सुंदरकांड चौपाई पाठ हिंदी में अर्थ सहित

सुंदरकांड चौपाई पाठ हिंदी में अर्थ सहित Sunderkand Chaupai Path with meaning in Hindi

देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा।।
कृस तन सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी।।36
इस चौपाई का अर्थ

"जब हनुमान ने उन्हें देखा, तो वह निस्संकोच प्रणाम किया। उन्होंने बैठकर बड़ा आदर किया, और उनके मन में जामा हुआ था। सीता जी ने अपने कृष्ण रंग के शरीर, जटाओं में बाँधे हुए बाल और एक सुन्दर बेनी के साथ बैठी हुई थीं। उन्होंने रघुपति श्रीराम की महिमा की गुणगान करती हुई हृदय से जप किया।"
इस चौपाई में हनुमान जी का श्रद्धापूर्ण प्रणाम और सीता जी की सुंदरता का वर्णन है, जिससे उनका प्रभाव हनुमान जी के मन में हुआ है। यह चौपाई सीता जी के साथ हनुमान जी के पहले मुलाकात का वर्णन करती है।
चौपाई
तरु पल्लव महुँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई।।
तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा।।37
इस चौपाई का अर्थ

"हनुमान ने एक पेड़ के पत्ते में छुपकर रात बिताई, और सोच रहा था, 'भगवान, इस समय मैं क्या करूँ?' तभी रावण वहां आया, और उसने नारियों के साथ बहुत बनाया।"
इस चौपाई में हनुमान जी रात्रि को एक पेड़ के पत्ते में छुपकर रहते हैं और रावण वहां आकर अपनी विचारों को व्यक्त करता है, जिसमें उन्होंने नारियों के साथ बहुत का निर्माण करने की योजना बनाई है।
बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा।।
कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी।।38
इस चौपाई का अर्थ

"रावण ने बहुत तरीकों से सीता को समझाया, उसे विभिन्न रूपों में दिखाया। वह उसे भलाई की बातें सिखाई, दान किया और भेद दिखाया। रावण ने कहा, 'सुनो, सुमुखिनी! मंदोदरी और अन्य सभी रानियां सुन रही हैं।'"
इस चौपाई में रावण ने सीता को विभिन्न रूपों में दिखाकर उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की है और उसे धर्म, दान, और भेद तकनीकों से प्रभावित करने का प्रयास किया है।
तव अनुचरीं करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा।।
तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही।।39

इस चौपाई का अर्थ 
"तुम्हारे अनुचरी बनना मैं करूँगा, मेरे पास एक बार तुम्हारी ओर मुड़ने का सौभाग्य हो। सीता माता जब धरा पर चली गईं, तो वह विशेष रूप से अवधपति राम की स्मृति में समर्थ थीं, उनके प्रति अद्भुत प्रेम की भावना थी।"
यह चौपाई भक्ति और सेवा की भावना को सुंदरता से व्यक्त करती है और भगवान राम और सीता माता के प्रति भक्ति भाव को उजागर करती है।
सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा।।
अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की।।40
इस चौपाई का अर्थ

सुनो, दसमुख! उस दीपक का प्रकाश सुनो, जिससे कभी-कभी बारिश होती है। ऐसा करने से मन, जिसे नलिनी (सीता) ने विकसित किया है, वह बहुत बड़ा हो जाता है। जानकी माता यह मन कहती हैं, 'हे रघुकुलश्रेष्ठ! इस प्रकार विवेकपूर्ण और समझदारी से कहने से तुम्हें कहीं भी खला (दुश्मन) की सुधि नहीं होती है, ओ रघुवीर (राम) के बाण से।'"
इस चौपाई में सीता माता राम के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण का अभिव्यक्ति कर रही है, और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए राम के बाण की महत्वपूर्णता को बताती हैं।
सठ सूने हरि आनेहि मोहि। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही।।41
"हे हरि! आपकी असीम कृपा से मुझे जगात्राता (भगवान राम) की अनुभूति हो रही है। आपकी अद्वितीय लीला को न जानने वाले, केवल अधम और लज्जाहीन ही नहीं, तो कौन है?"
इस चौपाई में तुलसीदास जी अपनी नींव स्थापित करते हैं कि भगवान की अनुभूति उन्हें हर मोह से मुक्त कर रही है और उनका समर्पण भगवान की अनंत कृपा की ओर बढ़ा हुआ है।
चौपाई
सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना।।
नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी।।42
इस चौपाई का अर्थ 

"सीता, तूने मेरा किया हुआ अपमान देखा है। मेरी शीर्षक में तूने कठिन परिस्थितियों का सामना किया है। मैंने तेरे साथ किये गए अपमान को तत्काल सहन कर लिया है, लेकिन ऐसा करने से मेरे मन में कोई संतुष्टि नहीं है। तुझसे मेरे मन की बातें छुपा नहीं सकता हूँ, और तुझे हर कदम पर मेरा समर्पण दिखना चाहिए, ताकि मेरी जीवन हानि नहीं हो।"
यह चौपाई सीता माता के विरह और उनके द्वारा सहा गया अपमान का दुख को बयान करती है, जो रामायण की कई घटनाओं में महत्वपूर्ण है।
स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर।।
सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा।।43
इस चौपाई का अर्थ 

