सूर्य देव के 12 नाम अर्थ सहित और श्री सूर्यदेव चालीसा 12 names of Sun God with meanings and Shri Suryadev Chalisa

सूर्य देव के 12 नाम अर्थ सहित और श्री सूर्यदेव चालीसा

सूर्य देव

सूर्य देवता का सिर्फ एक ही नाम नहीं है। इन्हे अनेकों नामों से भी जाना जाता है। जिस प्रकार पूरी धरती पर हर प्राणी के जीवन के लिए जल, वायु और पृथ्वी की जरूरत है। उसी तरह हमें अपने जीवन में सूर्य की ऊर्जा की भी उतनी ही जरुरत है।  धर्मशास्त्रों की मानें तो सूर्य को सृष्टि का देवता माना गया है। कहा जाता है कि जिस व्यक्ति ने सूर्यदेव को प्रसन्न कर लिया तो उसका जीवन सुखमय बन जाता है। साथ ही ये भी कहते हैं कि सूर्यदेव ही ऐसे देवता हैं जिन्हे बिना किसी चढ़ावे के प्रसन्न किया जा सकता है। इन्हे सिर्फ नमस्कार करके या जल का अर्घ्य देकर ही भगवान सूर्य को प्रसन्न किया जा सकता है। सूर्यदेव के 12 नामों का जाप कर के आइये जानते हैं सूर्यदेव के किन 12 नामों का जाप करना है।
12 names of Sun God with meanings and Shri Suryadev Chalisa
  1. दिनकर।
  2. रवि।
  3. सप्त-रथी।
  4. आदिदेव।
  5. दिवाकर।
  6. भानू |
  7. सविता।
  8. प्रभाकर।
  9. भुवनेश्वर।
  10. रश्मिमते।
  11. सूर्य।
  12. आदित्य।

सूर्य देव के उन 12 नामों को, जो सबको एक नया तेज देता

  1. आदित्य :- सूर्य का यह नाम उनकी माता अदिति पर दिया गया है। वेदों के अनुसार, सूर्य ऋषि कश्यप और अदिति के पुत्र हैं। अदिति का मतलब जो राग-द्वेष से ऊपर हो व जिस पर किसी का वश न चले।
  2. दिनकर :- दिन पर राज करने वाला। दिन की शुरुआत और अंत सूर्य से ही होती है। इस कारण सूर्य को यह नाम दिया गया है।
  3. रश्मि मते :- रश्मि का अर्थ प्रकाश और मते का मतलब पुंज। यानी, जिसके अंदर हजारों की संख्या में प्रकाश पुंज हो। इसीकारण सूर्य को रश्मि मते कहा जाता है।
  4. भुवनेश्वर :- भुवनेश्वर मतलब पृथ्वी पर राज करने वाला। पृथ्वी भगवान सूर्य के अंदर विद्यमान है। सूर्य की किरणें न हो, तो संसार खत्म हो जाएगा।
  5. प्रभाकर :- प्रभा मतलब प्रात:काल और इसी काल से सूर्य संसार में विद्यमान होते हैं। इस कारण उन्हें प्रभाकर नाम दिया गया है।
  6. सविता :- सविता का अर्थ उत्पन्न करने वाला। मंत्र के मालिक को भी सविता के नाम से जाना जाता है। संसार में प्रकाश को उत्पन्न करने के कारण इन्हें सविता नाम दिया गया है।
  7. सूर्य :- सूर्य का मतलब भ्रमण करने वाला, जो संसार में भ्रमण कर हर किसी के दुख को दूर करे। भगवान भास्कर पूरे संसार में भ्रमण करते हैं, इस कारण उन्हें सूर्य नाम दिया गया है।
  8. भानू :- भानू का अर्थ तेज। ऐसा तेज, जिससे हर कोई लाभान्वित हो। अमीर, गरीब सब पर सूर्य का प्रकाश एक समान होता है। उनके अलौकिक तेज के कारण ही भानू नाम दिया गया है।
  9. दिवाकर :- दिवाकर का अर्थ रात का अंत करने वाला। जिनके आते ही अंधकार मिट जाता है। इन्हीं गुणों के कारण ही इनका नाम दिवाकर पड़ा।
  10. आदिदेव :- ब्रह्मांड की शुरुआत और अंत सूर्य में समाहित है। वेदों के अनुसार, ब्रह्मांड की शुरुआत चैत्र माह और शुक्ल पक्ष में हुई। इस कारण सूर्य को आदिदेव के नाम से जाना जाता है।
  11. रवि :- ब्रह्मांड की शुरुआत वाला दिन रविवार था। आदिदेव होने के कारण सप्ताह की शुरुआत भी रविवार से होती है। इस कारण भगवान भास्कर को रवि नाम से जाना जाता है।
  12. सप्तसती :- भगवान भुवन भास्कर की सवारी सात घोड़े हैं। सातों घोड़े भगवान सूर्य में हजारों किरणों को समाहित करते हैं। इस कारण इन्हें सप्तसती कहा गया है।

