किष्किन्धाकाण्ड सोरठा अर्थ सहित

किष्किन्धाकाण्ड सोरठा अर्थ सहित Kishkindhakand Soratha with meaning

रामचरितमानस के किष्किंधा कांड में 1 श्लोक, 30 दोहे, 1 सोरठा, 2 छंद और 30 चौपाइयां हैं. किष्किंधा कांड में सोरठा का अर्थ सहित हिन्दी में  हैं:
सोरठा
मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि कर
जहँ बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न ||
इसका अर्थ हिन्दी में
सोरठा (संगीत की ताल) में, मुक्ति या मोक्ष का जन्म मन में ज्ञान को बिठाने से होता है, और अहंकार आदि की अघ दोषों को हरने से होता है। जहाँ परमेश्वर शिव बसते हैं, वहाँ ही काशी है, इसलिए काशी वह स्थान है जहाँ सभी दोषों का नाश होता है।
इस दोहे में भगवान शिव की महिमा और काशी के महत्त्व को बताया गया है और साधकों को नीति और भक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति की प्रेरणा दी जा रही है।
जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय,
तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस ||
इसका अर्थ हिन्दी में

जब ब्रह्मा, विष्णु, और शिव आपसी संवाद कर रहे थे और उनमें भगवान शिव ने अपने गले में हाला बैठाई, जिसका अर्थ बहुत भारी विष का पान करना है, वह तब भी मन हल्का नहीं हुआ। इसी समय, जब श्रीराम ने भगवान शिव की आराधना की और उन्हें प्रसन्न किया, तो शिव ने आपसे कहा, "तुमने मेरे मन को हल्का कर दिया, तुम्हारी कृपा से ही मेरा मन शान्त हुआ।"
इस दोहे में भगवान शिव की कृपा का वर्णन किया गया है और यह बताता है कि भगवान की भक्ति और आराधना से ही मन की शान्ति हो सकती है।
आगें चले बहुरि रघुराया, रिष्यमूक परवत निअराया ||
तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा, आवत देखि अतुल बल सींवा ||
इसका अर्थ हिन्दी में

आगे बढ़ते हुए, फिर रघुकुल नायक श्रीराम ने ऋष्यमूक पर्वत की ओर रुख किया। वहां सुग्रीव सहित उनके मित्र बैल के राजा सुग्रीव तथा उनके सचिव हनुमान सहित अपने अतुल बल से युक्त सेना को देखकर रुके रहे।
यह दोहा श्रीरामचरितमानस के किष्किंधा काण्ड में सुग्रीव से मिलन की घटना को विवरणित करती है, जब भगवान श्रीराम और लक्ष्मण ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़ रहे हैं। इसमें वे सुग्रीव के साथ मिलते हैं और उसे उसके स्थिति की पुनर्निर्धारण करने के लिए उसकी सहायता करते हैं।
अति सभीत कह सुनु हनुमाना, पुरुष जुगल बल रूप निधाना ||
धरि बटु रूप देखु तैं जाई, कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई ||
इसका अर्थ हिन्दी में

"अत्यन्त सुभीत कह, सुन हनुमान, वह पुरुष जुगल बलरूप धन है। जब तू राम और लक्ष्मण का सुंदर रूप देखेगा, तो तू उनके पास जाकर कहना, 'तुम्हारी अद्भुतता को मैं समझता हूँ।'"
इस दोहे में हनुमानजी को सीताजी के दरबार में जाकर राम और लक्ष्मण का सुंदर रूप देखने के बाद उनकी महिमा की महत्ता को बताया जा रहा है। यह दोहा संक्षेप में भगवान राम और भगवान लक्ष्मण के दिव्य स्वरूप की महत्वपूर्णता को दर्शाती है और हनुमानजी को उनकी प्रशंसा करने के लिए प्रेरित करती है।
पठए बालि होहिं मन मैला, भागौं तुरत तजौं यह सैला ||
बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ, माथ नाइ पूछत अस भयऊ ||
इसका अर्थ हिन्दी में
"पढ़ो तो बालि मन में मैला हो जाएगा, इस सेला को तुरंत छोड़ दो। ब्राह्मण के रूप में कपि बनकर वहाँ गया, और वहाँ पहुंचकर सीधे मुखवाले बनकर उनसे पूछता है।"
इस दोहे में हनुमानजी बालि की विजय के बाद की घटना का वर्णन कर रहे हैं। हनुमानजी ने बालि के मन की मैला को देखते हुए उसे छोड़ने की सलाह दी और फिर ब्राह्मण के रूप में कपि बनकर सीधे बालि के समीप गए और मुखवाले होकर उनसे बात की।
को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा, छत्री रूप फिरहु बन बीरा ||
कठिन भूमि कोमल पद गामी, कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी ||
इसका अर्थ हिंदी में

"ओ स्यामल! तुम्हारा शरीर गौर और स्याम (काले) रंग का है, तुम छत्रीरूपी छाया में चिरपिंग बीर बने हुए हो। तुम कठिन भूमि पर भी कोमल पदों वाले, चरणों में दृढ़ता रखने वाले, गामी (चलने वाले) हो। हे बन के स्वामी! तुम किस हेतु कठिन भूमि में चरने के लिए बिचर रहे हो?"
इस दोहे में कवि तुलसीदासजी ने हनुमानजी की ब्राह्मण वेशभूषा के साथ श्रीराम की भक्ति में उनके महत्त्व को बताया है। हनुमानजी को वीर, कठिनाईयों को आसान करने वाला, और भगवान श्रीराम के सेवक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
मृदुल मनोहर सुंदर गाता, सहत दुसह बन आतप बाता ||
इसका अर्थ हिन्दी में
"मृदुल, मनोहर और सुंदर गाता है, और वह बन कर आतप (सूर्य) की किरणों से भी तेज बातें करता है।"
इस पंक्ति में कवि एक सुंदर, मनोहर और साँवला (मृदुल) मनुष्य या गीतकार का वर्णन कर रहा है, जो अपनी आवाज़ से सुंदर गाना गा रहा है और उसकी बातें भी आतप (गर्मी) की किरणों की तरह तेज़ हैं।

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