श्री सूर्य चालीसा

 श्री सूर्य चालीसा

श्री सूर्य चालीसा को पढ़ने की विधि

  1. शुभ मुहूर्त का चयन: श्री सूर्य चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
  2. पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  3. सूर्य देव की मूर्ति या छवि का स्थापना: सूर्य देव की मूर्ति या छवि को एक स्थान पर स्थापित करें।
  4. पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
  5. सूर्य चालीसा का पाठ: सूर्य चालीसा का पाठ भक्तिभाव से करें।
  6. आरती और भजन: सूर्य देव की आरती और उनके भजनों का आनंद लें।
  7. मन्त्रों का जप: सूर्य देव के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः"।
  8. आरती और प्रशाद: सूर्य देव की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
  9. भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से सूर्य देव की आराधना करनी चाहिए।

यह स्थानीय संस्कृति और आचार्यों के अनुसार भिन्न हो सकती है। इसलिए, अपनी पूजा और आराधना को अपनी आदतों और परंपराओं के अनुसार समायोजित करें।

॥ दोहा ॥

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग । 
पद्मासन स्थित ध्याइये, शंख चक्र के सङ्ग ॥

॥ चौपाई ॥

जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्त्रांशु ! सप्ताश्व तिमिरहर ।
भानु ! पतंग ! मरीची! भास्कर! सविता! हंस सुनूर विभाकर ।
विवस्वान ! आदित्य! विकर्तन, विकर्तन, मार्तण्ड हरिरूप विरोचन ।
अम्बरमणि! खग ! रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते ।
सहस्त्रांशुप्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि ।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हाँकत हय साता चढ़ि रथ पर ।
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी ।
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते! देखि पुरंदर लज्जित होते ।
मित्र १. मरीचि २. भानु ३. अरुण भास्कर ४. सविता ।
५. सूर्य ६. अर्क ७. खग ८. कलिकर पूषा ९. रवि ।
१०. आदित्य ११. नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः १२. कहिकै ।
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं, मस्तक बारह बार नवावै ।
चार पदारथ सो जन पावै, दुःख दारिद्र अघ पुञ्ज नसावै ।
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह ।
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई
बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक ठरते ।
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन ।
छन सुत जुत परिवार बढतु है, प्रबलमोह को फँद कटतु है  
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते ।

 
 

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देस पर दिनकर छाजत ।
भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित ।
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे ।
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर ।
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्म सुउदरचन ।
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हँस रहत मन मुदभर ।
जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा ।
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी ।
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे ।
अस जोजन अपने मन माहीं, भय जग बीज करहुँ तेहि नाहीं ।
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुँ न व्यापै, जोजन याको मनमहं जापै ।
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता ।
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही ।
मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बाँके ।
धन्य - २ तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा |
भक्ति भावयुत पूर्ण नियमसों दूर हटतसो भवके भ्रमसों ।
परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी ।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदयन ।
भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै ।
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता ।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं ।

॥ दोहा ॥

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहि जे नर नित्य । 
सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य ॥

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