"हे स्याम! तेरे कमल में रहने वाला दाम (भक्ति) और सुंदरता का समर्थन करता हूँ। तेरे प्रभावशाली भुजाओं ने दसकंधर राक्षसों को मार डाला है। तेरी भुजाओं और कंठ का रूप इतना भयंकर है कि यह देखने योग्य नहीं है। हे सखा (मेरे मित्र), इसे सुन! ऐसा रूप मेरे मन को भी आकर्षित करता है और मैं तुझे पूजने का इच्छुक हूँ।"
इस चौपाई में भक्ति भाव और भगवान राम के दिव्य स्वरूप की स्तुति है।
चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं।।
सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा।।44
इस चौपाई का अर्थ 

"मेरा चंद्रहास (ब्रह्मा) हर जगह मेरे पीड़ा को देखकर मुस्कान छोड़ देता है। रघुपति (राम) के विरह में अग्नि की भांति जलता हूँ, जो मेरी तापना को बढ़ाता है। सीता माता का सुंदर रूप बर्फ की धारा की भांति शीतल है, लेकिन उनके बिना मेरा दुःख अभी भी बहुत भारी है।"
इस चौपाई में भक्त का दुःख और सीता माता के अभाव की अद्वितीय भावना को व्यक्त किया गया है।
सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा।।
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई।।45
इस चौपाई का अर्थ 

यह चौपाई भगवान हनुमान के संवाद को बयान करती है और उनकी वीरता एवं बुद्धिमत्ता को उजागर करती है। इसे इस प्रकार अनुवादित किया जा सकता है:
"हनुमान ने श्रीराम के वचनों को सुनकर फिर से लंका की ओर धावा। वह नीति से भरपूर भयानक मायावी राक्षसों को अपनी बुद्धिमत्ता से समझाता है। हनुमान ने उन सभी निशाचरों को कहा, 'आप सब सुनो! सीता जी ने बहुत तरह के विपत्तियों को सहा है, इसलिए आपको बहुत डरना पड़ेगा।'"
इस चौपाई में हनुमान जी की बुद्धिमत्ता, वीरता, और वचनबद्धता को प्रमोट करती है और उनकी नीति शक्ति का महत्वपूर्ण प्रमाण है।
मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना।।46
इस चौपाई का अर्थ 
यह चौपाई भक्त की विरहबावना और प्रेम को व्यक्त करती है। इसे इस प्रकार अनुवादित किया जा सकता है:
"मास और दिन-रात को मैंने माना नहीं। तब मैंने अपनी कृपाण (कातरी) से खुद को काटने का निश्चय किया है।"
इस चौपाई में भक्त का भगवान के प्रति अद्वितीय प्रेम और उनकी विरहबावना को व्यक्त किया गया है। भक्त इस चौपाई में अपनी असमर्पितता और भगवान के प्रति अत्यंत प्रेम की भावना को व्यक्त कर रहा है।
चौपाई
त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका।।
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहि सेइ करहु हित अपना।।47
इस चौपाई का अर्थ 

"त्रिजटा नामक राक्षसी एक थी, जो रामचरित्र में रत थी और बहुत विवेकी थी। उसने सभी को बताया और सुनाया रामचरित्र, कहती थी कि सीता ही हमारे लिए कारगर है, हम सबके हित में रहें।"
इस चौपाई में त्रिजटा की भक्ति, विवेक, और भगवान के प्रति आस्था को व्यक्त किया गया है। इसमें भक्ति और समझदारी के माध्यम से उचित राह की मार्गदर्शन की भावना है।
सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी।।
खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।।48
इस चौपाई का अर्थ

"हनुमान ने लंका को सपने में देखा, जहां से उसने जातायु की सेना को पूरी तरह से नष्ट किया। खर, दूषण और त्रिशिरा को मार दिया गया। हनुमान ने खर के सिर को मुकुट सहित काटा और उसकी भुजाएँ बीसी बना दी।"
यह किसी कविता या किस्से का हिस्सा लगता है जो हनुमान जी के लंका प्रवेश के समय के सम्बंध में है, जब उन्होंने लंका में दी गई चुनौतियों का सामना किया और उन्होंने लंका के राक्षसों को परास्त किया।
एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुँ बिभीषन पाई।।
नगर फिरी रघुबीर दोहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई।।49
इस चौपाई का अर्थ
"इस प्रकार, हनुमान जनकनंदन के आज्ञानुसार दक्षिण दिशा में जा पहुंचे। वहां उन्होंने लंका में बिभीषण को पाया। जब रामचन्द्र ने फिर से लंका का दौरा किया, तो हनुमान ने सीता जी को वह सब कुछ सुनाया।"
इस चौपाई में हनुमान जी ने अपनी मिशन की पूर्ति के बाद सीता जी को सब कुछ सुनाया और उनके द्वारा प्राप्त जानकारी को सीता जी ने रामचन्द्र को पठाया।
यह सपना में कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गएँ दिन चारी।।
तासु बचन सुनि ते सब डरीं। जनकसुता के चरनन्हि परीं।।50
इस चौपाई का अर्थ

"यह सपना में मैंने इस प्रकार पुकारा, और यह सच है कि इसमें चार दिन होने वाले हैं। इस बात को सुनकर सब भूत-प्रेत भयभीत हो गए, और जनकसुता ने भी उनके चरणों में प्रणाम किया।"
इस चौपाई में सपने में हुई घटना का वर्णन हो रहा है और जनकसुता ने उस सपने की बात सुनकर सभी विचलित हो गए और भयभीत हो गए हैं। जनकसुता ने अपने चरणों में प्रणाम किया, जो सपने में उन्हें दिखाई दी गई थी।

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