श्री सत्यनारायण कथा – पंचम अध्याय

श्री सत्यनारायण कथा - पंचम अध्याय:

कथा का सार:

भक्ति और श्रद्धा की महत्वपूर्ण बातें: इस अध्याय में भगवान सत्यनारायण के भक्तों के बीच में हुई कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं हैं जो भक्ति और श्रद्धा की महत्वपूर्ण बातें दिखाती हैं।

वैष्णव संस्कृति में अनुष्ठान की महत्वपूर्णता: पंचम अध्याय में वैष्णव संस्कृति में अनुष्ठान और सत्कर्म की महत्वपूर्णता को बताया गया है। भक्तों को अच्छे आचरण और श्रद्धाभाव से योग्यता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया गया है।

भक्ति के फल का वर्णन: भक्ति में निरंतरता रखने वाले भक्तों को भगवान सत्यनारायण द्वारा विशेष आशीर्वाद दिया गया है। इसके फलस्वरूप, उन्हें सुख, शांति, और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।

परिचय और आशीर्वाद: भगवान ने अपने भक्तों को विशेष रूप से परिचय और आशीर्वाद दिया है। उन्होंने भक्तों की संकटों से रक्षा करने का वचन दिया और उन्हें सदैव अपने शरण में रखने का समर्पण किया है।

इस प्रकार, पंचम अध्याय में भक्ति, श्रद्धा, और धार्मिक आचरण के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का विवेचन है, जो भक्तों को धर्मपरायण और सत्यनिष्ठ बनाने के लिए प्रेरित करता है।

श्री सत्यनारायण कथा – पंचम अध्याय

सूतजी बोले: हे ऋषियों ! मैं और भी एक कथा सुनाता हूँ, उसे भी ध्यानपूर्वक सुनो! प्रजापालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था। उसने भी भगवान का प्रसाद त्याग कर बहुत ही दुख सान किया। एक बार वन में जाकर वन्य पशुओं को मारकर वह बड़ के पेड़ के नीचे आया। वहाँ उसने ग्वालों को भक्ति-भाव से अपने बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा। अभिमानवश राजा ने उन्हें देखकर भी पूजा स्थान में नहीं गया और ना ही उसने भगवान को नमस्कार किया। ग्वालों ने राजा को प्रसाद दिया लेकिन उसने वह प्रसाद नहीं खाया और प्रसाद को वहीं छोड़ वह अपने नगर को चला गया।
जब वह नगर में पहुंचा तो वहाँ सबकुछ तहस-नहस हुआ पाया तो वह शीघ्र ही समझ गया कि यह सब भगवान ने ही किया है। वह दुबारा ग्वालों के पास पहुंचा और विधि पूर्वक पूजा कर के प्रसाद खाया तो श्रीसत्यनारायण भगवान की कृपा से सब कुछ पहले जैसा हो गया। दीर्घकाल तक सुख भोगने के बाद मरणोपरांत उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।जो मनुष्य परम दुर्लभ इस व्रत को करेगा तो भगवान सत्यनारायण की अनुकंपा से उसे धन-धान्य की प्राप्ति होगी। निर्धन धनी हो जाता है और भयमुक्त हो जीवन जीता है। संतान हीन मनुष्य को संतान सुख मिलता है और सारे मनोरथ पूर्ण होने पर मानव अंतकाल में बैकुंठधाम को जाता है। सूतजी बोले: जिन्होंने पहले इस व्रत को किया है अब उनके दूसरे जन्म की कथा कहता हूँ। वृद्ध शतानन्द ब्राह्मण ने सुदामा का जन्म लेकर मोक्ष की प्राप्ति की। लकड़हारे ने अगले जन्म में निषाद बनकर मोक्ष प्राप्त किया। उल्कामुख नाम का राजा दशरथ होकर बैकुंठ को गए। साधु नाम के वैश्य ने मोरध्वज बनकर अपने पुत्र को आरे से चीरकर मोक्ष पाया। महाराज तुंगध्वज ने स्वयंभू होकर भगवान में भक्तियुक्त हो कर्म कर मोक्ष पाया।
॥ इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पंचम अध्याय संपूर्ण॥
श्रीमन्न नारायण-नारायण-नारायण।
भज मन नारायण-नारायण-नारायण।
श्री सत्यनारायण भगवान की जय॥

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