संपूर्ण सुंदरकांड चौपाई

संपूर्ण सुंदरकांड चौपाई Sampoorna Sunderkand Chaupai

गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई। एहि बिधि सदा गगनचर खाई।।
सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा। तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा।।12
इस चौपाई का अर्थ

"जो छाया जा सकता है, उसे हनुमान ने कभी नहीं छोड़ा। इसी रीति से वह हमेशा आकाशचर (उड़ने वाले पंछी) की भाँति घूमता रहा है। इसी तरह हनुमान ने छल किया, उसे कहा कि उसने वह कार्य किया। इस प्रकार उस चालबाजीवाले कपि ने तुरंत उसका चीरना किया।"
इस चौपाई में हनुमान जी की सत्यनिष्ठा और निर्मल भावना को दर्शाया गया है। हनुमान जी ने जो कुछ किया, उसमें छल या कपट नहीं था, और उन्होंने अपने कीर्तिमान और वीरता से युक्त रूप से कार्य किया।
ताहि मारि मारुतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा।।
तहाँ जाइ देखी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा।।13
इस चौपाई का अर्थ
"हनुमान ने उसी बारिधि को पार करके जो बहुत बलवान था, उसको मारा। वह मारुतसुत (हनुमान) बहुत ही वीर और मति वाला था। वह वहां जा कर देखा, वहां बन में सुंदरता है, और चंचल मधुर संगीत से भी भरपूर है।"
इस चौपाई में हनुमान जी की वीरता और बुद्धिमत्ता का वर्णन है। हनुमान ने समुद्र को पार करते समय जो बहुत बलवान बनर था, उसको मारकर अपनी शक्ति और वीरता को प्रमोट किया। इसके बाद उन्होंने लंका की सुंदरता और मधुर संगीत का आनंद लिया।
नाना तरु फल फूल सुहाए। खग मृग बृंद देखि मन भाए।।
सैल बिसाल देखि एक आगें। ता पर धाइ चढेउ भय त्यागें।।14
इस चौपाई का अर्थ

"नाना वृक्षों में फल और फूल सुंदरता को बढ़ाते हैं। बहुत खगों और मृगों की समृद्धि को देखकर मन प्रसन्न होता है। उसी तरह समुद्र की विस्तार से एक आगे एक दीपक को देखकर, वही दीपक ऊपर चढ़ता है और नीचे त्यागा जाता है।"
इस चौपाई में तुलसीदास जी ने प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाने के लिए वृक्षों, फलों, फूलों, खगों, मृगों, समुद्र, और दीपक की उपमहाद्वारा इस दुनिया की सुंदरता को बताया है।
उमा न कछु कपि कै अधिकाई। प्रभु प्रताप जो कालहि खाई।।
गिरि पर चढि लंका तेहिं देखी। कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी।।15
इस चौपाई का अर्थ

"उमा (पार्वती) ने किसी के बल से कपि को भी अपने पति, प्रभु शिव के बल से अधिक कुछ नहीं करने की आज्ञा दी। जब प्रभु श्रीराम ने लंका को बनाया और गिरिराज हनुमान ने उसे देखा, तो उन्होंने कहा कि यह स्थान अत्यन्त दुर्ग विशेष है, और किसी को इसे जाना नहीं चाहिए।"
इस चौपाई में विशेष रूप से प्रभु श्रीराम की शक्ति और पराक्रम की महिमा का वर्णन किया गया है। उमा ने अपने पति के अतीत और अधिकार में भक्त हनुमान को देखते हुए उन्हें इस अत्यंत दुर्ग की रक्षा करने का कार्य सौंपा।
अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा।।16
अर्थ
"समुद्र अत्यंत ऊँचा है और इसके चारों ओर विस्तार बड़ा है। इसे सोने के कोट से ढका गया है, जिससे इसका प्रकाश परम है।"
यह चौपाई समुद्र की अत्यधिक ऊँचाई, विस्तार, और भव्यता को व्यक्त करने के लिए उपयोग हुआ है। इसे सोने के कोट से ढकने के बारे में बताकर समुद्र की महत्ता और भव्यता को बड़े ही सुंदर ढंग से व्यक्त किया गया है।
चौपाई
मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी।।
नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी।।17
इस चौपाई का अर्थ

"हनुमान ने कपि के समान सुंदर रूप में भी अपना रूप धारण किया। वह लंका की ओर बढ़ा, लेकिन मन में राम का स्मरण करते हुए। एक नामक राक्षस लंकिनी नामक निसाचरी ने हनुमान से कहा, 'तुम कौन हो, तुम्हारा लंका में आना अनुमति देने वाला नहीं है।'"
इस चौपाई में हनुमान जी का लंका में पहुंचना और वहां राम की तलाश करना व्यक्त किया गया है। लंकिनी नामक राक्षसनी ने हनुमान को रोका और उससे अपनी पहचान के बारे में पूछा।
जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा।।
मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी।।18
इस चौपाई का अर्थ

