किष्किंधा कांड दोहा

किष्किंधा कांड दोहा kishkindha incident doha


रामचरितमानस के किष्किंधा कांड में 1 श्लोक, 30 दोहे, 1 सोरठा, 2 छंद और 30 चौपाइयां हैं. किष्किंधा कांड  के  दोहा अर्थ सहित हैं:
दोहा
जग कारन तारन भव भंजन धरनी भार,
की तुम्ह अकिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार ||१ ||
इस दोहे का अर्थ है:

जग (दुनिया) को तारने वाले, भव भंजन (संसार के भयों को नष्ट करने वाले), धरनी भार (पृथ्वी का भार) उठाने वाले हे भगवान, तुम्हीं अकिल (सभी) भुवन पति (जगत के स्वामी) हो, मनुज अवतार लेने वाले हो।
यह दोहा भगवान श्रीराम के विभिन्न गुणों और महत्वपूर्णताओं को स्पष्ट करता है, और इसका संबंध तुलसीदास जी के 'रामचरितमानस' के भक्तिकाव्य से है। यह दोहा भक्ति भावना और आदर्श जीवन की महत्वपूर्णता को उजागर करता है।
दोहा
एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अग्यान,
पुनि प्रभु मोहि बिसारेउ दीनबंधु भगवान ||२ ||
इस दोहे का अर्थ है:

"एक मेरा मन मंद (मूढ़), मोह और बस (बनाये रखने) में कुटिल, हृदय (चित्त) में अज्ञान से युक्त है, पुनः प्रभु, हे दीनबंधु (दीननाथ), मुझे अपने भगवान स्वरूप से भूला दो॥२॥"
यह दोहा मनुष्य के आत्मविकास में समर्थन करने वाला है। यह कहता है कि व्यक्ति का मन मोह और कुटिलता से भरा हुआ है, और उसमें अज्ञान है। ह्रदय में अज्ञान के कारण, व्यक्ति अपने आत्मस्वरूप को भूल जाता है। इसलिए, दोहा व्यक्ति से कहता है कि पुनः भगवान को याद करें, और उसे अपने भगवान स्वरूप को अपने मन से बिल्कुल भूल जाने की अनुमति दें। दीनबंधु शब्द भी यहां व्यक्ति के लिए भगवान का करुणा और साहारा दिखाता है, जो उसके दीनता और बंधुता को समझता है।
दोहा 
सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत,
मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत ||३||
इस दोहे का अर्थ है:
"जिसके मन में अनन्यता है, जिसकी मति एकान्त भक्ति में लगी है, हे हनुमान, वह मुझे सचर और असचर सभी रूपों के स्वामी भगवंत बना लें॥३॥"
इस दोहे में हनुमानजी को श्रीरामचंद्रजी के अनन्य भक्त के रूप में चित्रित किया गया है। यह कहता है कि जिसका मन अनन्यता से भरा हुआ है, और जिसने अपनी मति को सच्ची एकान्त भक्ति में लगा रखा है, वह हनुमानजी को सभी सांसारिक और असांसारिक रूपों के स्वामी भगवंत बना सकता है। यह एक भक्ति और समर्पण के भाव को उजागर करने वाला दोहा है।
दोहा
तब हनुमंत उभय दिसि की सब कथा सुनाइ ||
पावक साखी देइ करि जोरी प्रीती दृढ़ाइ ||४||
इस दोहे का अर्थ है:
"तब हनुमान ने उभय दिशाओं में सब कथाएं सुनाईं, पावक (अग्नि) साक्षी बनकर, प्रेम और दृढ़ भक्ति से युक्त होकर, जोरी बनाई॥४॥"
इस दोहे में हनुमानजी का वीरता और भक्ति के प्रति प्रतिबद्धता का वर्णन किया गया है। हनुमानजी को सब दिशाओं में सुनने वाले और सब जगहों की रक्षा करने वाले रूप में चित्रित किया गया है। पावक साक्षी के रूप में हनुमानजी का वर्णन करके उनकी दिव्यता और शक्ति को हाथापाई से बयान किया गया है। हनुमानजी की प्रीति और भक्ति ने उन्हें श्रीराम के सेवक के रूप में जोड़ा है, जिससे उनकी जोड़ी महत्वपूर्ण है।
दोहा
सखा बचन सुनि हरषे कृपासिधु बलसींव,
कारन कवन बसहु बन मोहि कहहु सुग्रीव ||५||
इस दोहे का अर्थ है:

"सुग्रीव, हे सखा (मित्र), जब मैंने तुम्हारे वचन सुने, तो मैं हर्षित हो गया हूँ, कृपासिधु (राम) की कृपा और बल ने मेरी शक्ति को बढ़ाया है। अब मुझसे कहो, हे सुग्रीव, मैं किस प्रकार तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ॥५॥"
इस दोहे में हनुमानजी ने अपनी सुखद भावना के साथ बताया है कि उन्होंने सुग्रीव के वचनों को सुनकर कृपासिधु श्रीराम की कृपा और बल की प्राप्ति में आनंदित हुआ है। अब हनुमानजी सुग्रीव से पूछ रहे हैं कि उनकी सेवा में कैसे मदद कर सकते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि हनुमानजी ने अपने कार्य में समर्थन और सहायता की प्रतिबद्धता दिखाई है और वह श्रीराम के लिए सच्चे मित्र के रूप में सुग्रीव के साथ खड़े हैं।
दोहा
सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान,
ब्रम्ह रुद्र सरनागत गएँ न उबरिहिं प्रान ||६||
इस दोहे का अर्थ है:

