किष्किंधा कांड दोहा अर्थ सहित

किष्किंधा कांड दोहा अर्थ सहित kishkindha kand coupleh with meaning

रामचरितमानस के किष्किंधा कांड में 1 श्लोक, 30 दोहे, 1 सोरठा, 2 छंद और 30 चौपाइयां हैं. किष्किंधा कांड  के दोहा-11-20 अर्थ सहित हैं:
दोहा
लछिमन तुरत बोलाए पुरजन बिप्र समाज,
राजु दीन्ह सुग्रीव कहँ अंगद कहँ जुबराज ||११ ||
इस दोहे का अर्थ है

"लक्ष्मण तुरंत बोलाए, पुरजन और ब्राह्मण समाज में, राजा ने सुग्रीव को दी है और अंगद को कहा है युवा राजा॥११॥"
इस दोहे में कहा जा रहा है कि लक्ष्मण ने तत्काल बोलते हुए जनों और ब्राह्मण समुदाय के सामने सुग्रीव को राजा बनाया है और अंगद को युवा राजा बनाने का आदान-प्रदान किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि श्रीराम ने सुग्रीव को किश्ती को तार करने का आदान-प्रदान किया है और अंगद को युवा राजा का पद दिया है।
दोहा
प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ,
राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिंगे आइ ||१२ ||
इस दोहे का अर्थ है
"पहले मैं गिरिगुहा को देवता के रूप में बनाऊँगा, जिसे मैंने रुचिर बनाया है, राम, कृपानिधि, जल्दी ही कुछ दिनों के लिए वहाँ बसेंगे आएंगे॥१२॥"
इस दोहे में हनुमानजी बता रहे हैं कि पहले ही वह गिरिगुहा को राम के लिए देवता के रूप में सजीव करेंगे, और वहां वह रुचिर बनाएंगे। हनुमानजी कह रहे हैं कि श्रीराम, जो कृपानिधि हैं, उन्हें जल्दी ही कुछ दिनों के लिए वहां बसे आएंगे॥१२॥
दोहा 
लछिमन देखु मोर गन नाचत बारिद पैखि,
गृही बिरति रत हरष जस बिष्नु भगत कहुँ देखि ||१३ ||
इस दोहे का अर्थ है

"लक्ष्मण, मेरे देखने पर मेरे गुण-गान करता है, जैसे बारिश के बूंदों का नृत्य, गृहस्थ की वैराग्य और भगवान विष्णु के भक्त की तरह हर्ष होता है॥१३॥"
इस दोहे में हनुमानजी बता रहे हैं कि लक्ष्मण जब उन्हें देखते हैं, तो वह मेरे गुणों की स्तुति करते हैं, उसका हृदय हर्षित होता है, जैसे बारिश की बूंदें भूमि पर गिरने पर होता है। हनुमानजी यहां वैराग्यी गृहस्थ और भगवान विष्णु के भक्त के रूप में उपमहादेव लक्ष्मण की महिमा का वर्णन कर रहे हैं॥१३॥
दोहा 
हरित भूमि तृन संकुल समुझि परहिं नहिं पंथ,
जिमि पाखंड बाद तें गुप्त होहिं सदग्रंथ ||१४ ||
इस दोहे का अर्थ है

"हरित भूमि में जिसने टहलील की है, उसे तृण से संगत होकर परहित में नहीं जाना चाहिए, वहां पाखंड के बाद भी जो सत्यग्रंथ को गुप्त रखता है, वह सदा रहेगा॥१४॥"
इस दोहे में हनुमानजी यह कह रहे हैं कि हरित भूमि (श्रीराम के पादुका धारित हुआ स्थान, अयोध्या) में जिसने टहलील या श्रीराम के गुणों की महिमा का अध्ययन किया है, उसे तृण से संगत नहीं होना चाहिए, अर्थात अहंकार और किसी से तुलना की भावना से मुक्त रहना चाहिए। उनका कहना है कि हरित भूमि में श्रीराम के गुणों का अध्ययन करने के बाद भी, सदा सत्यग्रंथ की रक्षा करते रहना चाहिए, ताकि पाखंड और भ्रांति से दूर रहा जा सके॥१४॥
दोहा 
कबहुँ प्रबल बह मारुत जहँ तहँ मेघ बिलाहिं,
जिमि कपूत के उपजें कुल सद्धर्म नसाहिं ||१५(क) ||
कबहुँ दिवस महँ निबिड़ तम कबहुँक प्रगट पतंग,
बिनसइ उपजइ ग्यान जिमि पाइ कुसंग सुसंग ||१५(ख) ||
इस दोहे का अर्थ है