"मुझे अपनी हृदयरहित स्थिति से कुछ नहीं पता है, जैसे कि मोर अपना आहार जहाँ रखता है, वहां चोर चुरा लेता है। महा कपि हनी ने अपने मुख से एक मुठी में रक्त लेकर धरती को भिगोकर उसे धनमनी बना दिया।"
इस चौपाई में कवि ने अपनी अज्ञानता को और जीवन की अनिश्चितता को मोर के आहार के स्थान के समान बताया है, जो चोरों के लिए सुलभ प्राप्त होता है। महा कपि हनी ने अपनी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करके धरती को रक्त से भिगोकर धनमनी में बदला है, जिससे यह उपमहाद्वारा बताता है कि ज्ञान का असली मूल्य है।
पुनि संभारि उठि सो लंका। जोरि पानि कर बिनय संसका।।
जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा।।19
इस चौपाई का अर्थ

"फिर हनुमान ने लंका को संभालकर उठाया, जल से जोड़कर विनयपूर्वक प्रविश्य उन्होंने रावण से ब्रह्मस्वरूप वचन सुनाया। जब रावण ने ब्रह्मा के वरदान को दिया, तब हनुमान ने अपनी बहादुरी को बहुत व्यापक रूप से दिखाया और उन्होंने कहा, 'ब्रह्मा, मुझे माफ करें।'"
इस चौपाई में हनुमान जी ने लंका को उठाकर रावण के समक्ष पहुंचे और उनसे ब्रह्मस्वरूप वचन सुनाया। रावण ने ब्रह्मा के वरदान को दिया, लेकिन हनुमान ने उसे आत्म-प्रमाण से विवदित किया और उनकी शक्ति और पराक्रम को प्रकट किया।
बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे।।
तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता।।20
इस चौपाई का अर्थ

"तब जब तुमने कपिकेश (सुग्रीव) को बिकल (विरोधी) होते हुए मारा, तब निसाचर समूह को मारने का समय आया। अह, मेरे प्रिय सीतापति राम, तुम्हारे मुखरेखा को देखने से मेरी अत्यधिक पुण्यशाली भाग्यशाली हो गई है।"
इस चौपाई में हनुमान जी अपने योग्य सेनानी कपिकेश (सुग्रीव) के साथ मिलकर निसाचर समूह को पराजित करने का समय आया है का बयान कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने भगवान राम की प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को भी व्यक्त किया है।
चौपाई
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कौसलपुर राजा।।
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।21
इस चौपाई का अर्थ
"प्रबिसि नगर में सभी कार्य करें और अपने हृदय में कौसलपुर के राजा को रखें। अपनी भूमि को गरल की सुधा से साफ करें, दुश्मन को मिटाने के लिए गोपद यानी सेना, सिंधु यानी समुद्र और अनल यानी अग्नि का सहारा लें।"
इस चौपाई में सम्राट भरत ने अपने ब्रादर राजा राम को सुनहरे सुझाव दिए हैं कि वह प्रबिसि नगर में सम्पूर्ण कार्य करें और राजा कौसल्यपुर के हृदय में रखें। साथ ही, उन्होंने युद्ध में जीत प्राप्त करने के लिए गरल की सुधा, सेना, समुद्र और अग्नि का सहारा लेने की सलाह दी है।
गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही।।
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना।।22
इस चौपाई का अर्थ
"गरुड़, सुमेरु पर्वत, और एक रेणु (लघुतम) भी जहां-जहां हैं, वहीं रामचंद्रजी की कृपा से विचारणे वाले और चिन्हित होते हैं। हनुमानजी ने अत्यंत लघु रूप में विचार किया और भगवान राम का स्मरण करते हुए नगर में पहुंचे।"
इस चौपाई में हनुमानजी की महिमा और भक्ति की शक्ति का उपयोग करके वे किसी भी स्थान में विचार सकते हैं, जैसे कि गरुड़, सुमेरु पर्वत, और एक रेणु। इसके साथ ही, उन्होंने अपनी लघुता के बावजूद भगवान का स्मरण करते हुए नगर में पहुंचकर अपनी भक्ति की महत्ता को प्रदर्शित किया है।
मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा।।
गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं।।23
इस चौपाई का अर्थ
"हनुमानजी ने मंदिर-मंदिर जाकर खोजा, हर जगह अगनित योधा देखा। वह दसानन (रावण) के मंदिर में गये, वहां बहुत अजीब चीजें देखीं, लेकिन वह जो चीजें देखी वास्तविक नहीं थीं।"
इस चौपाई में हनुमानजी की भगवान राम की पूजा के लिए विभिन्न मंदिरों की खोज का वर्णन किया गया है। वह दसानन (रावण) के मंदिर में पहुंचे, लेकिन वहां कुछ चीजें अजीब थीं जो वास्तविक नहीं थीं।

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