श्री कृष्ण चालीसा

 श्री कृष्ण चालीसा

श्री कृष्ण चालीसा भगवान श्री कृष्ण की महिमा को स्तुति रूप में व्यक्त करने वाली हिन्दी भक्ति ग्रंथ है। यह चालीसा भगवान कृष्ण के विभिन्न नामों, गुणों, और लीलाओं की महत्ता को बताती है और उनके भक्तों को प्रेरित करती है। इसमें भगवान कृष्ण की पूजा, आराधना, और स्तुति का वर्णन है।

श्री कृष्ण चालीसा को पढ़ने की विधि

  1. शुभ मुहूर्त का चयन: श्री कृष्ण चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
  2. पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  3. कृष्ण जी की मूर्ति या छवि का स्थापना: श्री कृष्ण जी की मूर्ति या छवि को एक स्थान पर स्थापित करें।
  4. पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
  5. कृष्ण चालीसा का पाठ: श्री कृष्ण चालीसा का पाठ भक्तिभाव से करें।
  6. आरती और भजन: कृष्ण जी की आरती और उनके भजनों का आनंद लें।
  7. मन्त्रों का जप: कृष्ण जी के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ कृष्णाय नमः" या "हरे कृष्ण हरे राम हरे हरे"।
  8. आरती और प्रशाद: कृष्ण जी की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
  9. भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से श्री कृष्ण की आराधना करनी चाहिए।

यह स्थानीय संस्कृति और आचार्यों के अनुसार भिन्न हो सकती है, इसलिए अपनी पूजा और आराधना को अपनी आदतों और परंपराओं के अनुसार समायोजित करें।

॥ दोहा ॥

बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम ।
अरुण अधर जनु बिम्ब फल, नयन कमल अभिराम ॥
पूर्ण इन्द्र अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज ।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्ण चन्द्र महाराज ॥

 ॥ चौपाई ॥

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन, जय वसुदेव देवकी नन्दन ।
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे, जय प्रभु भक्तन के दूग तारे ।
जय नटनागर नाग नथइया, कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया ।
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो, आओ दीनन कष्ट निवारो ।
बंशी मधुर अधर धरि टेरी, होवे पूर्ण विनय यह मेरी ।
करि गोपिन संग रास विलासा, सबकी पूरण करि अभिलाषा ।  
केतिक महा असुर संहारियो, कंसहि केस पकड़ि दै मारयो ।
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई, उग्रसेन कहँ राज दिलाई
महि से मृतक छहों सुत लायो, मातु देवकी शोक मिटायो ।
भौमासुर मुर दैत्य संहारी, लाये षट दस सहस कुमारी ।
दें भीमहिं तृणचीर संहारा, जरासिंधु राक्षस कहँ मारा ।
असुर बकासुर आदिक मारयो, भक्तन के तब कष्ट निवारियो ।
दीन सुदामा के दुःख टारयो, तंदुल तीन मूठि मुख डारयो ।
प्रेम के साग विदुर घर माँगे, दुर्योधन के मेवा त्यागे ।
लखी प्रेमकी महिमा भारी, ऐसे श्याम दीन हितकारी ।
मारथ के पारथ रथ हांके, लिए चक्र कर नहिं बल थांके ।
निज गीता के ज्ञान सुनाये, भक्तन हृदय सुधा वर्षाये ।
मीरा थी ऐसी मतवाली, विष पी गई बजा कर ताली ।
राणा भेजा साँप पिटारी, शालिग्राम बने बने बनवारी ।
निज माया तुम विधिहिं दिखायो, उरते संशय सकल मिटायो ।
तव शत निन्दा करि तत्काला, जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ।
जबहिं द्रोपदी टेर लगाई, दीनानाथ लाज अब जाई ।
तुरतहि वसन बने नन्दलाला, बढ़े चीर भये अरि मुँह काला ।
अस अनाथ के नाथ कन्हैया, डूबत भँवर बचावत नइया ।
सुन्दरदास आस उर धारी, दयादृष्टि कीजै बनवारी ।
नाथ सकल मम कुमति निवारो, क्षमहुबेगि अपराध हमारो ।
खोलो पट अब दर्शन दीजै, बोलो कृष्ण कन्हैया की जय ।

॥ दोहा ॥

यह चालीसा कृष्ण का पाठ करे उर धारि । 
अष्ट सिद्धि नवनिद्धि फल, लहै पदारथ चरि ॥

टिप्पणियाँ