रामचरितमानस सुंदरकांड चौपाई अर्थ सहित (चौपाई 151-170 अर्थ सहित)

रामचरितमानस सुंदरकांड चौपाई अर्थ सहित 

चौपाई 151-170 अर्थ सहित

श्री रामचरितमानस का पंचम सोपान सुन्दरकाण्ड है। इस सोपान में 01 श्लोक, 03 छन्द, 526 चौपाई, 60 दोहे  हैं। मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करने की परंपरा है

चौपाई

यह संवाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा।।
सुनि प्रभु बचन कहहिं कपिबृंदा। जय जय जय कृपाल सुखकंदा।।151

चौपाई का अर्थ
इस संवाद को जिसने अपने हृदय में स्थान दिया है, वह भक्तिभाव से राघव के पादों में स्थान पा जाता है। हे कपिब्रिंद, प्रभु श्रीराम के वचन को सुनकर बोलो, 'जय हो, जय हो, जय हो, कृपाल सुखकंद (जो सुख का स्रोत है)।'
चौपाई
तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा। कहा चलैं कर करहु बनावा।।
अब बिलंबु केहि कारन कीजे। तुरत कपिन्ह कहुँ आयसु दीजे।।152
चौपाई का अर्थ
तब रघुकुलेश्वर राम ने कपिपति हनुमानजी को बुलाया और कहा, 'चलो, हमें एक कठिन कार्य का निर्माण करना है। अब तुम बिलंबु (विलंब) का कारण बताओ, ताकि हम तुम्हें तुरंत ही उस कार्य को पूरा करने के लिए भेज सकें।'
चौपाई
कौतुक देखि सुमन बहु बरषी। नभ तें भवन चले सुर हरषी।।
प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा। गरजहिं भालु महाबल कीसा।।153
चौपाई का अर्थ
रामचंद्रजी की आभा को देखकर फूलों ने बहुत सारे फूल बरसाए, और आकाश से लेकर मन्दिर तक सभी देवताएं हर्ष से भरी हुई चली आईं। प्रभु राम के पादकमलों को अपने सिर पर रखते हुए उनकी महिमा का गान करते हुए, महाबली भगवान हनुमानजी भी गरज रहे थे।"
चौपाई
देखी राम सकल कपि सेना। चितइ कृपा करि राजिव नैना।।
राम कृपा बल पाइ कपिंदा। भए पच्छजुत मनहुँ गिरिंदा।।154
चौपाई का अर्थ
हनुमानजी ने देखा कि रामचंद्रजी ने कृपा करके सम्पूर्ण कपि सेना को अपने राजीवनेत्रों से देखा। राम की कृपा से कपिसेनापति हनुमानजी को अत्यधिक शक्तिशाली बना दिया और उनके मन में पच्छजुत (पहाड़) को गिराने की इच्छा हुई।"
चौपाई
हरषि राम तब कीन्ह पयाना। सगुन भए सुंदर सुभ नाना।।
जासु सकल मंगलमय कीती। तासु पयान सगुन यह नीती।।155
चौपाई का अर्थ
रामचंद्रजी के आगमन पर सभी भक्त अत्यंत हर्षित हो गए और उन्हें देखकर सुंदर और सुभ नाना (नाट्य) रूप में सगुन ब्रह्मा भी हर्षित हुए। जिनके प्रति सभी मंगलमय घटित हो गए हैं, उनका दर्शन करके ही सबको आनंद हुआ है, यह एक महत्त्वपूर्ण नीति है।"
चौपाई
प्रभु पयान जाना बैदेहीं। फरकि बाम अँग जनु कहि देहीं।।
जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई। असगुन भयउ रावनहि सोई।।156
चौपाई का अर्थ
जब प्रभु राम अयोध्या को गए, तब मानों सीता देवी की शरीर से बायें हाथ को कहीं लग गया था। जो जो भक्त सगुन रूप में सीताजी को जानता है, वह सभी साधक उसी स्वरूप में भक्ति करते हैं, और जो असगुन रूप में सीताजी को जानता है, वह रावण है।"
चौपाई
चला कटकु को बरनैं पारा। गर्जहि बानर भालु अपारा।।
नख आयुध गिरि पादपधारी। चले गगन महि इच्छाचारी।।157
चौपाई का अर्थ
हनुमानजी चले अयोध्या को बताने, अपनी अद्वितीय शक्ति को प्रदर्शित करने के लिए, उनकी गर्जना से सारा वानरसेना अद्भुत भाव से उत्साहित हो रही है। उनके नाखूं, आयुध, और पैरों के स्पर्श से पहाड़ों की चोटियों में आग उत्पन्न हो रही है, और हनुमानजी वायुमंडल में चलते हुए अपनी इच्छाशक्ति से आकाश में चले जा रहे हैं।"
