श्री शनि चालीसा (२)
श्री शनि चालीसा को पढ़ने की विधि
- शुभ मुहूर्त का चयन: श्री शनि चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सन्ध्या के समय या शनिवार के दिन।
- पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
- शनि देव की मूर्ति या छवि का स्थापना: शनि देव की मूर्ति या छवि को एक स्थान पर स्थापित करें।
- पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
- शनि चालीसा का पाठ: शनि चालीसा का पाठ भक्तिभाव से करें।
- आरती और भजन: शनि देव की आरती और उनके भजनों का आनंद लें।
- मन्त्रों का जप: शनि देव के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः"।
- आरती और प्रशाद: शनि देव की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
- भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से शनि देव की आराधना करनी चाहिए।
इस विधि को अपनी आदतों और परंपराओं के अनुसार समायोजित करें, क्योंकि यह स्थानीय संस्कृति और आचार्यों के अनुसार भिन्न हो सकती है।
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा
सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन के
दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ॥
जय जय श्री
शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय
महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज
॥
सोरठा
ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
॥ चौपाई ॥
जयति जयति शनिदेव
दयाला, करत सदा भक्तन प्रतिपाला
।
चारि भुजा,
तनु श्याम विराजै, माथे रतन मुकुट छवि छाजै ।
परम विशाल मनोहर
भाला, टेढ़ी दृष्टि भृकुटि
विकराला ।
कुण्डल श्रवण
चमाचम चमके, हिये माल मुक्तन
मणि दमकै ।
कर में गदा
त्रिशूल कुठारा, पल बिच करैं
अरिहिं संहारा ।
पिंगल, कृष्णो, छाया, नन्दन, यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःखभंजन ।
सौरीमन्द,
शनी, दशनामा, भानु पुत्र
पूजहिं सब कामा ।
जापर प्रभु
प्रसन्न हवैं जाहीं, रंकहुँ राव करैं
क्षण माहीं ।
पर्वतहू तृण होइ
निहारत, तृणहू को पर्वत करि डारत
।
राज मिलत बन
रामहिं दीन्हयो, कैकेइहुँ की मति
हरि लीन्हयो ।
बनहूँ में मृग
कपट दिखाई, मातु जानकी गई चुराई ।
लषणहिं शक्ति
विकल करिडारा, मचिगा दल में
हाहाकारा ।
रावण की गति-मति
बौराई, रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई
।
दियो कीट करि
कंचन लंका, बजि बजरंग बीर की डंका ।
नृप विक्रम पर
तुहि पगु धारा, चित्र मयूर निगलि
गै हारा ।
हार नौलखा लाग्यो
चोरी, हाथ पैर डरवायो तोरी ।
भारी दशा निकृष्ट
दिखायो, तेलहिं घर कोल्हू चलवायो
।
विनय राग दीपक
महँ कीन्हयों, तब प्रसन्न प्रभु
है सुख दीन्हयों ।
हरिश्चन्द्र नृप
नारि बिकानी, आपहुं भरे डोम घर
पानी ।
तैसे नल पर दशा
सिरानी, भूंजी-मीन कूद गई पानी ।
श्री शंकरहिं
गह्यो जब जाई, पारवती को सती
कराई ।
तनिक विलोकत ही
करि रीसा, नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा
।
पाण्डव पर भै दशा
तुम्हारी, बची द्रोपदी होति उघारी ।
कौरव के भी गति
मति मारयो, युद्ध महाभारत करि डारयो
।
रवि कहँ मुख महँ
धरि तत्काला, लेकर कूदि परयो पाताला ।
शेष देव-लखि
विनती लाई, रवि को मुख ते दियो
छुड़ाई ।
वाहन प्रभु के
सात सुजाना, जग दिग्गज गर्दभ
मृग स्वाना ।
जम्बुक सिंह आदि
नख धारी, सो फल ज्योतिष कहत पुकारी
।
गज वाहन लक्ष्मी
गृह आवैं, हय ते सुख सम्पत्ति
उपजावैं ।
गर्दभ हानि करै
बहु काजा, सिंह सिद्धकर राज समाजा ।
जम्बुक बुद्धि
नष्ट कर डारै, मृग दे कष्ट
प्राण संहारै ।
जब आवहिं प्रभु
स्वान सवार, चोरी आदि होय डर
भारी ।
तैसहि चारि चरण
यह नामा, स्वर्ण लौह चाँदी अरु
तामा ।
लौह चरण पर जब
प्रभु आवैं, धन जन सम्पत्ति
नष्ट करावैं ।
समता ताम्र रजत
शुभकारी, स्वर्ण सर्व सर्वसुख मंगल
भारी ।
जो यह शनि चरित्र
नित गावै, कबहुं न दशा निकृष्ट
सतावै ।
अद्भुत नाथ
दिखावैं लीला, करें शत्रु के
नशि बलि ढीला |
जो पण्डित
सुयोग्य बुलवाई, विधिवत शनि ग्रह
शांति कराई ।
पीपल जल शनि दिवस
चढ़ावत, दीप दान दै बहु सुख पावत ।
कहत राम सुन्दर
प्रभु दासा, शनि सुमिरत सुख
होत प्रकाशा ।
॥ दोहा ॥
पाठ शनीश्चर देव
को, कीहों 'भक्त' तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥
टिप्पणियाँ