"सुग्रीव, मैं एक ही बाण से बाली को मारूँगा, तू सुन, ब्रह्मा, रुद्र और सर्व नाथों की शरण में गए हों भी, वे मेरे प्राण को उबार नहीं सकते॥६॥"
इस दोहे में हनुमानजी श्रीराम के लिए बाली को मारने का संकल्प बता रहे हैं। हनुमानजी का यह वादा है कि वह एक ही बाण से बाली को मारेंगे, जो कि सुग्रीव की समस्या का हल करेगा। उन्होंने यह भी कहा है कि ब्रह्मा, रुद्र, और सभी नाथ भी श्रीराम की शरणा में गए होते हैं, लेकिन वे उनके प्राण को उबार नहीं सकते, जो भगवान राम के लिए समर्पित हैं।
दोहा
कह बालि सुनु भीरु प्रिय समदरसी रघुनाथ,
जौं कदाचि मोहि मारहिं तौ पुनि होउँ सनाथ ||७||
इस दोहे का अर्थ है:

"भीमसेन, बाली से कहो, भगवान रघुनाथ तुम्हें प्रिय हैं, अगर वह कभी मुझे मारें, तो तुम मेरे संग सहायक बन जाओगे॥७॥"
इस दोहे में हनुमानजी ने भीमसेन (हनुमान का एक अन्य नाम) से कहा है कि वह बाली से मिलकर श्रीराम के प्रति उनकी भक्ति को प्रकट करें और उन्हें श्रीराम के प्रिय भक्त के रूप में समझें। हनुमानजी यह भी कहते हैं कि अगर बाली मुझे मारें तो तुम मेरे साथी बनकर सहायक बन सकते हो। इससे यह ज्ञात होता है कि हनुमानजी ने अपने मित्र भीमसेन को बाली के साथ मित्रता बनाने का सुझाव दिया है।
दोहा
बहु छल बल सुग्रीव कर हियँ हारा भय मानि,
मारा बालि राम तब हृदय माझ सर तानि ||८||
इस दोहे का अर्थ है:

"सुग्रीव ने बहुत छल-बल का सही उपयोग करके हार को स्वीकार किया, जब राम ने बाली को मारा, तब उसका हृदय मेरे लिए स्थिर हो गया॥८॥"
इस दोहे में हनुमानजी सुग्रीव की कुशलता की स्तुति कर रहे हैं। सुग्रीव ने बहुत छल और बल का सही उपयोग करके बाली को पराजित किया और राम के सहायक बना। इसका परिणामस्वरूप, जब राम ने बाली को मारा, तो सुग्रीव का हृदय हनुमान के लिए स्थिर हो गया। यह दोहा सुग्रीव की विवेकपूर्ण चेतना और भगवान राम के भक्ति में विश्वास को दर्शाता है।
दोहा
सुनहु राम स्वामी सन चल न चातुरी मोरि,
प्रभु अजहूँ मैं पापी अंतकाल गति तोरि ||९ ||
इस दोहे का अर्थ है:

"राम स्वामी, मेरे चतुराई सुनो, मुझे तुम्हारा दर्शन नहीं मिला है, प्रभु, अब तक मैं पापी हूँ, अंतकाल में मेरी गति तुम्हारे पास हो॥९॥"
इस दोहे में हनुमानजी राम स्वामी से कह रहे हैं कि उन्हें अब तक अपने प्रभु राम का दर्शन नहीं हुआ है और वह अपनी चातुराई से समझते हैं कि यह संभव नहीं है। वे भूल रहे हैं कि राम स्वामी सबकुछ जानते हैं और उन्हें चातुराई की आवश्यकता नहीं है। इसके बाद हनुमानजी अपने पापों की स्थिति को मानते हैं और प्रभु से आशीर्वाद का आग्रह करते हैं कि अंतकाल में वह भक्तियोग से तुम्हारी प्राप्ति करें॥९॥
दोहा
राम चरन दृढ़ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग,
सुमन माल जिमि कंठ ते गिरत न जानइ नाग ||१० ||
इस दोहे का अर्थ है:

"राम चरणों में दृढ़ प्रेम करके बाली ने अपने शरीर को त्यागा, उसके कंठ से सुमन और माला जैसे किरणें गिरती हैं, जिसे नाग भी नहीं जानता॥१०॥"
इस दोहे में कहा जा रहा है कि बाली ने भगवान राम के प्रति अपनी दृढ़ प्रेम भावना को प्रकट करते हुए अपने शरीर को उनके पादों में समर्पित कर दिया और इस प्रेम से उनका शरीर जैसे तेज और पवित्र हो गया। इस प्रेम ने बाली को उच्च आत्मा तक पहुंचा दिया, जिससे उसके कंठ से बहने वाले सुमन और माला की तरह किरणें गिरती हैं, जो नाग भी नहीं समझ सकता है॥१०॥

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