चौपाई
केहरिनाद भालु कपि करहीं। डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं।।
उहाँ निसाचर रहहिं ससंका। जब ते जारि गयउ कपि लंका।।158
चौपाई का अर्थ
केहरिनाद ने भालु और दिग्गजों के साथ युद्ध किया, और वह बहुत डगमगा रहा था। इसके बाद निसाचर सेना उस समय वहाँ संका रहित होकर बैठी थी, जब उसने कपि सेना को जला दिया था और लंका आगए बढ़ी।"
चौपाई
निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा। नहिं निसिचर कुल केर उबारा।।
जासु दूत बल बरनि न जाई। तेहि आएँ पुर कवन भलाई।।159
चौपाई का अर्थ
निसाचर समुदाय ने अपने-अपने घरों में सबको विचार करने के बावजूद, वे नहीं समझे कि उनके कुल के लोगों का उद्दीपन इस विशेष समय में कहां हो सकता है। इसके बावजूद, उनके दूत वहाँ गए और उन्होंने यह नहीं कहा कि उनके कुल के लोगों को कौन-कौन से उद्दीपन मिल सकता है, जिससे कि पुरुषोत्तम श्रीराम की कृपा हो सके।"
चौपाई
दूतन्हि सन सुनि पुरजन बानी। मंदोदरी अधिक अकुलानी।।
रहसि जोरि कर पति पग लागी। बोली बचन नीति रस पागी।।160
चौपाई का अर्थ
रावण के दूत ने सीताजी के अनुरोध पर श्रीराम के संदेश को सुनाया, और इसके परिणामस्वरूप मंदोदरी बहुत चिंता में डूबी रहीं। उन्होंने गुप्त रूप से रावण के पास जाकर अपने पति के पैरों में जोर से चिपक गईं और धर्म, नीति, और रस के प्रकार में उपदेश देती हुई कहा।"
चौपाई
कंत करष हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरहु।।
समुझत जासु दूत कइ करनी। स्त्रवहीं गर्भ रजनीचर धरनी।।161
चौपाई का अर्थ
सीताजी ने कहा, 'हे हनुमान, तुम्हारी बातों को मैं ध्यानपूर्वक सुन रही हूँ, परंतु हे हरि, मैंने तुम्हें चिता करने का निर्णय नहीं किया है। तुम्हारी बातों को समझती हूँ, क्योंकि जो स्त्रीवद्भाव से बरी है, उसे जासुमती नामक एक राक्षसनी ने रक्षित किया है।'"
चौपाई
तासु नारि निज सचिव बोलाई। पठवहु कंत जो चहहु भलाई।।
तब कुल कमल बिपिन दुखदाई। सीता सीत निसा सम आई।।162
चौपाई का अर्थ
सीताजी ने कहा, 'इसलिए मैंने अपने सचिव से तुम्हारे बारे में बताया है, कृपया रामजी को मेरे प्रति शिकायत करने का कारण मुझसे छिपा मताओ। तब तुम्हारे पुरुषोत्तम के घर की दुर्दशा और भी विस्तृतता से सुनाई जाएगी, यहाँ तक कि सीता रात्रि के समय भी दिन की तरह दुःखदाई लगे।'"
चौपाई
सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें। हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें।।
श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी।।163
चौपाई का अर्थ
हे नाथ, मेरे बिना तुम श्रीराम का गान नहीं कर सकते, और शिवजी ने तुम्हें बिना ही सर्वज्ञता प्रदान की है। मैंने सुना है कि तुमने सच्चे सत्य को श्रवण किया है, इससे सर्वजगह विख्यात हो गए हो, और तुम्हारा अभिमान विश्वभर में फैला हुआ है।"
चौपाई
सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा।।
जौं आवइ मर्कट कटकाई। जिअहिं बिचारे निसिचर खाई।।164
चौपाई का अर्थ
नारी का सभी से भयभीत और सुभाव से सावधान रहना चाहिए। महत्वपूर्ण कारण से मन अति चंचल होता है। जैसा कि वानरराज हनुमान ने सीता जी को लंका से लेकर लौकिक समृद्धि का सूचना करने के लिए आया, उसी प्रकार निसाचर वनरों को जिस अवस्था में देख रहा था, वह उन्हें काट लेता था।"
चौपाई
कंपहिं लोकप जाकी त्रासा। तासु नारि सभीत बड़ि हासा।।
अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई।।165
चौपाई का अर्थ