"कभी-कभी प्रबल मारुत (हनुमान) जहां बहते हैं, वहां मेघ बिलाएं होती हैं, जैसे कपूत के उपजने पर कुल में सद्धर्म नष्ट हो जाता है॥१५(क)||"
इस दोहे में हनुमानजी बता रहे हैं कि कभी-कभी प्रबल मारुत (हनुमान) जहां बहते हैं, वहां बड़े अच्छे कार्यों की संभावना होती है, लेकिन कभी-कभी उन्हें अपनी तेजी और बल की वजह से किसी कुंज में मेघ बिला लग सकती है, जिससे विघ्न आ सकता है। उन्होंने इसका उपमहादेव द्वारा उदाहरण स्वरूप दिया है, जिसमें कहा गया है कि जैसे कपूत के उपजने पर कुल में सद्धर्म का नाश होता है, उसी प्रकार अच्छे कार्यों के बीच में बुरे योजनाओं का उत्पन्न होना भी संभावना है॥१५(क)||
इस दोहे का अर्थ है
"कभी-कभी दिन में अंधेरा बना रहता है और कभी-कभी पतंग दिन में प्रकट होती है, जैसे ग्यान बिना हो जाता है, वैसे ही कुसंग से सुसंग का नाश होता है॥१५(ख)||"
इस दोहे में हनुमानजी यह कह रहे हैं कि कभी-कभी दिन में अंधकार होता है और कभी-कभी पतंग दिन में प्रकट होती है, यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसके साथ ही वे बता रहे हैं कि ग्यान के बिना ही विषयों का नाश होता है, जिसे कुसंग और सुसंग के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है॥१५(ख)||
दोहा  
चले हरषि तजि नगर नृप तापस बनिक भिखारि,
जिमि हरिभगत पाइ श्रम तजहि आश्रमी चारि ||१६ ||
इस दोहे का अर्थ है

"राजा ने हर्ष त्यागकर नगर छोड़ तापस्या में वन्या भिखारी बन गए, जैसे हरिभक्त भगवान की भक्ति में श्रम करते हैं और आश्रम त्याग देते हैं॥१६॥"
इस दोहे में कहा जा रहा है कि राजा ने हर्ष को छोड़कर नगर त्याग दिया और तपस्या में बनिक भिखारी बन गए। यह उनका आत्म-संयम और त्याग का प्रतीक है, जो हरिभक्त भगवान की भक्ति में श्रम करते हैं और आश्रम को त्यागकर ध्यान में लिने की प्रक्रिया का उपमहादेव के द्वारा दृष्टान्त है॥१६॥
दोहा 
भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ,
सदगुर मिले जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाइ ||१७ ||
इस दोहे का अर्थ है

"जैसे भूमि जीवों से संपन्न रहती है और सर्दी का समय आता है, वैसे ही सद्गुरु मिलते हैं जब संसय और भ्रम समाप्त हो जाते हैं॥१७||"
इस दोहे में हनुमानजी बता रहे हैं कि जैसे भूमि जीवों से संपन्न रहती है और सर्दी का समय आता है, वैसे ही सद्गुरु मिलते हैं जब संसय और भ्रम समाप्त हो जाते हैं। यह दोहा श्रद्धा और निष्ठा के माध्यम से सद्गुरु के समर्थन को प्रकट करता है, जो शिष्य को भ्रम और संसय से मुक्त करके सत्य की दिशा में मार्गदर्शन करता है॥१७||
दोहा 
तब अनुजहि समुझावा रघुपति करुना सींव ||
भय देखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव ||१८ ||
इस दोहे का अर्थ है

"तब मैंने अपने अनुयायी को समझाया, हे रघुपति (राम), भय को देखकर तुम्हारे साथ आएं, हे तात (श्रीराम), हे सखा (लक्ष्मण), हे सुग्रीव॥१८॥"
इस दोहे में हनुमानजी कह रहे हैं कि जब उन्होंने सुग्रीव को भय और उत्साह की स्थिति में देखा, तो उन्होंने सुग्रीव को समझाया कि वह भय को छोड़कर श्रीराम की कृपा की दिशा में आएं और उनके साथ मिलकर अपनी समस्याओं का समाधान करें॥१८॥
दोहा
धनुष चढ़ाइ कहा तब जारि करउँ पुर छार,
ब्याकुल नगर देखि तब आयउ बालिकुमार ||१९ ||
इस दोहे का अर्थ है

"जब धनुष चढ़ाया जाएगा, तब मैं नगर को चारों ओर से जलाऊँगा, तब बाली बलिवर्ग के साथ नगर में आकर अश्रुपूरित हो जाएगा॥१९॥"
इस दोहे में हनुमानजी यह कह रहे हैं कि जब धनुष चढ़ाया जाएगा, तब वह नगर को चारों ओर से जलाएंगे और उस समय बाली बलिवर्ग के साथ नगर में आकर अश्रुपूरित हो जाएगा। इससे सुग्रीव को समझ में आएगा कि हनुमानजी उनकी साथी की खोज में श्रीराम के पास आए हैं॥१९॥
दोहा 
हरषि चले सुग्रीव तब अंगदादि कपि साथ,
रामानुज आगें करि आए जहँ रघुनाथ ||२० ||
इस दोहे का अर्थ है
"हर्ष के साथ सुग्रीव ने अंगद और अन्य कपियों के साथ चला, राम के अनुयायी हनुमान ने पहले ही जगह बनाकर आगे बढ़ लिया, जहां रघुनाथ राम हैं॥२०॥"
इस दोहे में हनुमानजी बता रहे हैं कि हर्ष के साथ सुग्रीव ने अपने साथी कपियों के साथ चलना शुरू किया। इसके साथ ही हनुमान ने भी राम के अनुयायी कपियों के साथ आगे बढ़ने का प्रस्ताव रखा और उन्होंने पहले ही जगह बना ली, जहां रघुनाथ राम मौजूद हैं॥२०॥

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