की जाती है। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य शस्त्रों को पूर्णता, शक्ति, और आशीर्वाद प्रदान करना है। यह पूजा साधु-संतों, राजा-महाराजों, योद्धाओं, और कई क्षेत्रों में समाज में की जाती थी।
अस्त्र पूजा की कुछ मुख्य चरण:-
अभ्यंग स्नान (स्नान और शुद्धिकरण):- पूजा का शुरुआती चरण में, यजमान या पूजारी अपने शरीर को नहलते हैं और शुद्धि प्राप्त करते हैं।
पूजा स्थल की सज्जीकरण:- अस्त्रों की पूजा के लिए एक विशेष स्थान को शुद्ध करते हैं और उसे सज्जीकरते हैं।
अस्त्र पूजा:-अस्त्रों को विशेष मंत्रों, ध्यान और पूजा विधियों से पूजा जाता है। यह मन्त्र और पूजा विधियाँ अस्त्र के प्रकार और उपयोग के आधार पर विभिन्न हो सकती हैं।
दीप दान:-अस्त्रों की पूजा के बाद, एक दीपक को जलाकर शस्त्रों को प्रज्वलित करते हैं।
प्राणप्रतिष्ठा:-अस्त्रों को पूजा के बाद उनमें प्राणप्रतिष्ठा करते हैं, जिससे उन्हें शक्ति मिलती है और वे विशेष रूप से सक्रिय होते हैं।
पूजा का समापन:-पूजा के बाद, यजमान या पूजारी अस्त्रों को धन्यवाद देते हैं और इन्हें समर्पित करते हैं।
यह पूजा शस्त्रों को साकार रूप से नहीं, बल्कि उनकी अद्वितीय शक्ति और प्रतीकता के रूप में पूजने का एक उत्कृष्ट तरीका है। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य शस्त्रों को समर्थन, सुरक्षा और आशीर्वाद प्रदान करना है।

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