"जिस नारी को लोक में देखकर सभी विश्व कांप जाता है, वह नारी सभीतों में बहुत बड़ी हंसी का कारण बन जाती है। उसे यह देखकर बहुत अच्छा लगता है, और वह हंसी के साथ-साथ सभीतों की ओर चलती है, अपनी अधिक ममता को अग्रगामी बनाती हुई।"
चौपाई
मंदोदरी हृदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर बिधि बिपरीता।।
बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई। सिंधु पार सेना सब आई।।166
चौपाई का अर्थ
मंदोदरी ने रावण के विषय में सुना, और उनके हृदय में भय उत्पन्न हो गया क्योंकि वह जानती थीं कि उसके पति ने सीता की चुप्पी और उसके साथ बुरे चरित्र का पालन किया है। तब सभी ने सभा में बैठकर इस खबर को सुना और सेना ने इस पर विचार किया कि सीता को लाने के लिए एक पुनर्निर्माण आयोजित किया जाए।"
चौपाई
बूझेसि सचिव उचित मत कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहहू।।
जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं। नर बानर केहि लेखे माही।।167
चौपाई का अर्थ
तुम सचिव हो, तुम्हें यह समझना चाहिए कि सीता मिली है और यह उचित है कि तुम इसे रामजी को बताओ। अगर तुम इसे बता दोगे, तो सभी हंसते हुए तुम्हारे साथ रहेंगे। जब तुम सुरों और असुरों को हरा चुके हो, तो इसमें कोई कठिनाई नहीं है। मनुष्यों और वानरों की वस्तुएँ कितनी भी बड़ी क्यों न लें, तुम्हारे लिए कोई कठिनाई नहीं है।"
चौपाई
सोइ रावन कहुँ बनि सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई।।
अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा।।168
चौपाई का अर्थ
इसलिए मैं रावण से कहता हूँ कि वह बिभीषण को सहायता करें। तुम उसके प्रति स्तुति करके सुनाओ। इसके बाद विभीषण को इस अवसर की जानकारी होगी, और वह भाई के पास आएगा, अपने भ्राता के चरणों में सिर झुकाएगा और आपकी भलाई के लिए सहायता करेगा।"
चौपाई
पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन।।
जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरुप कहउँ हित ताता।।169
इसका अर्थ (arth) है

पुनः सिर पर सिर नहीं बैठता, अपने आसन पर बैठकर मन्त्र जपते हुए बोला, "हे प्रभु, आपकी कृपा से मुझे बताइए कि मैं क्या कहूँ? मैं जो कुछ भी कहूँ, वह आपके अनुसार हो, मेरे श्रीमान।"
यह चौपाई तुलसीदास जी का भक्ति और अनुसरण का भाव प्रकट करती है, जो भगवान की कृपा और मार्गदर्शन की प्रार्थना करते हुए किया गया है।
चौपाई
जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना।।
सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाई।।170
इसका अर्थ (arth) है

"जो कुछ भी आपको कल्याण (मंगल) लाभ करे, सुसमृद्धि, सुमति, शुभ गति, और अनेक सुख प्रदान करे, वह सर्वशक्तिमान गोसाईं हैं। इसलिए, चंदन की तुलना में वह त्याग दें, जो चंदन की तरह सुगंधित होता है और अन्य किसी चीज की तरह नहीं है।"
यह चौपाई श्रीराम के पूज्य गुणों की महिमा गाती है और उनके भक्तों को आपसी तुलना से विभिन्नता को समझाती है। भक्ति और समर्पण के माध्यम से इसे प्रस्तुत किया गया है।

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