श्री सूर्यदेव चालीसा

।।दोहा।।
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग।।
।।चौपाई।।
जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
भानु पतंग मरीची भास्कर, सविता हंस सुनूर विभाकर ।।१।।

विवस्वान आदित्य विकर्तन,मार्तण्ड हरिरूप विरोचन।
अम्बरमणि खग रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।।२।।

सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।।३।।

मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,देखि पुरन्दर लज्जित होते।।४।।

मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,सविता सूर्य अर्क खग कलिकर।
पूषा रवि आदित्य नाम लै,हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।।५।।

द्वादस नाम प्रेम सों गावैं, मस्तक बारह बार नवावैं।
चार पदारथ जन सो पावै, दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै।।६।।

नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर को कृपासार यह।
सेवै भानु तुमहिं मन लाई,अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।।७।।

बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।
उपाख्यान जो करते तवजन,रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।।८।।

धन सुत जुत परिवार बढ़तु है,प्रबल मोह को फंद कटतु है।
अर्क शीश को रक्षा करते,रवि ललाट पर नित्य बिहरते।।९।।

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत,कर्ण देस पर दिनकर छाजत।
भानु नासिका वासकरहुनित,भास्कर करत सदा मुखको हित।।१०।।

ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे,रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे। 
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा,तिग्म तेजसः कांधे लोभा।।११।।

पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर,त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर।
युगल हाथ पर रक्षा कारन,भानुमान उरसर्म सुउदरचन।।१२।।

बसत नाभि आदित्य मनोहर,कटिमंह, रहत मन मुदभर।
जंघा गोपति सविता बासा,गुप्त दिवाकर करत हुलासा।।१३।।

विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।।१४।।

अस जोजन अपने मन माहीं, भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ।
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै,जोजन याको मन मंह जापै।।१५।।

अंधकार जग का जो हरता,नव प्रकाश से आनन्द भरता।

ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।
मंद सदृश सुत जग में जाके,धर्मराज सम अद्भुत बांके।।१६।।

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटतसो भवके भ्रम सों।।१७।।

परम धन्य सों नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मधु वेदांग नाम रवि उदयन।।१८।।

भानु उदय बैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै। 
यम भादों आश्विन हिमरेता,कातिक होत दिवाकर नेता।।१९।।

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं।।२०।।

।।दोहा।।
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य।।

 प्रचलित सूर्य गायत्री मन्‍त्र 

ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात।।

सूर्य गायत्री मन्‍त्र का महत्‍त्‍व 

सूर्य गायत्री मंत्र का जाप भगवान सूर्य देव की प्रसन्‍नता प्राप्‍त करने के लिया किया जाता है। सूर्य गायत्री मंत्र का जाप 108  बार करना चाहिए। इस मंत्र के जाप से आत्मशुद्धि एवं मन की शांति के साथ ही आत्म-सम्मान में वृद्धि होती हैं। आने वाली विपत्तियॉं टलती हैं और शरीर नीरोगी रहता है। इस मंत्र का जाप प्रात:काल करना चाहिए। सूर्य गायत्री मंत्र एक महामंत्र है और इस मन्त्र की शक्तियॉं अपार हैं। अगर इस सूर्य गायत्री मंत्र विधि विधान से पाठ किया जाये तो इसके चामत्कारिक परिणाम प्राप्त होतें हैं। कहा जाता हैं कि सूर्य की उपासना त्वरित फलवती होती हैं और पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र सांब की कुष्‍ठरोग से निवृत्ति सूर्योपसना से ही हुई थी।

सूर्य का प्रार्थना मंत्र

ग्रहाणामादिरादित्यो लोक लक्षण कारक:।
विषम स्थान संभूतां पीड़ां दहतु मे रवि।।

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